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राजनीतिक चंदे की पारदर्शिता
दलों को मिलने वाले चंदे के स्वरूप में थोड़ा-सा परिवर्तन हुआ है. इसे पारदर्शिता की संज्ञा दी जा रही है, मगर ऐसा है नहीं. सुप्रीम कोर्ट के नये आदेश के अनुसार 31 मई तक सभी दलों को बंद लिफाफे में चुनाव आयोग को बताना होगा कि कितने पैसे किसे मिले, लेकिन इससे होगा क्या? सरकार […]
दलों को मिलने वाले चंदे के स्वरूप में थोड़ा-सा परिवर्तन हुआ है. इसे पारदर्शिता की संज्ञा दी जा रही है, मगर ऐसा है नहीं. सुप्रीम कोर्ट के नये आदेश के अनुसार 31 मई तक सभी दलों को बंद लिफाफे में चुनाव आयोग को बताना होगा कि कितने पैसे किसे मिले, लेकिन इससे होगा क्या? सरकार के प्रतिनिधि ने तो अदालत में साफ-साफ कह दिया है कि राजनीतिक दलों के हिसाब-किताब से देशवासियों का कुछ लेना-देना ही नहीं है.
बंद लिफाफा वाला हिसाब-किताब मामले को रफा-दफा करने की एक साजिश है.
याद कीजिए, अक्तूबर 2014 में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल रोहतगी जी ने बंद लिफाफे में 627 भारतीयों के नाम सौंपे थे, जिनका स्विस बैंकों में अकाउंट है. उसका क्या हुआ? राजनीतिक भ्रष्टाचार का पहला पायदान दलों को मिलने वाला चंदा ही है. व्यापारी किसी को बिना मतलब 10 रुपये भी नहीं देते. अगर वह 10 देता है, तो उससे 100 वसूलता भी है.
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर
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