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हिमयुग से महाविराट हिमयुग
आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार puranika@gmail.com सर्दी का मामला कुछ-कुछ मुल्क के हालात जैसा हो गया है. टीवी देखो, तो बहुत ही खराब हाल लगता है. बगैर टीवी जीने लायक माहौल लगता है. बुजुर्गों को बहुत ठंड लगती है, क्योंकि बुजुर्ग खाली वक्त में टीवी बहुत देखते हैं. टीवी चैनल दिखाते हैं कि इतनी सर्दी है […]
आलोक पुराणिक
वरिष्ठ व्यंग्यकार
puranika@gmail.com
सर्दी का मामला कुछ-कुछ मुल्क के हालात जैसा हो गया है. टीवी देखो, तो बहुत ही खराब हाल लगता है. बगैर टीवी जीने लायक माहौल लगता है. बुजुर्गों को बहुत ठंड लगती है, क्योंकि बुजुर्ग खाली वक्त में टीवी बहुत देखते हैं. टीवी चैनल दिखाते हैं कि इतनी सर्दी है कि हिमयुग आ गया, दूसरा चैनल सिर्फ हिमयुग पर नहीं रुक सकता है, वह महाविराट हिमयुग दिखा देता है. बुजुर्ग टीवी पर महाविराट हिमयुग देखते हैं और ठंड ज्यादा महसूस करते हैं.
मैंने एक बुजुर्ग को कहा- आप न्यूज चैनल देखा ही मत करो, आप सिर्फ इंटरटेनमेंट चैनल देखा करो सास-बहू, नागिन, डायन, नजर, किले का प्रेत, काल भैरव टाइप.
बुजुर्ग ने मुझे बताया- आजकल न्यूज चैनलों और इंटरटेनमेंट चैनलों में कोई फर्क न रह गया है. सब एक जैसे हैं. दोपहर ढाई से साढ़े तीन बजे तक सास-बहू सीरियलों पर आधारित कार्यक्रम आते हैं. और ढाई से साढ़े तीन तक क्या दिखाया जायेगा, वह दिनभर टीवी पर बताया जायेगा.
बुजुर्ग यही तो कह रहे हैं- न्यूज चैनलों और इंटरटेनमेंट चैनलों में फर्क ही न बचा अब तो.
पत्रकारिता पढ़ रही अपनी बेटी को मैंने डपटा- तू दिनभर डायन सीरियल देखती रहती है, ऐसे करेगी पत्रकारिता? उसने मुझे बताया- अब पत्रकारिता यही है. सीरियलों में क्या आयेगा, यह न्यूज चैनल के कार्यक्रमों में बताया जाता है.
बुजुर्गों को ज्ञान है, नये बच्चों को पता है. बीच की पीढ़ी वाले आउटडेटेड हैं, उन्हें न पता कि टीवी न्यूज क्या है.टीवी चैनलों ने सर्दी को भी इवेंट बना दिया है, या यूं कह लें कि हर मौसम को इवेंट बना दिया है. चैनल पर इवेंट शो बनाने की टाइमिंग में कुछ हेरफेर हो जाता है, तो स्थिति कुछ हास्यास्पद हो जाती है. अक्तूबर में कई बार गर्मी ही रहती है, तब तमाम न्यूज चैनलों पर इस आशय के इश्तिहार आ रहे होते हैं- बहुत सर्दी है, बर्फ पड़ रही है टाइप. यह वाला इनरवियर पहनकर सर्दी भगा दें. अक्तूबर में तो गर्मी ही न भाग रही होती है, तो टीवी पर बताया जाता है कि सर्दी भगा दें.
अमिताभ बच्चन साहब बता रहे हैं कि वह वाला इनरवियर पहनकर सर्दी भगा दें. वह वाली क्रीम लगाकर सर्दी की खुश्की भगा दें. बंदा अमिताभ बच्चन हो, तो सर्दी भी रोजगार देकर जाती हैं. गर्मी भी और बरसात भी. बारह महीने ही रोजगार के हैं.
प्रेरक कर्मठ व्यक्तित्व हैं अमिताभ जी, नमन है उनको. यूं तो वह बुजुर्ग हैं, पर टीवी चैनलों को देखकर ठंड के ज्यादा होने की शिकायत न करते. सर्दी में सर्दी के आइटम बेचने निकल जाते हैं. बंदा बेचने पर फोकस करे, तो कोई मौसम कष्ट का नहीं है, सिर्फ कमाई-धंधे का है.
गर्मी में शिकंजी बेचनेवाले गुड्डूजी इन दिनों आमलेट बेच रहे हैं, सर्दी से कमा रहे हैं. इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अगर बंदा कर्मठ हो, तो हर मौसम कमाई का है. सो हे पार्थ, ठंडियाओ मत, कुछ बेचने निकल!
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