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आइटीआर में बढ़वार

पिछले साल के मुकाबले इस साल आयकर विवरण (आइटीआर) दाखिल करनेवालों की तादाद लगभग 71 प्रतिशत बढ़ी है. पिछले साल 31 अगस्त तक 3.17 करोड़ लोगों ने आइटीआर दाखिल किये थे, जबकि इस साल यह संख्या 5.42 करोड़ हो गयी है. सबसे ज्यादा बढ़वार (लगभग 54 प्रतिशत) वेतनभोगी तबके के आइटीआर में हुई है. पिछले […]

पिछले साल के मुकाबले इस साल आयकर विवरण (आइटीआर) दाखिल करनेवालों की तादाद लगभग 71 प्रतिशत बढ़ी है. पिछले साल 31 अगस्त तक 3.17 करोड़ लोगों ने आइटीआर दाखिल किये थे, जबकि इस साल यह संख्या 5.42 करोड़ हो गयी है. सबसे ज्यादा बढ़वार (लगभग 54 प्रतिशत) वेतनभोगी तबके के आइटीआर में हुई है. पिछले साल 31 अगस्त तक वेतनभोगी तबके के 2.19 करोड़ लोगों ने आइटीआर दाखिल किये थे, जबकि इस साल यह संख्या 3.37 करोड़ हो गयी है.
अनुमानित कराधान योजना का लाभ उठानेवालों के दाखिल आइटीआर में भी तेज बढ़त हुई है. पिछले साल 31 अगस्त तक 14.93 लाख लोगों ने इस योजना के तहत आइटीआर दाखिल किये, जबकि इस साल यह संख्या बढ़कर 1.17 करोड़ (पिछले साल के मुकाबले 681 प्रतिशत की बढ़त) हो गयी है. आइटीआर दाखिल करनेवालों की संख्या कुछ सालों से लगातार बढ़ रही है.
लेकिन, इस बार की वृद्धि अप्रत्याशित है और यह संकेत करती है कि नोटबंदी, जीएसटी, अनुमानित कराधान योजना तथा बिना जुर्माने के आयकर विवरण भरने के सरकार के प्रयासों के कारण लोगों में वित्तीय पारदर्शिता के नियमों के पालन के प्रति रुझान बढ़ा है. जीएसटी विशेष मददगार साबित हुआ है. निजी आयकर संग्रह वित्त वर्ष 2015-16 में जीडीपी का 2.09 प्रतिशत था, लेकिन नोटबंदी के साल (वित्त वर्ष 2017-18) में यह बढ़कर 2.43 प्रतिशत हो गया.
जुलाई 2017 में जीएसटी के अमल में आने के बाद निजी आयकर संग्रह बढ़कर जीडीपी का 2.63 प्रतिशत हो गया है. सेवा और सामान के उत्पादन से लेकर उपभोग के लिए अंतिम खरीद तक का चरण अब दस्तावेजी रूप ले सकता है और ठीक इसी कारण जीएसटी के अनुपालन के प्रति लोग ज्यादा संख्या में जवाबदेह महसूस कर रहे हैं.
सो, हर तरह के करदाताओं की संख्या बढ़ी है. एक अहम योगदान सूचना प्रौद्योगिकी और विवरण भरने की प्रक्रिया को सरल बनाने का भी है. ध्यान इस पर भी दिया जाना चाहिए कि आयकर के रूप में हासिल राजस्व में इजाफा किस अनुपात में हो रहा है.
पिछले साल आयकर विभाग ने आकलन वर्ष 2015-16 के आंकड़े सार्वजनिक किये, तो पता चला कि आइटीआर दाखिल करनेवालों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन अपनी आमदनी को आयकर के दायरे से बाहर दिखानेवालों की संख्या बहुत ज्यादा (4 करोड़ में 2 करोड़ से ज्यादा) है. आकलन वर्ष 2014-15 में सरकार को 1.91 लाख करोड़ रुपये आयकर से प्राप्त हुए, तो 2015-16 में महज 1.88 करोड़ रुपये.
जोर प्रत्यक्ष कर का दायरा बढ़ाने पर होना चाहिए. अप्रत्यक्ष कर धनी-गरीब सभी को चुकाना होता है और इससे हासिल राजस्व अब भी हमारी अर्थव्यवस्था में 50 फीसद से थोड़ा ही कम है, जबकि विकसित देशों में स्थिति इसके उलट है. भारत में अब भी देश की दो फीसद से भी कम आबादी प्रत्यक्ष कर चुकाती है, सो सरकार को प्रत्यक्ष करों का दायरा बढ़ाने के प्रयास तेज करने होंगे.

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