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राजनीतिक भाषा की मर्यादा
आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया aakar.patel@gmail.com बीते हफ्ते मेरे कार्यालय में छापा मारने आये जांच एजेंसी के एक व्यक्ति से मेरी बातचीत हुई थी. वह ठीक मेरी उम्र का था और उसने जो कुछ भी कहा, उससे मैं आश्चर्यचकित था. उसने क्या कहा, यह बाद में बताऊंगा. पहले अमेरिका में हुई घटनाओं पर […]
आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक,
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
aakar.patel@gmail.com
बीते हफ्ते मेरे कार्यालय में छापा मारने आये जांच एजेंसी के एक व्यक्ति से मेरी बातचीत हुई थी. वह ठीक मेरी उम्र का था और उसने जो कुछ भी कहा, उससे मैं आश्चर्यचकित था.
उसने क्या कहा, यह बाद में बताऊंगा. पहले अमेरिका में हुई घटनाओं पर नजर डालते हैं. जिस व्यक्ति ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रतिद्वंद्वियों को बम भेजा था, उसकी पहचान राष्ट्रपति के राजनीतिक दल के सदस्य के रूप में हुई है. उसने पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा, हिलेरी क्लिंटन, ट्रंप के आलोचक जांच एजेंसी के सदस्यों, साल 2020 के राष्ट्रपति पद की संभावित उम्मीदवार भारतीय मूल की महिला कमला हैरिस आदि को बम पार्सल किया था.
अमेरिका में होनेवाली राजनीतिक चर्चा के स्तर के बारे में हम सभी जानते हैं, खासकर जब से ओबामा का कार्यकाल समाप्त हुआ है. ट्रंप ने हर मुद्दे को बच्चों के स्तर पर लाकर सरलीकृत कर दिया है. अधिकांश बातें अब अच्छी या बुरी, श्वेत या श्याम हैं.
भारत के राजनीतिक उद्गार की भाषा में मुद्दे या तो राष्ट्रीय हैं या राष्ट्र-विरोधी.
आप्रवासन के मुद्दे पर ट्रंप आक्रामक हैं और गुस्से में बोलते हैं कि यह एक ऐसी समस्या है, जिसे खत्म करने की जरूरत है और वे बलपूर्वक ऐसा करेंगे. वे बाड़ लगा रहे हैं और कथित तौर पर बिना वीजा के अमेरिका आनेवाले परिवारों से उनके बच्चों को अलग कर रहे हैं.
डेमोक्रेटिक पार्टी के लोगों और कारोबारियों का कहना है कि मेक्सिको से मेहनत-मजदूरी करने आनेवाले श्रमिकों से अमेरिका की अर्थव्यवस्था को फायदा होता है.
सिलिकॉन वैली ने जोर दिया है कि भारतीय सॉफ्टवेयर इंजीनियरों को बिजनेस वीजा देने से मना करने का ट्रंप का प्रस्ताव यहां के व्यवसाय को नुकसान पहुंचायेगा. लेकिन, ट्रंप और उनके समर्थकों के लिए यह मुद्दा एकदम साफ है- अमेरिका को शुद्ध बनाये रखने की जरूरत है. उनकी नजर में मेक्सिको के लोग बलात्कारी व अपराधी हैं और भारतीय नौकरियां छीन रहे हैं, जो सही मायने में अमेरिकी नागरिकों को मिलनी चाहिए. इससे पहले ट्रंप उन देशों को ‘गंदे देश’ बोल चुके हैं, जहां के लोग गोरे नहीं हैं. ऐसे हिंसक उद्गार जब राजनीतिक बहस में व्यक्त किये जाते हैं, तो इससे हिंसा जन्म लेती है.
