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चकाचौंध और शोर के बीच नींद

आजकल शादियों का महीना चल रहा है. हर गली में बारातों की धूम मची हुई है. बैंड-बाजों के शोर के बीच बाकी आवाजें गुम हो जाती हैं. पैसे लूटते और लुटाते लोगों, रौशनी की चकाचौंध में बिना मतलब झूमते लोगों के बीच, उस औरत की पीठ पर लदा बच्चा सो रहा है और उसकी मां […]

आजकल शादियों का महीना चल रहा है. हर गली में बारातों की धूम मची हुई है. बैंड-बाजों के शोर के बीच बाकी आवाजें गुम हो जाती हैं. पैसे लूटते और लुटाते लोगों, रौशनी की चकाचौंध में बिना मतलब झूमते लोगों के बीच, उस औरत की पीठ पर लदा बच्चा सो रहा है और उसकी मां सिर पर फैंसी लाइट लेकर बैंड पार्टी के साथ चल रही है.

इस शोर में भी वो सो जाता है, थक कर भूख से! रात के बारह बजे या दो बजे तक भी उसे काम करना होगा. सिर्फ औरतें ही नहीं, सात-आठ साल के लड़के-लड़कियां भी अपने सिर पर लाइट उठा के चलते हैं.

बड़े सरकारी अफसरों की शादियां हों या मंत्री-संतरी के घर की शादी हो, सभी जगह बारातियों के साथ लाइट उठा कर चलते बच्चे दिखते हैं. लोग बाल श्रम की बात पर बहस करते हैं, पर अपने घर में उनकी जरूरत से इनकार नहीं करते. हम शोर तो करते हैं, पर आंख बंद कर सो जाते हैं. शोर के बीच, हमें कुछ सुनाई नहीं पड़ता, पेट की भूख मिटाने के लिए, उनको यह काम भी तो करना ही पड़ेगा. कौन, क्यों और भला कब तक उन्हें खिला देगा? ऐसे में बच्चों की मासूमियत कहीं खो जाती है.

गरीबी, अशिक्षा, भूख आदमी को हर तरह से कमजोर कर देती है. दबे-कुचले लोग अपने बच्चों के मेहनत के भरोसे रहते हैं. हमारे समाज में आखिर यह अंतर क्यों है? बाल श्रमिकों के पुनर्वास की बात आंकड़ों में ही रह जाती है. केवल राजनीति का विषय बन कर रह जाती है यह समस्या. भारत देश में जन्म लेनेवाला हर व्यक्ति सम्मान से जीने के लिए अधिकृत है. कोई भी उससे उसकी आजादी नहीं छीन सकता है. बच्चे अगर देश का भविष्य हैं तो उसे अभी से संरक्षित करना होगा. देश के निर्माण में उनकी अनदेखी भविष्य की अनदेखी है.

राकेश कुमार, मधुकम, रांची

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