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सीमा पर समझदारी जरूरी

शशांक पूर्व विदेश सचिव delhi@prabhatkhabar.in बीते दिनों लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच कुछ कहासुनी और धक्का-मुक्की की खबर आयी. भारत और चीन के बीच कई क्षेत्रों में सीमा-निर्धारण नहीं हुआ है और इसको लेकर शीर्ष नेताओं के अलावा प्रधानमंत्री स्तर की बातचीत भी होती रही है कि अच्छी तरह […]

शशांक
पूर्व विदेश सचिव
delhi@prabhatkhabar.in
बीते दिनों लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच कुछ कहासुनी और धक्का-मुक्की की खबर आयी. भारत और चीन के बीच कई क्षेत्रों में सीमा-निर्धारण नहीं हुआ है और इसको लेकर शीर्ष नेताओं के अलावा प्रधानमंत्री स्तर की बातचीत भी होती रही है कि अच्छी तरह से सीमा-निर्धारण हो जाये, तो आगे आनेवाले समय के लिए बेहतर होता. लेकिन बात अभी तक कुछ ठोस निर्णय लेने की स्थिति तक नहीं पहुंची है. सीमा-निर्धारण न होने से दाेनों देशों के सैनिक गश्त में टकरा जाते हैं और इस तरह की झड़पें हो जाती हैं.
पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर जब भारतीय सैनिक गश्त पर थे, तब चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी के जवानों ने भारती
य सैनिकों के वहां होने का विरोध किया. इस विरोध के चलते कुछ कहासुनी हुई होगी और फिर बात धक्का-मुक्की तक पहुंच गयी होगी. हालांकि, खबर आयी कि देर शाम तक चले दोनों पक्षों के बीच उस झड़प के बाद दोनों पक्ष ब्रिगेडियर स्तर के अधिकारियों के बीच बातचीत पर सहमत हुए और मामला शांत हो गया. लेकिन, प्रश्न मामला शांत होने का नहीं है.
चीनी सैनिकों द्वारा गश्त पर मौजूद भारतीय सैनिकों का इस तरह विरोध उचित नहीं है. अगर चीन के सैनिकों को ऐतराज ही था, तो उन्हें पहले अपने अधिकारियों को सूचित करना चाहिए था. सीमाओं पर देशों के जवानों का एक-दूसरे से आमना-सामना स्वाभाविक है, ऐसे में जरा-जरा सी बात के लिए बहस करना उचित नहीं होता, क्योंकि बात अगर बढ़ गयी, तो उसका असर दोनों देशों के रिश्ते पर पड़ता है.
पैंगोंग झील 134 किलोमीटर लंबी है, जिसके एक-तिहाई हिस्से पर चीन का नियंत्रण है. इस नियंत्रण के होने के चलते ही चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी के जवानों की दबंगई सामने आती रहती है.
हालांकि, चीन और भारत के रिश्ते अब 62 या 71 की तरह नहीं हैं, अब दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध हैं, खास तौर पर भारतीय प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकातों से इस बात की तस्दीक भी होती है, इसलिए ऐसी छोटी-मोटी झड़पों से घबराने की जरूरत नहीं है.
एक बात बहुत महत्वपूर्ण है कि भारत और चीन के बीच एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा की मौजूदा स्थिति को लेकर दोनों देशों की अपनी-अपनी धारणाएं हैं, इसलिए भी जवानों के बीच मतभेद उभरते रहे हैं.
गौरतलब है कि पैंगोंग झील के उसी उत्तरी किनारे पर 15 अगस्त, 2017 को भी दोनों देशों के सैनिकों के बीच गंभीर झड़प हुई थी. ऐसी झड़पों के समाधान के लिए प्रक्रिया यही है कि दोनों देशों के ब्रिगेडियर स्तर के अधिकारियों के बीच बातचीत हो और फिर मामले को शांत किया जाये. लेह और लद्दाख में ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्र हैं और एक तरह वे मुश्किल भरे इलाके हैं. पहाड़ी क्षेत्रों में सेना के जवानों की अपनी अलग ही परेशानियां होती हैं, जिसके चलते उनके बीच कई बार झड़पें हो जाती हैं.