हाल के दिनों में पश्चिम में अगर आप ऐसी घटनाएं देख रहे हैं, तो इसमें आश्चर्य नहीं है. इसके लिए ‘दक्षिणपंथ’ के सदस्य जिम्मेदार हैं. वर्ष 2011 में रिपब्लिकन पार्टी के उग्रपंथी धड़े ‘टी पार्टी’ से संबद्ध व्यक्ति ने हाउस ऑफ रीप्रेजेंटेटिव (हमारी लोकसभा का अमेरिकी संस्करण) के एक अमेरिकी सदस्य गैब्रिएल गिफोर्ड के सिर में गोली मार दी थी. वर्ष 2016 में ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमंस (लोकसभा का ब्रिटिश संस्करण) की एक महिला सदस्य ‘जो कॉक्स’ की हत्या ऐसे अादमी ने की, जो उनकी आप्रवासन-समर्थक नीतियों का विरोध करता था और उन्हें ‘गोरे लोगों के लिए गद्दार’ कहता था. तब आप्रवासन महत्वपूर्ण मसला था और इससे ब्रेक्जिट पर मतदान को बढ़ावा मिला था.
इन सब उदाहरणों में और दूसरे में भी, विषय एक समान हैं. इन सभी में शामिल व्यक्ति का जुड़ाव साधारण समझ और अत्यधिक राष्ट्रवादी सोच से है, जिसे राजनीतिक नेताओं ने गढ़ा है. वह व्यक्ति (और वह व्यक्ति आमतौर पर एक पुरुष होता है) अपने से भिन्न विचार रखनेवालों को गद्दार और शत्रु मानता है. यह बड़े आश्चर्य की बात है कि अमेरिका में परिचर्चा इतने निचले स्तर पर पहुंच गयी है, जहां बराक ओबामा जैसे पूर्व राष्ट्रपति को भी राष्ट्र-विरोधी माना जा रहा है.
अब मैं उस व्यक्ति की चर्चा करता हूं, जिसके बारे में आरंभ में बात हुई है. वह छापा मारनेवाले समूह के सदस्य के तौर पर आया था, और शांत एवं बुद्धिमान व्यक्ति की तरह लग रहा था. वह वित्त मंत्रालय के एक संस्था से संबंधित था. विशेष रूप से इस समूह की रुचि हमारे द्वारा किये जानेवाले कार्यों में थी, जिसे वे ‘राष्ट्र-विरोधी’ मानते थे. उनमें से एक व्यक्ति ने इस विशिष्ट शब्द का प्रयोग भी किया था.मैं अचरज में था कि इस तरह की बातें सरकार के भीतर भी हो रही हैं.
हमारे टीवी परिचर्चाओं की गंदगी, घृणा और गुस्सा, जिसने जटिल मामलों को महत्वहीन करके एकदम बचकाना बना दिया है, केवल मुख्यधारा में ही शामिल नहीं हैं, बल्कि वे सत्ता-प्रतिष्ठान का भी एक हिस्सा बन गये हैं. मैंने शांतिपूर्वक उसके साथ तर्क करने की कोशिश की, लेकिन उसने मुझे रोक दिया. उसने कहा कि उसे गुस्सा आ रहा है और अब इस विषय में सुनने लायक कुछ नहीं बचा है.
हम इस देश में खतरनाक राह पर आ चुके हैं और यहां हम बहुत तेजी से पहुंचे हैं. विशेष समुदाय समेत बड़ी संख्या में लोगों को हम दुश्मन मानने लगे हैं. यहां प्रश्न है कि किसका दुश्मन? इसका उत्तर है कि वे दुनिया के दृष्टिकोण व राजनीति के दुश्मन हैं, जो एकपक्षीय है. अगर आप उस पक्ष से संबंधित नहीं हैं, तो आप अपने देश से घृणा करते हैं.
इन दिनों जिस प्रकार हम बारंबार अपने आस-पास लोगों के साथ मार-पीट होते देख रहे हैं, वह ठीक उसी प्रकार की अभिव्यक्ति है, जिस तरह पागल आदमी उन लोगों के पास बम भेज रहा है, जिसे वह ट्रंप और खुद का दुश्मन मानता है. राजनीतिक वाक्चातुर्य से हिंसा पैदा की जा रही है और इससे हम संक्रमित हो रहे हैं. हमें सोचने की जरूरत है कि हमारे आस-पास क्या हो रहा है, क्योंकि हम अगले चुनाव के लिए एक लंबे और गुस्सैल रास्ते की ओर बढ़ रहे हैं.
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