कभी-कभी ज्यादा मेहरबानी से भी संदेह पैदा होता है. कुछ ऐसा ही संदेह झारखंड सरकार द्वारा एक के बाद एक लोकलुभावन घोषणाएं करने से हो रहा है. पिछली कैबिनेट में राज्यकर्मियों को सौगात देनेवाली सरकार ने इस बार समाज के बड़े वर्ग को लुभाने की कोशिश की है. बड़ा फैसला छात्रों को साइकिल देने के मामले में हुआ है. अब तक सिर्फ गरीब छात्राओं को ही साइकिल दी जाती थी. लेकिन सरकार ने दायरा बढ़ाते हुए सभी वर्गो के छात्रों को साइकिल देने का बीड़ा उठाया है.
हां, स्कूलों-कॉलेजों में छात्रों की उपस्थिति अस्सी फासदी से कम नहीं होनी चाहिए. समाज कल्याण विभाग के एक अन्य महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर भी कैबिनेट ने मुहर लगा दी है. इससे वृद्धों की जिंदगी में थोड़ी सुरक्षा आयेगी. सरकार अपने उन कर्मियों पर नकेल सकेगी, जो अपने बूढ़े मां-बाप का ख्याल नहीं रखते. कैबिनेट ने झारखंड राज्य माता-पिता (वरिष्ठ नागरिक) भरण-पोषण नियमावली को मंजूरी दी है. यदि ऐसा मामला सामने आयेगा तो सरकार तय करेगी कि बुजुर्ग का भरण-पोषण कैसे हो. इसके लिए दोषी पुत्र-पुत्री की आय में से अधिकतम दस हजार रुपये की मासिक कटौती कर बुजुर्ग को दी जायेगी. सरकार की ये घोषणाएं प्रशंसनीय हैं, लेकिन देखना यह होगा कि पहले से चल रही लोक कल्याणकारी योजनाओं का क्या हाल है. कहने को यह सरकार का धर्म बनता है कि वह लोकलुभावन कार्य करे.
इसके सापेक्ष झारखंड में योजनाएं भी बनती रही हैं. शुरू में कुछ दिन अच्छा काम भी होता है, लेकिन धीरे-धीरे उन पर से सरकार का ध्यान हट जाता है. फलत: योजना फ्लॉप हो जाती है और इससे सरकार के प्रति अविश्वास का माहौल भी बनता है. वर्ष 2011 से चल रही बीपीएल परिवारों की नवजात बेटियों के लिए मुख्यमंत्री लक्ष्मी लाडली योजना का हश्र काबिलेगौर है. गरीबों के लिए चल रही मुख्यमंत्री दाल-भात योजना तो पूरी तरह लापता हो चुकी है. इसी तरह कई कल्याणकारी योजनाएं आखिरी सांस ले रही हैं. ऐसे में सरकार ने सौगातों का पिटारा खोलते हुए जो घोषणाएं की हैं, उनका क्या हश्र होगा, यह समय बतायेगा. इतना जरूर है कि जब राज्य चुनाव की देहरी पर खड़ा है, तो ये लोकलुभावन घोषणाएं वोट जुटाने का टोटका ही कही जायेंगी.