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कल की बात है. कक्का कहने लगे कि सरसों में फूल आने लगे हैं. वसंत आ गया है! उनका चेहरा खिल उठा था. वह हौले-हौले मुस्कुराने लगे. मैंने उनकी आंखों में झांका, वहां मुझे एक उम्मीद नजर आ रही थी. कक्का कह रहे थे कि वसंत सच में राजा होता है. मौसम का राजा. इसके आते ही जन-जन प्रसन्नता और उल्लास से भर जाते हैं.
गेहूं के पौधे जवान नजर आने लगे हैं. उनमें बालियां निकल रही हैं. यह देख कर किसका मन आनंदित नहीं होगा. जिस फसल में लोग जाते अगहन से ही लगे हुए हैं, जिसके लिए लोग पूस में पानी से खेल गये, उसमें अब माघ में फूल और दाने निकल रहे हैं.
मेहनत और आस से बोये गये बीजों में जब अंकुर फूटता है, लोग तो तभी मुदित हो जाते हैं, लेकिन जब उनमें फूल लगते हैं, तो मन झूम-झूम उठता है. है न!
दो-तीन महीने पहले बोये गये बीज अब तक घनी फसल के रूप में आ गये थे और ऐसा लग रहा था कि फूलों ने और उसकी गंध ने पूरे गांव को घेर लिया है. सरसों के पीले-पीले फूल इन हरे दृश्यों पर ऐसा लग रहा था, जैसे धरती ने हरे रंग की साड़ी पहन ली हो, जिस पर पीले रंग की छींटें हैं!
यह सब किसी जादू जैसा लग रहा है, जो हकीकत है! हवा के झोंकों के मिजाज बदल गये हैं. बस्ती से दूर बांसों के झुरमुट में जहां चिड़ियों का बसेरा है, कलरव के स्वर ज्यादा गूंजने लगे हैं. लोग किसी भी ओर देखते हैं, तो उनकी आंखों को वहां कुछ खटकता नहीं. दृश्यों को निहार कर आंखें तृप्त नजर आती हैं.
कक्का को कुछ याद आ गया. वह कहने लगे कि वसंत आने पर दृश्यों में फूल लटक जाते हैं. फूल के कुछ मायने होते हैं. जिन फूलों के मायने सिर्फ फूल ही होते हैं और उनमें किसी भी तरह के फल नहीं लगते, वसंत उनके भरोसे नहीं आता.
वह कह रहे थे कि वसंत के आने का मतलब फसल के फूलों से होता है. फूल खिलने का मतलब परिश्रम से बनता है. तीन महीने के लगातार परिश्रम से जब पौधों में फूल लगते हैं, तो वह असल में परिश्रम की सार्थकता की घोषणा जैसा होता है. वसंत सिर्फ एक मौसम का नाम नहीं है, वसंत एक संदेशवाहक का नाम है, जो फूलों के माध्यम से परिश्रम के फल का संकेत देता है.
कक्का कह रहे थे कि वसंत का चेहरा अगर इतना सुंदर है, तो यह मटर में आये फूलों का कमाल है. राजमा के पौधे में खिल रहे फूलों का कमाल है. खेसारी के नीले-नीले फूलों का कमाल है. उसके चेहरे में मक्के और गेहूं के पौधे की हरियाली का असर है. वसंत आते हुए इन सब में फूल भर कर अपने आप को खुशनशीब कर रहा है. वह जाते-जाते इन्हें दाने से भर देगा.
लोगों के चेहरे पर यही सोच कर खुशी पसर रही है. चिड़ियां इसलिए अधिक कलरव करती हुई फुदक रही हैं, क्योंकि वे जहां तक उड़ान भरती हैं, उन्हें दाने ही दाने आने की उम्मीद दिखायी देती है. हवा इसलिए झूम रही है, क्योंकि वह फूलों का रस लेकर टहल रही है. फसल, पेड़-पौधे और फूल-पत्तियां सब मिल कर ही इस धरती पर वसंत रचते हैं!