नशे की लत से लोगों को निकालने की कोशिशों के बीच एक बड़ी चिंता यह भी है कि नशे के नये-नये औजार व उत्पाद चलन में आ रहे हैं. इ-सिगरेट ऐसी ही एक चीज है, जिसने भारत समेत दुनियाभर में बड़ी संख्या में किशोरों और युवाओं को शिकार बनाया है. पिछले साल अदालत द्वारा जवाब-तलब करने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने निकोटिन लेने के इलेक्ट्रॉनिक तरीकों पर रोक लगाने का निर्देश जारी किया था. इस पर अमल करते हुए इस साल मार्च तक 12 राज्यों ने इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों से निकोटिन के सेवन को बंद करने का आदेश दे दिया था. पिछले साल इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना तकनीक मंत्रालय ने भी नियमों में बदलाव की जरूरत पर जोर दिया था.
आयातित इ-सिगरेट के दवा नियंत्रक द्वारा जांच का भी निर्देश जारी हुआ था. इसके बावजूद यह नशा बाजार में मौजूद रहा और युवाओं को आकर्षित करता रहा. अब केंद्र सरकार ने अध्यादेश के जरिये इ-सिगरेट पर कानूनी पाबंदी लगा दी है. अनेक अध्ययनों के मुताबिक, नशे का यह तरीका धूम्रपान के अन्य प्रचलित रूपों से कम नुकसानदेह है, लेकिन यह बच्चों, किशोरों तथा गर्भस्थ शिशु के लिए बेहद घातक है.
पर लगभग एक दशक से इसके बढ़ते चलन को लेकर गंभीरता नहीं दिखायी गयी थी. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि 2005 में सिर्फ एक चीनी कंपनी इस उत्पाद को बनाती थी, पर वैश्विक स्तर पर आज इसके तकरीबन 500 ब्रांड हैं और यह आठ हजार स्वादों में बाजार में उपलब्ध है. इ-सिगरेट के विस्तार का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसका कुल व्यवसाय तीन अरब डॉलर तक जा पहुंचा है. भारत में इसकी आपूर्ति मुख्य रूप से चीन से होती है तथा लगभग 50 फीसदी खरीद-बिक्री ऑनलाइन होती है. मई, 2017 में सरकार ने इ-सिगरेट के नुकसान के बारे में जानकारी जुटाने के लिए विशेषज्ञों के एक समूह का गठन किया था. इस दल का निष्कर्ष था कि इ-सिगरेट कैंसर की वजह बन सकती है और लोग इसके आदी हो सकते हैं.
पिछले साल छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसकी लत दिल के दौरे की संभावना करीब 80 फीसदी तक बढ़ा सकती है. इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद होने के कारण इसके सेवन में निकोटिन के साथ बैटरी, प्लास्टिक और स्वाद बढ़ानेवाले रसायन जैसे अनेक नुकसानदेह तत्व भी शरीर में पहुंचते हैं.
हमारे देश में पहले से ही तंबाकू कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों का वाहक बना हुआ है. ऐसे में इ-सिगरेट के जरिये भी निकोटिन एवं अन्य खतरनाक तत्वों का सेवन स्थिति को और भयावह बना सकता है. अब तक तीन दर्जन से ज्यादा देशों में इस पर रोक लगायी जा चुकी है तथा अमेरिका और अनेक देशों के कई राज्यों और शहरों में इसकी खरीद-बिक्री व सेवन की मनाही है. कड़ाई से कानून लागू करने के साथ सरकार, मीडिया और सामाजिक संगठनों के द्वारा इस उत्पाद के बारे में लोगों तक समुचित सूचनाएं पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए, ताकि जागरूगता का प्रसार हो सके.