अंतरराष्ट्रीय राजनीति की खींचतान बहुत जल्दी भारत की ऊर्जा आपूर्ति पर नकारात्मक असर डाल सकती है. अमेरिका ने भारत समेत आठ देशों को दी गयी ईरान से तेल आयात की छूट की अवधि को नहीं बढ़ाने की घोषणा की है. छह माह की यह छूट मई के प्रारंभिक दिनों में समाप्त हो जायेगी. सऊदी अरब और इराक के बाद भारत सबसे ज्यादा तेल ईरान से खरीदता है. साल 2018-19 में यह खरीद 23.5 मिलियन टन रही थी. आयात बंद करने या कम करने से हमारी अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान हो सकता है तथा भारत ने इस चिंता से अमेरिका को अवगत करा दिया है.
कच्चे तेल की हमारी जरूरत का करीब 85 फीसदी और प्राकृतिक गैस का 34 फीसदी हिस्सा आयात से पूरा होता है. ईरान से बेहतर रिश्ते होने के कारण भारत को भुगतान करने के लिए 60 दिन का समय मिलता है तथा ढुलाई और बीमा का खर्च भी नहीं उठाना पड़ता है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बढ़ने के रुझान हैं. ऐसे में हमारे आयात का खर्च और व्यापार घाटा में बढ़ोतरी हो सकती है. सामान्य हिसाब यह है कि यदि दाम में प्रति बैरल एक डॉलर की बढ़त होती है, तो हमारे ऊपर 10,700 करोड़ रुपये सालाना का बोझ बढ़ जायेगा. हाल के दिनों में कीमतों के बढ़ने से हमारा रुपया भी कमजोर हुआ है. रुपये के मूल्य में कमी से भी व्यापार घाटा बढ़ जाता है.
हालांकि, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका से आयात के विकल्प हैं, लेकिन इसे तुरंत अमली जामा पहनाना आसान नहीं होगा. वैश्विक स्तर पर 40 फीसदी तेल उत्पादित करनेवाले तेल निर्यातक देशों के संगठन द्वारा आपूर्ति में कटौती का सिलसिला भी जारी है. ईरान के अलावा अमेरिका ने वेनेजुएला पर भी पाबंदी लगाया है. इन कारकों से तेल के बाजार का रुख अस्थिर है. भारत ने वेनेजुएला से अप्रैल, 2018 और जनवरी, 2019 के बीच अपनी तेल जरूरत का करीब 6.4 फीसदी हिस्सा खरीदा है.
इस पर अमेरिका ने आपत्ति जतायी है. यदि भारत ईरान और वेनेजुएला से तेल नहीं लेता है, तो उसे लगभग 17.6 फीसदी तेल दूसरे देशों से लेना होगा. बाजार से दोनों देशों के हटने से आपूर्ति बाधित होगी और कीमतों में उछाल आयेगा. यह भी उल्लेखनीय है कि भारत का आयात 2016-17 की तुलना में 2017-18 में 25 फीसदी बढ़ गया था. ऐसे में घरेलू उत्पादन को भी तेज करने की जरूरत है. ईरान की आर्थिकी पर अमेरिका के शिकंजा कसने से चाबहार बंदरगाह परियोजना पर भी प्रभाव पड़ेगा, जो भारत के रणनीतिक हितों के साथ क्षेत्रीय वाणिज्य-व्यापार के लिए भी महत्वपूर्ण है.
अभी इस परियोजना का एक ही चरण पूरा हो सका है तथा इसे पाकिस्तान में चीन के सहयोग से बन रहे ग्वादर बंदरगाह के बरक्स ठोस पहल माना जाता है. समाधान के लिए भारत को सीधे अमेरिका से बातचीत कर रास्ता निकालने की कोशिश करनी चाहिए तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी तनावों और प्रतिबंधों से इतर कूटनीतिक कदम उठाया जाना चाहिए.