बीते सालों में आबादी के बड़े हिस्से को बैंकिंग व्यवस्था में शामिल करने की प्रक्रिया तेज हुई है. जनधन योजना, लाभुकों के खाते में सीधा भुगतान, डिजिटल लेनदेन, डाकघरों में वित्तीय गतिविधियां जैसी कोशिशों से आर्थिक समावेशीकरण को बढ़ावा मिला है.
अर्थव्यवस्था के प्रसार के लिए सुविधाजनक वित्तीय लेन-देन बहुत जरूरी है. इस संदर्भ में बड़ी संख्या में एटीएम मशीनों के बंद होने की आशंका बड़ी चिंता की बात है.
एटीएम की सुविधा उपलब्ध करानेवाले उद्योग की प्रतिनिधि संस्था ने कहा है कि रिजर्व बैंक के निर्देशों की वजह से लगभग 50 फीसदी एटीएम अगले साल मार्च के बाद बंद हो जायेंगे. नये निर्देशों में मशीनों की तकनीक बेहतर करने के साथ नगदी का हस्तांतरण करनेवाली कंपनियों की वित्तीय क्षमता एक अरब रुपये करने तथा यातायात और सुरक्षा का स्तर बढ़ाने जैसी कड़ी शर्तें रखी गयी हैं.
इन सुधारों पर एटीएम सेवा देनेवाली कंपनियों को बड़ा निवेश करना होगा. उनका कहना है कि चूंकि उनके पास पर्याप्त धन नहीं है, तो उन्हें मजबूरन बड़ी तादाद में एटीएम मशीनों को बंद करना पड़ेगा. नरमी बरतने और समय-सीमा बढ़ाने के बैंकों और एटीएम कंपनियों के निवेदन को रिजर्व बैंक ने नामंजूर कर दिया है. अगर आधे एटीएम बंद होते हैं, तो इसका सबसे ज्यादा खामियाजा ग्रामीण क्षेत्र के ग्राहकों को भुगतना पड़ेगा.
इन खाताधारकों में बड़ी संख्या जन-धन, ग्रामीण रोजगार और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लाभुकों की है. नोटबंदी के बाद हर तरह के खाताधारकों और डेबिट कार्ड के उपभोक्ताओं की तादाद में बहुत इजाफा हुआ है, लेकिन एटीएम उद्योग में ठहराव का आलम है.
यदि कंपनियां रिजर्व बैंक के निर्देशों पर अमल करती हैं, तो एटीएम की हर लेन-देन पर उनके खर्च में छह से दस फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है. अनेक परेशानियों में घिरे बैंक इस खर्च में हिस्सेदारी नहीं करना चाहते हैं. खर्च के अलावा एक मुश्किल यह भी है कि नियमन के पालन की समय-सीमा बहुत नजदीक आ चुकी है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि बैंकिंग से जुड़े कई मसलों की तरह एटीएम सेवा में सुधार की दरकार है.
अक्सर मशीनों के खराब होने या नगदी नहीं होने की शिकायतें मिलती हैं. अपराध, फर्जीवाड़ा और हिसाब में गड़बड़ी की दिक्कतें भी हैं. इनके हल के लिए बैंकों और एटीएम उद्योग को कदम उठाना चाहिए. रिजर्व बैंक के निर्देश बैंकिंग प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से प्रेरित हैं. लेकिन एटीएम सेवा देनेवाली कंपनियों की परेशानियों को भी नजरअंदाज करना ठीक नहीं होगा.
ऐसे में जरूरी है कि बैंकों के संगठन और एटीएम कंपनियां रिजर्व बैंक के साथ मिलकर आसन्न संकट का संतुलित समाधान करने के प्रयासों पर ध्यान दें ताकि ग्रामीण और निम्न आय वर्ग के लोगों को असुविधा का सामना न करना पड़े.