डॉ लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता
सहायक प्राध्यापक, इलाहाबाद विवि
lakshman.ahasas@gmail.com
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अकहानी आंदोलन के प्रवर्तक का असमय जाना!
डॉ लक्ष्मण प्रसाद गुप्तासहायक प्राध्यापक, इलाहाबाद विविlakshman.ahasas@gmail.com दिसंबर के दूसरे हफ्ते में रजा फाउंडेशन के कार्यक्रम ‘आज कविता’ में कविता पढ़ने के लिए मंच पर मौजूद था. सामने दर्शक दीर्घा में विमल सर बैठे हुए थे. यह एक सुखद अनुभूति थी, ये जानने की उत्सुकता भी कि मेरी कविताएं उन्हें कैसी लगीं. जीवन के आठवें […]
दिसंबर के दूसरे हफ्ते में रजा फाउंडेशन के कार्यक्रम ‘आज कविता’ में कविता पढ़ने के लिए मंच पर मौजूद था. सामने दर्शक दीर्घा में विमल सर बैठे हुए थे. यह एक सुखद अनुभूति थी, ये जानने की उत्सुकता भी कि मेरी कविताएं उन्हें कैसी लगीं. जीवन के आठवें दशक में भी विमल सर यानी प्रो गंगा प्रसाद विमल जीवन से भरपूर थे. इलाहाबाद विवि, इलाहाबाद के साहित्यिक माहौल के बारे में वे जानना चाहते थे.
हिंदी साहित्य में ‘अकहानी’ के प्रवर्तक के रूप में अपनी पहचान बनानेवाले वरिष्ठ साहित्यकार गंगा प्रसाद विमल अब हमारे बीच नहीं रहे. उनके निधन की खबर तीन दिनों के बाद हम सभी के पास पहुंची. श्रीलंका की पारिवारिक यात्रा पर गये गंगा प्रसाद का निधन कार हादसे में 23 दिसंबर को ही हो गया था, जिसमें उनकी पुत्री और नाती की भी मृत्यु हो गयी.
तीन जुलाई, 1939 को उत्तरकाशी (उत्तराखंड) में जन्मे गंगा प्रसाद विमल हिंदी साहित्य में अपनी तरह के अनूठे रचनाकार रहे हैं. कविता लेखन से अपनी साहित्यिक यात्रा शुरू करनेवाले विमलजी ने साठ के दशक में ‘अकहानी’ आंदोलन की शुरुआत कर हिंदी कहानी को एक नया स्वरूप दिया था.
उनके रचनात्मक व्यक्तित्व का बड़ा आयाम उनके अनुवादक होने के साथ भी उभरा, जहां उन्होंने देश-दुनिया के साहित्य से हिंदी समाज को परिचित कराया. विश्व साहित्य की बेहतरीन समझ रखनेवाले विमलजी भारतीय ज्ञान-मीमांसा में भी गहरी पैठ रखते थे. उनकी निर्मिति में जितना योगदान पहाड़ की मिट्टी का था, उतना ही उन शहरों का भी, जहां उन्होंने शिक्षा ली- मसलन बनारस, इलाहाबाद और चंडीगढ़.
बनारस में नव गीतकारों की प्रेरणा से लेखन की शुरुआत करनेवाले विमलजी का साहित्यिक विस्तार इलाहाबाद की आब-ओ-हवा में हुआ.
वहां से चंडीगढ़ जाने के बाद आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के सान्निध्य में उनका जो व्यक्तित्व बना, उसने देश-दुनिया को बिल्कुल ही अलग तरह से देखा. उस दौर की देश-विदेश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में विमलजी को स्थान मिला. अपने स्वभाव से बेहद स्वाभिमानी विमलजी ने कभी भी साहित्यिक कर्म को प्रचार-प्रसार का जरिया नहीं बनाया, बेहद खामोशी से अपना काम करते रहे.
जाकिर हुसैन कॉलेज हो या जेएनयू, दोनों जगह पढ़ाते हुए उन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध तो किया ही, अपने समय में बेहद रचनात्मक विद्यार्थियों की पीढ़ी भी तैयार की. उन्हें जाननेवाले जानते हैं कि वह अपने मित्रों और विद्यार्थियों के लिए हमेशा ही उपस्थित रहे. इसकी एक झलक उनके लिए सोशल मीडिया पर उमड़ी श्रद्धांजलियों में देखी जा सकती है. गंगा प्रसाद विमल हिंदी के विरल रचनाकारों में थे.
उनकी प्रमुख कृतियां- ‘बोधि-वृक्ष’, ‘सन्नाटे में मुठभेड़’, ‘मैं वहां हूं’, ‘कुछ तो है’, ‘अखबार तथा अन्य कविताएं’ (काव्य-संग्रह), ‘कोई शुरुआत’, ‘इधर-उधर’, ‘बाहर न भीतर’, ‘खोई हुई थाती’, ‘इंतजार में घटना’, ‘अतीत में कुछ’ (कहानी-संग्रह), ‘अपने से अलग’, ‘कहीं कुछ और’, ‘मरीचिका’, ‘मृगांतक’, ‘मानुषखोर’ (उपन्यास) हैं. उनकी कविताओं, कहानियों और उपन्यासों में ग्रामीण समाज, विशेषकर पहाड़ अपनी पूरी संवेदना और जीवन-संघर्ष के साथ उपस्थित होते हैं, वहीं नगरीय समाज का आधुनिक बोध और उनकी विसंगतियों की भी बारीक पहचान होती है.
उनके लेखन पर अभी ठीक ढंग से काम होना शेष है. उनके लेखन में हमारे समय और भविष्य के बहुत से बारीक सूत्र बिखरे पड़े हैं. अभी कुछ दिन पूर्व ही उन्होंने अपनी चर्चित कविता ‘स्मृति की रेखा’ की चर्चा की थी और उसका एक बिल्कुल ही नया रूप ‘पलायन’ शीर्षक से लिखा था. इन दिनों भाषा पर वह अपनी पुस्तक तैयार कर रहे थे. हिंदी भाषा और उसके सामयिक संदर्भ के तमाम पहलुओं पर वे नये सिरे से विचार कर रहे थे. उनके असमय जाने की खबर ऐसी है कि हम इस खबर को ही समझने की कोशिश कर रहे हैं.
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