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आज वर्षांत है, कल वर्षारंभ

रविभूषण वरिष्ठ साहित्यकार ravibhushan1408@gmail.com आज 365 दिनों का अंतिम दिन है, जिसे 365 पृष्ठों का आखिरी पन्ना भी कह सकते हैं. कल से एक नया पृष्ठ खुलेगा 365 पृष्ठों का. एक अंतिम दिन और पृष्ठ, दूसरा एकदम नया दिन- वर्षारंभ अौर नूतन पृष्ठ. वर्षांत के प्रति हमारे मन में कोई कृतज्ञता नहीं होती. आज के […]

रविभूषण
वरिष्ठ साहित्यकार
ravibhushan1408@gmail.com
आज 365 दिनों का अंतिम दिन है, जिसे 365 पृष्ठों का आखिरी पन्ना भी कह सकते हैं. कल से एक नया पृष्ठ खुलेगा 365 पृष्ठों का. एक अंतिम दिन और पृष्ठ, दूसरा एकदम नया दिन- वर्षारंभ अौर नूतन पृष्ठ. वर्षांत के प्रति हमारे मन में कोई कृतज्ञता नहीं होती. आज के बाद 2018 की जगह इतिहास में होगी. समय किसी के लिए न रुकता है, न ठहरता है.
हम सभी समय में जीते हैं और मरते है. समय के मुख्य दो पहलू हैं- आध्यात्मिक अौर सांसारिक (भौतिक). आध्यात्मिक अर्थ में कुछ भी पुराना नहीं होता. वहां सुबह, शाम, रात और दिन समान गति से आते-जाते हैं. वहां न कोई प्राचीनता का बोध है, न कोई भय. वहां समय ईश्वर है, सुप्रीम है, शाश्वत है.
भौतिक जगत और जीवन में समय का अपना महत्व है. यहां वह शाश्वत नहीं है. सेकेंड, मिनट, घंटा, दिन, सप्ताह, मास, वर्ष, दशक, शताब्दी, सहस्त्राब्दी में समय बंधा हुआ है. हम समय को निर्धारित करते हैं. समय निर्धारण का अपना एक इतिहास भी है. पुरातत्ववेत्ता प्राक इतिहास काल में जाते हैं. जब समय का निर्धारण हुआ वे पाषाण काल तक जाते हैं. कांस्य युग में प्रवेश करते हैं. पुरातात्विक रिकॉर्ड्स के अनुसार कई प्रकार के कैलेंडर लौह युग में आये. कैलेंडरों का अपना इतिहास है, विकास है.
काल चिंतकों ने विशेषत: भारत में समय को लघुतम रूप में विभाजित किया. वेद, भगवान पुराण, विष्णु पुराण, महाभारत, सूर्य सिद्धांतादि में इसको देखा जा सकता है. समय का यह विभाजन त्रुटि, रेणु, लव, लीक्षक, लिप्रा, विपल, पल, विघटि, विनाड़ी, घटि, नाड़ि, दंड, मुहूर्त, नक्षत्र, अहोरात्रम रूप में है. यह पंडितों के यहां है. दैनिक जीवन में हम घंटे, दिन, सप्ताह, माह और वर्ष देखते हैं.
समय का तीन बिंदुओं या भागों में विभाजन हमारी सुविधा के दिये हैं. अतीत, वर्तमान और भविष्य को लेकर काफी मंथन हुआ है. मुख्य धारणा यह है कि समय सदैव वर्तमान है.
न कोई अतीत है, न भविष्य. अतीत या तो स्मृति में है या मन में. अतीत और भविष्य को समय के हिस्से न मानकर मन के हिस्से के रूप में देखा गया है. वर्तमान को ही समय का मात्र एक आयाम माना गया है. क्या यह वर्तमान अतीत और भविष्य के मध्य स्थित है? क्या अतीत और भविष्य के बिना वर्तमान अर्थहीन और अस्तित्वहीन नहीं हैै? अतीत का संबंध अनुभव से है और अनुभव से कामना भी जुड़ी है. कामना के कारण ही भविष्य है.