हाल ही में भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य वाले अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया और उसको दो हिस्से में बांट दिया, जिसमें जम्मू-कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश होगा, वहीं लद्दाख को दूसरा केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया. चीन ने जरूर उस समय इसका विरोध किया था और कश्मीर की मौजूदा हालत को लेकर अपनी चिंता जाहिर की थी, लेकिन भारत ने उसे खारिज कर इसे अपना आंतरिक मामला बताया था.
यह खबर भी आयी थी कि चीन ने भारतीयों के एक समूह को मानसरोवर जाने के लिए वीजा देने में देरी की. लेकिन, यह इतना आसान नहीं था चीन के लिए, इसलिए उसने माना कि ऐसी कोई बात नहीं है. लद्दाख में दोनों देशों के जवानों के बीच झड़प को इससे जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए.
भारत और चीन के संबंध में एक बात बहुत महत्वपूर्ण यह है कि इन दोनों के पड़ोसी होने के नाते पाकिस्तान को लेकर इन्हें आपस में मतभेद नहीं पनपने देना चाहिए. चीन पीअोके में सीपीइसी बना रहा है, इसलिए वह पीओके की तमाम गतिविधियों पर नजर रखता है.
वह कश्मीर भारत का है, जिस हिस्से पर पाकिस्तान ने अधिकार जमा रखा है. इसलिए हमारे लिए जरूरी है कि उस क्षेत्र को लेने के लिए बातचीत की जाये, जैसा कि शिमला समझौते में यह तय हुआ था कि ऐसे मसलों का हल बातचीत से ही निकाला जायेगा. इसलिए छोटी-छोटी बातों से घबराने की जरूरत नहीं है और बातचीत के लिए वातावरण बनाने की जरूरत है.
भारत और चीन के बीच सीमा रेखा को लेकर कई धारणाएं पलती रही हैं. इस मसले पर गंभीर बातचीत की जरूरत है. दोनों देशों के बीच एलएसी पर संयुक्त गश्त करने के मुद्दे पर अभी तक कोई सर्वसम्मति नहीं बन पायी है.
इसके लिए बातचीत तो करनी ही होगी. शीर्ष सैन्य अधिकारियों के स्तर से लेकर शीर्ष वैदेशिक अधिकारियों के स्तर पर, विदेश मंत्रियों से लेकर राष्ट्राध्यक्षों के स्तर पर इस मसले पर बातचीत के लिए माहौल बनाना चाहिए. हमारे लिए तो यह बहुत अच्छी बात है कि मोदी और जिनपिंग अच्छे मित्र की तरह मुलाकात करते हैं. इसलिए इनसे ज्यादा उम्मीद है कि एलएसी का मसले पर द्विपक्षीय स्तर पर बातचीत के जरिये जल्दी ही कोई हल निकालने की कोशिश की जायेगी.
कई अन्य विवादों की तरह चीन और भारत के बीच सीमा विवाद भी समय-समय पर उठते रहे हैं. चीन कभी डोकलाम में दबंगई दिखा देता है, कभी किसी और क्षेत्र में. उसका रवैया उचित तो नहीं है, इसलिए भी एलएसी को लेकर अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए. चीन को यह बात समझनी ही चाहिए कि वह और भारत एशिया के दो बड़े देश हैं और इन दोनों के बीच का सकारात्मक माहौल पूरे एिशया के लिए जरूरी है.
इसलिए पाकिस्तान को लेकर अपने रिश्तों को ये खराब न करें और अपनी शक्तियों का इस्तेमाल एिशया में शांति की स्थापना के लिए करें. यह न सिर्फ भारत-चीन के लिए जरूरी है, बल्कि दुनियाभर के लिए भी जरूरी है, क्योंकि जहां-जहां भी सीमा विवाद आदि हैं, उनको हल करने में ये दोनों मिसाल कायम कर सकते हैं. लद्दाख में सेना के जवानों को समझाना चाहिए और उन्हें दोनों देशों के बेहतर रिश्तों के बारे में बता-समझाकर सीमा पर माहौल को खराब होने से बचाना चाहिए.

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