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मलेरिया की मुश्किल

धरती पर अभी तक जितने भी इंसान पैदा हुए हैं, उनमें से आधे लोगों की मौत की वजह मच्छर जनित रोग हैं. इन रोगों से आज भी हर साल लाखों लोगों की मौत हो जाती है. इनमें सबसे ज्यादा खतरनाक मलेरिया है. इस रोग से ग्रस्त लोगों और होनेवाली मौतों में 2030 तक 90 फीसदी […]

धरती पर अभी तक जितने भी इंसान पैदा हुए हैं, उनमें से आधे लोगों की मौत की वजह मच्छर जनित रोग हैं. इन रोगों से आज भी हर साल लाखों लोगों की मौत हो जाती है. इनमें सबसे ज्यादा खतरनाक मलेरिया है. इस रोग से ग्रस्त लोगों और होनेवाली मौतों में 2030 तक 90 फीसदी कमी (2015 की तुलना में) का वैश्विक लक्ष्य रखा गया है, परंतु इसके लिए 2020 तक अपेक्षित तैयारी नहीं हो सकी है.
अगले साल तक रोगियों व मृतकों की संख्या में 40 फीसदी कमी तथा कम-से-कम 10 देशों से मलेरिया निवारण करने का इरादा तय हुआ है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि दुनियाभर में स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास के लिए जो धन खर्च हो रहा है, उसका एक फीसदी भी मलेरिया की रोकथाम के लिए आवंटित नहीं है.
इस मद के लिए 2017 में 4.4 और 2020 तक 6.6 अरब डॉलर की जरूरत का आकलन है. पर, 2017 में 1.3 अरब डॉलर की कमी रही थी. मलेरिया पर नियंत्रण के लिए आवश्यक राजनीतिक इच्छाशक्ति और ठोस नेतृत्व तथा समुचित अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी संतोषजनक नहीं है.
इस समस्या पर बेहद गंभीरता की दरकार है, क्योंकि 2017 में 87 देशों से मलेरिया के लगभग 22 करोड़ मामले सामने आये थे और चार लाख से अधिक लोग मारे गये थे. मरनेवालों में 60 फीसदी से ज्यादा पांच साल से कम उम्र के बच्चे थे. मच्छर के कारण पैदा होनेवाले रोगों में मलेरिया अन्य उष्णकटिबंधीय देशों की तरह भारत के लिए भी बेहद चिंताजनक है, क्योंकि सर्वाधिक प्रभावित देशों में यह चौथे स्थान पर है तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के तीन-चौथाई रोगी हमारे यहां हैं. हाल के वर्षों में डेंगू की बढ़त के बाद भी मलेरिया की आशंका चार गुना अधिक है. हमारे देश में इस रोग के 80 फीसदी मामले आबादी के 20 फीसदी हिस्से से आते हैं.
यह आबादी गुजरात, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडिशा और महाराष्ट्र में बसती है. अकेले ओडिशा में देशभर के करीब 41 फीसदी मलेरिया के मरीज हैं. जल-जमाव और सीलन के कारण मच्छरों की बढ़वार होती है तथा निर्धनता, कुपोषण और समय पर उपचार नहीं मिलने के कारण रोगियों को बचाने में परेशानी होती है.
हालांकि यह भी उल्लेखनीय है कि 2000 के बाद से मौतों की तादाद में 66 फीसदी की कमी आयी है तथा 2016 की तुलना में 2017 में रोग के मामलों में 24 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी. सरकार की ओर से 2017 में मलेरिया उन्मूलन योजना की शुरुआत की गयी है और इस वर्ष भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने इस दिशा में सक्रिय संगठनों का एक साझा मंच भी तैयार किया है. स्वच्छ भारत अभियान के साथ मच्छरजनित रोगों के बारे में व्यापक जागरुकता के प्रसार की आवश्यकता बनी हुई है.
आगामी वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों में पीने का साफ पानी उपलब्ध कराने के कार्यक्रम से भी ऐसे रोगों की रोकथाम की उम्मीद है. यदि आगामी वर्षों में प्रयास तेज किये जाएं, तो मलेरिया से मुक्ति संभव है.

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