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सर्दी का सुख
मिथिलेश कु राय युवा कवि mithileshray82@gmail.com सवेरे का समय था. पूरब में लाल सूर्य उदित हो रहा था. लेकिन कुहासे के कारण उसकी छटा ठीक से बिखर नहीं पा रही थी. दाने की खोज में निकली चिड़ियां किल्लोल कर रही थीं. ताजे खिले फूलों पर ओस की बूंदें चमकती हुई दिख रही थीं. सामने के […]
मिथिलेश कु राय
युवा कवि
mithileshray82@gmail.com
सवेरे का समय था. पूरब में लाल सूर्य उदित हो रहा था. लेकिन कुहासे के कारण उसकी छटा ठीक से बिखर नहीं पा रही थी. दाने की खोज में निकली चिड़ियां किल्लोल कर रही थीं. ताजे खिले फूलों पर ओस की बूंदें चमकती हुई दिख रही थीं. सामने के हरसिंगार के पौधे से गिरे हुए फूल नीचे धरती पर जैसे सो रहे थे. जहां तक फूल गिरे हुए थे, लग रहा था कि उतनी दूर की धरती को सजाया-संवारा गया हो!
कक्का की पलकें गिर नहीं रही थी. वे एकटक दृश्यों को निहारे जा रहे थे. काकी गिलास में चाय ले आयी, तो उनकी तंद्रा टूटी. आह! उन्होंने इस शब्द का उच्चारण किया और गिलास से उठते भाप के सुगंध को महसूसने लगे. मैंने भी चाय की पहली घूंट ली. वाकई. गजब स्वाद था.
अदरक वाली चाय थी. मैं उनकी तरफ देखकर मंद-मंद मुस्कुराने लगा. वे भी चाय की पहली घूंट भर चुके थे. बोले कि यह सर्दी का सुख है.
मौसम अपने साथ कुछ आनंद लेकर आता है. अदरक वाली चाय सर्दी के मौसम का पहला सुख है. वे कह रहे थे कि इस मौसम में अगर सवेरे अदरक वाली चाय मिल जाये, तो दिन बन जाता है! फिर वे यह बताने लगे कि कल हाट में अदरक और धनिया की पत्तियों पर नजर पड़ी, तो वे खुद को रोक नहीं पाये.
धनिया की चटनी! इतना सोचते ही मेरे मुंह में पानी आ गया. कैसा भी भोजन हो, अगर साथ में धनिया की चटनी मिल जाये, तो उसमें चार चांद लग जाते हैं. कक्का को भी धनिया से चटनी की याद आ गयी थी. कहने लगे कि चटनियों का भी अपना अलग ही महत्व है. भोजन का क्या है.
दाल-भात और सब्जी-रोटी अपने आप में पूर्ण भोजन है. लेकिन मनुष्यों ने चटनियों के बारे में भी सोचा. चटनियां भोजन को शृंगारित करती हैं. स्वाद को तुष्टि के स्तर तक पहुंचाने में मदद करती हैं. फिर वे यह कहने लगे कि अगर फलों में राजा की तरह चटनियों में रानी का भी चुनाव हुआ होता, तो निश्चित ही धनिया की चटनी ही विजयी घोषित की गयी होती! कक्का ठीक कह रहे थे. ऐसा कौन है जिसके मन को धनिया की चटनी नहीं भाती होगी. चटनी देख सबका जी ललचाता है. किसी-किसी को तो बहुत ही पसंद होता है.
पिछले साल सर्दी की बात है. एक स्त्री दूसरी स्त्री से अपने मन का उद्गार व्यक्त कर रही थी. वह धनिया की चटनी में डालने के लिए आंवले को धो रही थी और यह कह रही थी कि अगर सिर्फ धनिया की चटनी मिल जाये, तो मैं उसके साथ चार-पांच रोटी खा लूंगी. जबकि खुराक सिर्फ तीन रोटी की है. जब मैंने यह बात कक्का को बतायी, तो वे कहने लगे कि सच कह रही थीं, चटनी का स्वाद बड़ा मारक होता है.
कक्का कहने लगे कि सर्दी आने से फल और सब्जियों से यह दुनिया सज जाती है. जैसे उन्हें इस मौसम का बेसब्री से इंतजार हो. साग-सब्जियां मनुष्यों को तृप्ति से भर देती हैं. रोज खाते हैं, लेकिन अघाते नहीं. आलू-गोभी और बैगन-मूली को ही देख लो. देगची में मिलन होते ही वातावरण में एक दिव्य गमक फैल जाती है और भूख जागृत हो उठती है!
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