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पड़ोसी देशों से बेहतर संबंध

अमित रंजन रिसर्च फेलो, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर amitranjan.jnu@gmail.com अपने दूसरे कार्यकाल की पहली विदेश यात्रा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मालदीव को चुना है. वे आठ व नौ जून को मालदीव में होंगे तथा संसद को संबोधित करेंगे. वहां से लौटने के क्रम में वे नौ जून को श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में […]

अमित रंजन
रिसर्च फेलो, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर
amitranjan.jnu@gmail.com
अपने दूसरे कार्यकाल की पहली विदेश यात्रा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मालदीव को चुना है. वे आठ व नौ जून को मालदीव में होंगे तथा संसद को संबोधित करेंगे. वहां से लौटने के क्रम में वे नौ जून को श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में रुकेंगे.
भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार, द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा करने और उन्हें बेहतर बनाने के लिए विचारों के आदान-प्रदान की दृष्टि से यह दौरा एक महत्वपूर्ण अवसर है. मंत्रालय का यह भी कहना है कि इन पड़ोसी द्वीपीय देशोंं की प्रधानमंत्री की यात्रा हमारी प्राथमिकता ‘पड़ोसी पहले’ (नेबरहुड फर्स्ट) की नीति तथा ‘सागर’ (इस क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा व विकास) के सिद्धांत से जुड़ी है.
हाल में संपन्न हुए संसदीय चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी की शानदार जीत पर सबसे पहले बधाई देनेवालों में मालदीव के नेता भी शामिल थे. वास्तव में मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति और स्पीकर मोहम्मद नशीद ने एक्जिट पोल में सत्ता में उनकी वापसी की संभावना के बाद ही उन्हें बधाई दे दी थी.
बतौर राष्ट्रपति अब्दुल्ला अमीन के शासनकाल (2013-2018) के दौरान मालदीव ने मुख्य रूप से चीन और सऊदी अरब से नजदीकी बढ़ायी थी तथा भारत से दूर जाने की कोशिश की थी. मालदीव में बड़े पैमाने पर चीनी निवेश भी हुए. परिणामस्वरूप, यह देश चीन के लगभग 1.5 अरब डॉलर के कर्ज में फंस गया.
सोलिह के सत्ता संभालने के तुरंत बाद चीन ने 3.2 अरब डॉलर का बिल भेजा था. हालांकि, चीन द्वारा इस बात से इनकार किया जाता रहा है. लेकिन, वह कहता रहा है कि कर्ज की यह राशि 1.5 अरब डॉलर के करीब है.
मालदीव की मदद के लिए दिसंबर, 2018 में राष्ट्रपति सोलिह की दिल्ली यात्रा के दौरान भारत ने इस द्वीपीय देश को 1.4 अरब डॉलर की सहायता देने की घोषणा की थी. उसी समय दोनों देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए अनेक समझौते भी किये थे. तब सोलिह भारतीय कारोबारियों से भी मिले थे और उन्हें मालदीव में निवेश का निमंत्रण दिया था. उस समय उन्होंने कहा था कि संयुक्त गश्ती और हवाई निगरानी के माध्यम से हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने के लिए भी दोनों पक्ष सहमत हो गये हैं.
इस साल मार्च में तत्कालीन विदेशमंत्री सुषमा स्वराज भी मालदीव की यात्रा पर गयी थीं. इस दौरे पर भी अनेक मसलों पर सहकार बढ़ाने के लिए समझौते किये गये थे, जिनमें वीजा सुविधा, विकास सहयोग और नवीकरणीय ऊर्जा प्रमुख थे.
वर्ष 2015 के राष्ट्रपति चुनाव में मैत्रिपाला सिरिसेना के हाथों महिंद्रा राजपक्षे की हार के बाद श्रीलंका के साथ भारत के रिश्ते तुलनात्मक रूप से बेहतर हुए हैं. मुख्य तौर पर राजपक्षे के दूसरे कार्यकाल (2010-2015) के दौरान भारतीय प्रभाव क्षेत्र से श्रीलंका की दूरी बढ़ती जा रही थी. पर, अब दोनों देशों के रिश्ते बेहतर हुए हैं.
लेकिन समय-समय पर श्रीलंका से प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के साथ राष्ट्रपति सिरिसेना के मतभेदों के समाचार आते रहते हैं तथा सिरिसेना ने अक्सर भारतीय खुफिया एजेंसियों पर उन्हें मारने की कोशिश करने का आरोप भी लगाया है. अगले वर्ष जनवरी में श्रीलंका में होनेवाले राष्ट्रपति चुनाव में उनके फिर से खड़े होने की संभावना है.
दशकों तक जातीय हिंसा के बाद श्रीलंका में अतिवाद में अचानक वृद्धि हुई है तथा सिंहली और मुस्लिम समुदायों के बीच सांप्रदायिक तनाव बढ़ा है. अप्रैल में ईस्टर के मौके पर श्रीलंका कुछ चर्चों पर सिलसिलेवार बम हमले का गवाह बना, जिसमें ढाई सौ से अधिक लोगों की जान चली गयी.
कुछ रिपोर्टों में कहा गया था कि इन हमलों के मुख्य आरोपी ने कभी भारत का दौरा किया था, लेकिन जांच के बाद भारतीय खुफिया एजेंसियों को ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला है. इन घटनाओं की वजह से सामुदायिक तनातनी बढ़ती ही जा रही है.
अपनी सामरिक स्थिति के कारण श्रीलंका भारत के लिए एक महत्वपूर्ण देश है. ऐसे में वहां के तनावपूर्ण माहौल पर प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान चर्चा होनी स्वाभाविक है.
दूसरा अहम पहलू यह है कि इस द्वीपीय देश में चीन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है. श्रीलंका ने औपचारिक तौर पर दिसंबर, 2017 में हंबनटोटा बंदरगाह को चाइना मर्चेंट्स पोर्ट होल्डिंग्स कंपनी को 99 साल के पट्टे पर दे दिया है. इस वर्ष गहरे समुद्र में कंटेनर टर्मिनल को विकसित करने के लिए श्रीलंका ने भारत और जापान के साथ एक समझौता किया है. भारत पहले ही त्रिंकोमाली को विकसित करने पर सहमति व्यक्त कर चुका है.
हालांकि, 2016 के बाद से चीन द्वारा श्रीलंका को होनेवाला निर्यात भारत से अधिक हो गया है, पर उसका मुख्य कारण चीनी परियोजनाओं के लिए वस्तुओं का निर्यात है. वैसे भारत बहुत थोड़ा ही पीछे है.
द्विपक्षीय आयात और निर्यात बढ़ाने की कोशिशों को भी प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से बल मिलेगा. श्रीलंका में होनेवाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भारत का हिस्सा 16 प्रतिशत से कुछ अधिक है. व्यापारिक संबंधों के साथ इस क्षेत्र में भी बढ़त की संभावनाएं हैं.
इस तरह की घरेलू और भू-सामरिक स्थिति में प्रधानमंत्री मोदी की मालदीव और श्रीलंका यात्रा का बहुत महत्व है. इन पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने के साथ इस दौरे से भारत की सामुद्रिक नीति को भी नयी ऊर्जा मिलेगी.

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