मानव जनसंख्या में अनियंत्रित वृद्धि वैश्विक समस्या है. हमारे देश के लिए तो यह विशेष चिंता की बात है, जहां विश्व के मात्र 2% भू-भाग पर करीब 17% जनसंख्या का वास है. जनसंख्या बढ़ रही है, तो आवश्यकताएं भी बढ़ रही हैं. उन्हें पूरा करने के लिए अधिक-से-अधिक प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हो रहा है. फलतः जल, जंगल और जमीन तीनों संकट में आ गये हैं. बढ़ती जनसंख्या का पेट भरने के लिए हर दिन कम हो रही कृषि योग्य भूमि पर रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है. दुर्गा सप्तशती में एक श्लोक है,
‛यावत भूमंडलं धत्ते सशैलवन काननम्
तावत् तिष्ठति मेदिन्याम् संतति: पुत्र पौत्रिकी’
अर्थात पृथ्वी पर मनुष्य का अस्तित्व तभी तक है, जब तक इस पर पहाड़, जंगल और नदियां हैं. कितनी सार्थक पंक्तियां हैं! अब समय आ गया है, जब समाज और सरकारें जनसंख्या विस्फोट के गंभीर खतरों के प्रति पूरी तरह सचेत हो जाएं. जनसंख्या नियंत्रण संबंधी एक दृढ़ कानून का निर्माण और उसका कार्यान्वयन को.
चंदन कुमार, देवघर