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ठोस बदलाव हो

निर्यात बढ़ाने के उद्देश्य से स्थापित विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसइजेड) की संरचना में फेरबदल की कोशिशें हो रही हैं. सुधार के सुझावों के लिए केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने जून में एक समिति बनायी थी. विश्व व्यापार संगठन के नियमों के कारण एसइजेड में बदलाव जरूरी हो गया है. अमेरिका ने भारत पर आरोप लगाया है […]

निर्यात बढ़ाने के उद्देश्य से स्थापित विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसइजेड) की संरचना में फेरबदल की कोशिशें हो रही हैं. सुधार के सुझावों के लिए केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने जून में एक समिति बनायी थी. विश्व व्यापार संगठन के नियमों के कारण एसइजेड में बदलाव जरूरी हो गया है. अमेरिका ने भारत पर आरोप लगाया है कि वह निर्यात के लिए अनुदान दे रहा है, जो इस बहुपक्षीय मंच के समझौतों के अनुरूप नहीं है.

विश्व व्यापार संगठन के नियम किसी देश को अपने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए अधिक अनुदानों की मनाही करते हैं, ताकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बनी रहे. इस समिति की रिपोर्ट पर अब वाणिज्य और वित्त मंत्रालयों को विचार करना है. मुख्य सुझावों में एसइजेड की प्राथमिकता को निर्यात से हटाकर रोजगार बनाना है.

लेकिन, एसइजेड में सुधार के इस प्रयास में यह भी देखा जाना चाहिए कि क्या इसके उद्देश्य पूरे हो सके हैं और यह भी कि इसकी कार्यप्रणाली में किन सुधारों की जरूरत है. चीन के उत्पादन और निर्यात मॉडल की सफलता से प्रेरित होकर एसइजेड की स्थापना हुई थी, परंतु यह इरादा फलीभूत नहीं हो सका.

हाल में अमेरिका के प्रिंसटन विश्वविद्यालय के मीर एलकोन ने एक शोध में बताया है कि सरकार से कई तरह के संरक्षण प्राप्त विशेष आर्थिक क्षेत्र भ्रष्टाचार और घोटालों से ग्रस्त हैं. उन्होंने बताया है कि इन क्षेत्रों के चुनाव विकास की अधिकतम संभावनाओं को देखकर करने के बजाय तात्कालिक स्वार्थों के आधार पर किये गये हैं.

इसमें स्थानीय नेताओं और अधिकारियों की ज्यादा भूमिका रही है. चीन में स्थानीय नेताओं की प्रोन्नति का एक बड़ा आधार उनके इलाकों में उत्पादन और विकास होता है. इस कारण वे अपने क्षेत्र पर अधिक ध्यान देते हैं, लेकिन भारत में एसइजेड के मामले में शासन-प्रशासन में शामिल लोगों का मुख्य ध्यान रियल इस्टेट के कारोबार पर रहा है.

ऐसे में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि एसइजेड के लिए मंजूर करीब आधा इलाका खाली पड़ा हुआ है. जुलाई में वाणिज्य मंत्रालय की ओर से संसद को जानकारी दी गयी थी कि अगस्त, 2017 तक 373 एसइजेड के लिए तय 45,711.64 हेक्टेयर में से 23,779.19 हेक्टेयर जमीन बिना उपयोग के पड़ी हुई है.

इनमें से अधिकांश निजी क्षेत्र और राज्य सरकारों के उपक्रमों की जमीन है. साल 2014 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में बताया गया था कि विशेष आर्थिक क्षेत्रों से रोजगार, निवेश और निर्यात को लेकर जो संभावना जतायी गयी थी, वह ज्यादा थीं. यह बात शुरुआती पांच-छह साल के प्रदर्शन के आधार पर कही गयी थी, पर आज भी यह उतनी ही सच है.

हालांकि, सरकार का दावा है कि बाद में स्थिति बेहतर हुई है. साल 2017-18 में एसइजेड से 5.81 लाख करोड़ का निर्यात हुआ था, जबकि 2016-17 में यह आंकड़ा 5.23 लाख करोड़ था. एसइजेड कानून बने 13 साल बीत गये हैं. ऐसे में गंभीर समीक्षा पर आधारित ठोस बदलाव अपेक्षित हैं.

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