देश के अनेक हिस्सों में नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) को लेकर कई दिनों से आंदोलन हो रहे हैं. इसी बीच सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या पंजी (एनपीआर) तैयार करने की घोषणा कर दी है. ऐसे में इन तीनों मामलों को लेकर भ्रम बढ़ना स्वाभाविक है.
सरकार का कहना सही हो सकता है कि एनपीआर की प्रक्रिया यूपीए सरकार के समय निर्धारित प्रावधान के अनुरूप ही है और इसमें भी नागरिकता से संबंधित कोई दस्तावेज नहीं मांगा जायेगा, लेकिन भ्रम तब पैदा होता है, जब सरकार यह कहती है कि इसका एनआरसी से कोई लेना देना नहीं है. संसद में और बाहर सरकार कहती रही है कि नागरिकता कानून में संशोधन के बाद एनआरसी लागू होगी, पर अब कहा जा रहा है कि इस मसले पर कोई विचार नहीं किया गया है.
वर्ष 2003 के नागरिकता संशोधन कानून में जनसंख्या पंजी का उल्लेख है. उसमें कहा गया है कि सत्यापन के दौरान दस्तावेज मांगे जा सकते हैं और नागरिकता वापस ली जा सकती है. यूपीए और एनडीए सरकारों के समय जारी गृह मंत्रालय की अधिकतर वार्षिक रिपोर्टों में राष्ट्रीय नागरिक पंजी का हवाला है. वर्ष 2014-15 की रिपोर्ट में कहा गया है कि नागरिकों की पंजी बनाने के पहले कदम के रूप में जनसंख्या पंजी बनाने का निर्णय लिया गया है. इससे पहले 2008-09 की रिपोर्ट में भी दोनों पंजियों को जुड़ा हुआ बताया गया है.
वर्ष 2005-06 की रिपोर्ट ने रेखांकित किया था कि हर व्यक्ति की नागरिकता का सत्यापन बहुत कठिन है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरी दस्तावेज तुरंत उपलब्ध नहीं हैं. इसी वजह से तत्कालीन सरकार ने नागरिक पंजी बनाने की पहल नहीं की थी. जनसंख्या पंजी के सत्यापन के दौरान कथित रूप से माता-पिता के जन्मस्थान की जानकारी मांगने की खबरों ने भी भ्रम को बढ़ाया है.
इस स्थिति की जिम्मेदारी सरकार को लेनी चाहिए और देश के सामने स्पष्टता के साथ जानकारी रखनी चाहिए. इसमें कोई दो राय नहीं है कि अवैध आप्रवासियों की पहचान जरूरी है, परंतु यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नागरिकों को अपनी नागरिकता का सबूत देने में बहुत मुश्किलों का सामना न करना पड़े.
उससे पहले ऐसी प्रक्रियाओं के बारे में लोगों को भरोसे में लेने की कोशिश भी होनी चाहिए. सरकारी योजनाओं के लिए देश में रह रहे लोगों की सही संख्या का आकलन होना चाहिए और एनपीआर को जनगणना की प्रक्रिया से जोड़ना भी ठीक है, किंतु यह समझा जाना चाहिए कि समस्या संशोधित कानून और एनआरसी तथा एनपीआर और एनआरसी के जुड़ाव के बयानों व दस्तावेजों के कारण उत्पन्न हुई है.
यदि भ्रम को दूर नहीं किया गया, तो विरोध जारी रहने तथा इस प्रक्रिया को पूरा जन-सहयोग नहीं मिलने की आशंका बनी रहेगी. इससे राष्ट्रीय जनसंख्या पंजी बनाने के काम पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. ठोस स्पष्टीकरण से वर्तमान स्थिति को सामान्य बनाने तथा लोगों में व्याप्त आशंकाओं को दूर करने में बड़ी मदद मिलेगी.