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विज्ञान को प्राथमिकता

वैज्ञानिक शोध के अभाव में विकास और समृद्धि के लक्ष्यों की प्राप्ति संभव नहीं है. लेकिन हमारे देश में इस क्षेत्र में समुचित प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है. भारत रत्न से सम्मानित प्रख्यात वैज्ञानिक चिंतामणि नागेश रामचंद्र राव ने निराशा जतायी है कि कारोबार, बैंकिंग, धन, सूचना तकनीक आदि तो सुर्खियों में रहते हैं, पर […]

वैज्ञानिक शोध के अभाव में विकास और समृद्धि के लक्ष्यों की प्राप्ति संभव नहीं है. लेकिन हमारे देश में इस क्षेत्र में समुचित प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है.

भारत रत्न से सम्मानित प्रख्यात वैज्ञानिक चिंतामणि नागेश रामचंद्र राव ने निराशा जतायी है कि कारोबार, बैंकिंग, धन, सूचना तकनीक आदि तो सुर्खियों में रहते हैं, पर विज्ञान कभी-कभार ही चर्चा में रहता है तथा सरकार भी इस पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रही है. भारत वैश्विक मंच पर बड़ी शक्ति के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करना चाहता है. इस संदर्भ में प्रोफेसर राव का यह प्रश्न प्रासंगिक है कि बिना विज्ञान में बड़ी शक्ति बने ऐसा कैसे हो सकता है.

बीते सालों में विज्ञान के शोध पत्रों के प्रकाशन में भारत ने संतोषजनक प्रगति की है. पिछले साल जारी एल्सवियर रिपोर्ट के अनुसार प्रकाशन के मामले में भारत पांचवे पायदान पर पहुंच गया है तथा उससे ऊपर अमेरिका, चीन, ब्रिटेन व जर्मनी का स्थान है. वैश्विक स्तर पर प्रकाशन में वार्षिक वृद्धि दर चार प्रतिशत है, जबकि भारत में यह आंकड़ा दस प्रतिशत है. किंतु अन्य अध्ययनों में इन पत्रों के उद्धृत होने के लिहाज से शीर्ष के दस देशों में भारत सबसे नीचे है. अधिक संख्या में उद्धृत होना शोध की गुणवत्ता को इंगित करता है.

हालांकि, हमारे देश में अनेक उत्कृष्ट शोध संस्थान हैं, पर गत वर्ष नेचर पत्रिका के वैश्विक सूचकांक में शीर्षस्थ संस्थाओं में बंगलुरु के सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च को ही सातवां स्थान मिल सका था. वैज्ञानिक अनुसंधान का मुख्य केंद्र विश्वविद्यालय हैं.

वर्ष 2019 में टाइम्स हायर एजुकेशन की सूची में शीर्ष के 300 विश्वविद्यालयों में एक भी भारत से नहीं था. बंगलुरु का भारतीय विज्ञान संस्थान पहले इस दायरे में था, पर शोध पत्रों के कम उद्धृत होने तथा शोध, शैक्षणिक वातावरण व औद्योगिक आय में कमी की वजह से ऐसा हुआ है.

सात वर्षों में ऐसा पहली बार है, जब कोई भी भारतीय विवि शीर्ष के 300 सस्थानों में शामिल नहीं है. हमारे वैज्ञानिकों व शोध संस्थाओं की यह शिकायत रही है कि अक्सर उनके प्रस्तावों के लिए समुचित धन उपलब्ध नहीं होता है तथा चल रही परियोजनाओं के लिए समय पर भुगतान नहीं हो पाता है. यह विडंबना ही है कि अर्थव्यवस्था बढ़ने के बावजूद अनेक सालों से शोध व अनुसंधान के लिए बजट आवंटन सकल घरेलू उत्पादन के केवल 0.7 प्रतिशत के आसपास है.

आवंटन में सालाना बढ़त को अगर मुद्रास्फीति के हिसाब से देखें, तो उस बढ़त का कोई मतलब नहीं रह जाता है. हमारे देश में पत्र प्रकाशन और डॉक्टरेट शोध पर खर्च विकसित देशों या चीन जैसे विकासशील देशों की तुलना में बहुत कम है.

इन समस्याओं के समाधान की ठोस पहल बहुत आवश्यक है. वैज्ञानिक शोध को वर्तमान और भविष्य की उपयोगिताओं, अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा तथा संसाधनों के बेहतर उपयोग जैसे कारकों से भी जोड़ा जाना चाहिए. उच्च स्तर के शोध व अनुसंधान के लिए सुविचारित नीतिगत दृष्टि निर्धारित करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए.

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