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डॉलर करेंसी नहीं सपना है
आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार puranika@gmail.com डॉलर के भावों में भारी उतार-चढ़ाव को देखते हुए ‘चालू विश्वविद्यालय’ ने डॉलर विषय पर एक निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया. इसमें प्रथम पुरस्कार विजेता निबंध इस प्रकार है- डॉलर यूं तो अमेरिका समेत एक दर्जन से ज्यादा देशों की करेंसी है, पर चर्चा आमतौर पर अमेरिकन डॉलर की ही […]
आलोक पुराणिक
वरिष्ठ व्यंग्यकार
puranika@gmail.com
डॉलर के भावों में भारी उतार-चढ़ाव को देखते हुए ‘चालू विश्वविद्यालय’ ने डॉलर विषय पर एक निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया. इसमें प्रथम पुरस्कार विजेता निबंध इस प्रकार है-
डॉलर यूं तो अमेरिका समेत एक दर्जन से ज्यादा देशों की करेंसी है, पर चर्चा आमतौर पर अमेरिकन डॉलर की ही रहती है. जैसे हर बंदे के बीस-पचास रिश्तेदार होते हैं, पर वह बात आइपीएस रिश्तेदार की ही करता है, जो उसे घास भी नहीं डालता. अमेरिका दुनिया का आइपीएस है, थानेदार है. इसलिए किसी का बच्चा अमेरिका में सैटल होता है, तो वह खुशी-खुशी बताता है कि हमारा बच्चा स्टेट्स में सैटल हो रहा है.
अमेरिका दरअसल मुल्क नहीं है, एक ख्वाब है. डॉलर सिर्फ करेंसी नहीं है, एक सपना है. आइआइटी वाले इस सपने में जीते हैं. दुनिया में अधिकांश अच्छे-बुरे कामों का स्रोत अमेरिका में पाया जाता है. विश्व के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों की सूची में कई अमेरिका में मिलेंगे और पोर्न इंडस्ट्री की अगुआ कंपनियां भी अमेरिका में ही मिलेंगी.
भारतीय आमतौर पर पाखंडी होते हैं और अमेरिका को लेकर तो विकट पाखंडी होते हैं. भारत में अधिकांश मध्यवर्गीय बापों की इच्छा होती है कि उनका बेटा भारत में सैटल ना हो, अमेरिका में हो. बेटा अमेरिकन डॉलर में कमाये, तो क्या कहने. बाप बीमार पड़ता है, बेटा अमेरिका से एक बार भी देखने नहीं आ पाता, अलबत्ता डॉलर भिजवाता है, ये डॉलर रुपये में तब्दील होकर बाप को मिलते हैं.
बाप के पास रुपये होते हैं, बेटा नहीं. बाप दुखी होता है, पर वह भूल जाता है कि उसने डॉलर को बाप मानकर बेटे को डॉलर कमाने भेजा था. अब बेटा भी डॉलर को ही बाप की इज्जत दे रहा है. डॉलर चाहे जितने लो, बेटा नहीं मिलेगा. बाप ने डॉलर चाहा था, डॉलर मिल गया. अमेरिका में बसा भारतीय विकट देशभक्ति मचा देता है. न्यू याॅर्क में जुलूस निकालकर भारतीय विकट देशभक्ति मचा देते हैं. अमेरिका में बसे भारतीयों से ज्यादा देशभक्त तलाशना मुश्किल काम है.
डॉलर जिसे चाहे उसे नचवा लेता है. क्या भारतीय क्या पाकिस्तानी. अमेरिका ने बरसों पाकिस्तान को इतने डॉलर दिये कि पाकिस्तान ने कुछ करना छोड़ दिया, सिवाय अपने मूल काम आतंक के. अब अमेरिका से डॉलरों की सप्लाई थमी है, तो पाकिस्तान चीन की तरफ निकल लिया युआन की भीख के लिए.
पाकिस्तान इंटरनेशनल भिखारी है, डॉलर में न मिले, तो युआन में मांग लो. पाकिस्तान बांग्लादेश से टका करेंसी में भी कर्ज ले सकता है. डॉलर से टके तक आने की हिम्मत उन पैदाइशी भिखारियों में जन्मजात होती है, जिनकी खुद की औकात दो टके की नहीं है.
वैसे पाकिस्तान की भिखमंगी हालत और बेटे के लिए इंतजाररत बीमार बाप का हाल देखकर यही साफ होता है कि जो डॉलर पर ज्यादा एतबार करता है, आखिर में उसकी दुर्गति तय ही माननी चाहिए.
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