कामना रहित भविष्य की कल्पना नहीं की जा सकती. भविष्य की निर्मिति होती है. वर्तमान निर्मित नहीं होता. भविष्य के कारण ही मनुष्य समय को बदलता है. मनुष्य में समय को मनाेनुकूल करने की शक्ति है. मनुष्य समय के अधीन रहता है और समय को अपने अधीन भी करता है. वह सब पर भारी है. उसका संकल्प, साहस, श्रम और कर्म की उसे जीवित रखते हैं. समय के साथ होना, समय के साथ बहना है. जो समय के साथ होते हैं, वे समय को बदल नहीं सकते.
समय का पहिया निरंतर घूमता है. उसे इच्छित दिशा में मोड़ देने की शक्ति सबमें नहीं होती. समय के साथ से अपना भौतिक विकास किया जा सकता है. कुछ उपलब्धियां हासिल हो सकती हैं, पर उससे समाज को लाभ नहीं पहुंचता. बेकन ने समय को सबसे बड़ा ‘इनोवेटर’ कहा है. समय को संपदा माननेवालों की कमी नहीं है. अगर समय धन है, तो इसे हमें समझ बूझ कर खर्च करना चाहिए.
समय की पहचान सबको नहीं होती. उसकी महत्ता यह भी है कि वह सभी जख्मों को भी देता है. इस वर्ष कितने कवि-लेखक, विचारक-चिंतक, दार्शनिक दिवंगत हुए, अपनों के जाने से हम सब बहुत रिक्त हुए, पर समय के साथ-साथ रिक्ति का यह एहसास कमता जाता है.
वर्षांत पर कहीं कोई समारोह उत्सव नहीं होता. महत्व आगमन का है, विदाई का नहीं. अगर हममें कृतज्ञता का भाव है, तो हम गुजरते-बीतते समय को भी याद करते रहेंगे. समय को हम आमंत्रित नहीं करते. वह स्वयं आता है. वह अनामंत्रित होता है. उसे हमारी इच्छा-अनिच्छा से कोई मतलब नहीं. वह इस सबसेे परे है, उसे औपचारिकताओं, संदेशों, बधाइयों और शुभकामनाओं से कोई मतलब नहीं. इन सबसे हमारा मतलब है, जिसके आगमन में हमारी कोई भूमिका नहीं है, उसका हम जश्न मनाते हैं. नये वर्ष के आगमन से हम सब प्रसन्न होते हैं.
समय हमें देखता है, मुस्कुराता है और क्षणांश को भी नहीं ठहरता. वह गतिवान है. उसका एकमात्र संदेश यह है कि तुम गतिवान बनो, क्योंकि गति ही जीवन है. यह गति मानव जीवन में श्रम और कर्म से जुड़ी है. जीवन यहीं सार्थक बनता है. हमारी प्रसन्नता हमारे कर्म से सदैव नहीं जुड़ी रहती. बाजार हमें प्रसन्न रखता है, गतिवान भी बनाता है. समय का सम्मान और आदर हम कैसे करते हैं, यह केवल हमारे ऊपर निर्भर करता है.
वर्षांत में हम 2018 को ‘अलविदा’ कहें, क्योंकि अब हमारी इससे कभी भेंट नहीं होगी. इतिहास के अनेक पृष्ठों में एक और पृष्ठ जुड़ जायेगा. यह एक वर्ष का अंत है, पर एक नया वर्ष सामने है. वर्षारंभ, जो कल होगा. हम कैसे करें उसका स्वागत? सबके अपने तरीके होंगे, कुछ योजनाएं होंगी, कुछ कल्पनाएं भी. यह वर्षांत में कृतज्ञता-ज्ञापन के साथ ही फलदाई होगा.
इसी में समय का मान और सम्मान है. प्रत्येक दिन नया है, दूसरे दिन से सर्वथा भिन्न और विशिष्ट, जिसका शुभारंभ हम वर्षारंभ से करते हैं. वर्षांत में वर्ष भर का लेखा-जोखा किया जाता है. जो भी गलत हुआ, आगे नहीं होगा का निश्चय भी होता है. तब हम वर्षारंभ का स्वागत करते हैं कि यह गले मिलने का वर्ष होगा, न कि…

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