ब्राजील के तटीय शहर फोर्तालेजा में ब्रिक्स देशों की बैठक में ब्रिक्स विकास बैंक और संचय कोष के गठन की घोषणा अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य की महत्वपूर्ण परिघटना है. 2009 में रूस के येकातेरिनबर्ग में हुए इस संगठन के पहले शिखर सम्मेलन में ही रूस, भारत, चीन और ब्राजील (दक्षिण अफ्रीका 2010 में सदस्य बना था) ने अमेरिका-नियंत्रित अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक तथा जापानी प्रभुत्ववाले (एवं अमेरिकी प्राथमिकताओं को महत्व देनेवाले) एशियन डेवलपमेंट बैंक के रवैये के विरुद्ध एक अलग वित्तीय व्यवस्था की आवश्यकता को रेखांकित किया था.
मौजूदा सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ब्रिक्स बैंक व कोष को ‘नयी आर्थिक कठिनाइयों को रोकने के लिए बहुत शक्तिशाली राह’ कहा, तोब्राजीली राष्ट्रपति दिल्मा रोसेफ ने इसे ‘समय का संकेत’ बताते हुए मुद्रा कोष की निर्णय-प्रक्रिया में तुरंत सुधार की मांग की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक तंत्र को विकासशील देशों की आकांक्षाओं को ध्यान में रखना होगा और ब्रिक्स की यह पहल इस तंत्र में खुलापन लायेगी, जो वैश्विक आर्थिक विकास के लिए बहुत जरूरी है.
चीन के शंघाई में स्थित होनेवाले ब्रिक्स बैंक में 50 बिलियन डॉलर की आधार पूंजी होगी, जिसे 100 बिलियन डॉलर तक बढ़ाया जायेगा. इसमें सभी सदस्य देशों की देनदारी बराबर होगी. 100 बिलियन डॉलर के संचय कोष में चीन 41 बिलियन डॉलर, ब्राजील, भारत व रूस 18-18 बिलियन डॉलर और दक्षिण अफ्रीका 5 बिलियन डॉलर जमा करेंगे. इन दोनों वित्तीय संस्थाओं का कार्यक्षेत्र ब्रिक्स देशों तक ही सीमित न होकर वैश्विक स्तर पर होगा. पहले साल बैंक की अध्यक्षता भारत को मिलना न सिर्फ ब्रिक्स को लेकर उसकी गंभीरता का रेखांकन है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सदस्य देशों के भरोसे का परिचायक भी है.
मोदी ने आर्थिक विषमता, आतंक और राजनीतिक संकटों से जुड़े अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम पर भारत की राय को दृढ़ता से रख कर अपनी राजनयिक क्षमता का सराहनीय प्रदर्शन किया है. ब्रिक्स की राह में अभी कई अवरोध हैं, पर बैंक और कोष का गठन 2006 में रची गयी ब्रिक्स की परिकल्पना के साकार होने का ठोस प्रमाण है.