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बजट में स्वास्थ्य

पिछले कुछ सालों से केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं. वर्ष 2025 तक इस मद में खर्च को बढ़ा कर सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का ढाई फीसदी करने का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है. ऐसे में उम्मीद थी कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट आवंटन में खासा बढ़ोतरी […]

पिछले कुछ सालों से केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं. वर्ष 2025 तक इस मद में खर्च को बढ़ा कर सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का ढाई फीसदी करने का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है. ऐसे में उम्मीद थी कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट आवंटन में खासा बढ़ोतरी करेंगी, लेकिन कम राजस्व की वसूली और कमजोर अर्थव्यवस्था की वजह से यह बढ़त मामूली रही है.

पिछले बजट में आवंटन जहां जीडीपी का 1.5 फीसदी था, वहीं इस बजट में यह आंकड़ा 1.6 फीसदी है. आवंटन की राशि में 5.7 फीसदी की वृद्धि हुई है, पर आयुष्मान भारत तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए अधिक धन आवंटित नहीं किया गया है. अगर नॉमिनल जीडीपी 10 फीसदी रहने का अनुमान सही साबित होता है, तो सार्वजनिक स्वास्थ्य का खर्च 1.5 फीसदी से नीचे के स्तर पर बना रहेगा.

पिछले बजट में कुल आवंटन का 15 फीसदी इस क्षेत्र के लिए निर्धारित था, किंतु शनिवार को पेश बजट में प्रस्तावित आवंटन उम्मीद से कम है, लेकिन सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़े जिलों में इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने की प्राथमिकता बजट का एक अहम हिस्सा है और इससे इंगित होता है कि स्वास्थ्य सेवा की बेहतरी के लिए सरकार का ध्यान दीर्घकालिक उपायों पर है. देश में औसतन लगभग 11 हजार लोगों के लिए एक सरकारी एलोपैथिक डॉक्टर उपलब्ध है. ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में तो यह कमी बहुत ही अधिक है.

विभिन्न अध्ययनों के अनुसार, देश को छह लाख चिकित्सकों तथा 20 लाख सहायक कर्मियों की दरकार है. इसके साथ देहात में स्थित स्वास्थ्य केंद्रों में जरूरी व बुनियादी साजो-सामान का भी बहुत अभाव है. वित्त मंत्री ने अपने भाषण में भी कहा है कि आयुष्मान भारत योजना में 20 हजार से अधिक अस्पताल जुड़े हैं, लेकिन कई पिछड़े जिलों में एक भी ऐसा अस्पताल नहीं है. इस स्थिति में इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाना सबसे जरूरी है. बजट में सरकार और निजी क्षेत्र के सहयोग से ऐसे इलाकों में जिला अस्पतालों से संबद्ध मेडिकल कॉलेजों की स्थापना की घोषणा हुई है.

कुछ दिन पहले केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने वित्त आयोग को जानकारी दी थी कि प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में आगामी पांच सालों में 5.38 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है और यदि यह निवेश होता है, तो इस सेवा की 90 फीसदी मांग को पूरा किया जा सकेगा. निजी क्षेत्र की भागीदारी से धन व अन्य संसाधन जुटाने में बड़ी मदद मिलेगी और सरकारी कोष पर दबाव काम होगा. एक बड़ी समस्या इलाज पर होनेवाले खर्च की भी है. देश की आबादी का बड़ा हिस्सा गरीब और कम आमदनी का है.

सरकार द्वारा दो हजार दवाओं और तीन हजार चीजों को बहुत सस्ते दाम पर मुहैया कराने की घोषणा बड़े राहत की बात है. बड़े अस्पतालों को कुछ ऐसे पाठ्यक्रम चलाने की अनुमति भी दी गयी है, जिससे विशेषज्ञों की संख्या बढ़ सके. आशा है कि जल्दी ही इन घोषणाओं पर अमल भी शुरू हो जायेगा.

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