जीत हमेशा शांति और अहिंसा की होती है. त्याग और बलिदान के मूल्य वैर और घृणा के विचारों पर हमेशा भारी पड़ते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में हमारे इतिहास से निकलनेवाले इस संदेश को याद दिलाया है.
उन्होंने जालियांवाला बाग की शहादत को रेखांकित किया तथा गुरु नानक और संत कबीर का हवाला देते हुए कहा कि दोनों ने जातिवाद के खिलाफ लड़ाई की और सामाजिक सौहार्द के लिए काम किया. देश के मौजूदा हालात के मद्देनजर प्रधानमंत्री का संदेश हम सबके लिए एक जरूरी सीख है. आपसी वैमनस्यता और अविश्वास को इंगित करतीं अनेक घटनाएं बड़ी चिंता का कारण हैं.
जाति, धर्म, प्रांत और लैंगिक पूर्वाग्रहों के कारण आये दिन कोई भीड़ किसी निर्दोष को हिंसा का शिकार बना देती है. पूर्वाग्रहों को उकसाने के लिए झूठ और अफवाहों को सोशल मीडिया पर तथ्य के रूप में परोसा जा रहा है.
रोजमर्रा के जीवन में हिंसा का चलन कुछ इस हद तक बढ़ा है कि वैश्विक शांति सूचकांक रिपोर्ट में इसका विशेष उल्लेख किया गया है. रिपोर्ट में भारत को 163 देशों की सूची में बहुत पीछे 136वां स्थान मिला है. यूं तो पिछले सालों की तुलना में भारत की स्थिति बेहतर मानी गयी है, पर यह भी कहा गया है कि ‘राजनीतिक अतिवाद’ तथा ‘सामाजिक संघर्ष’ के पैमाने पर भारत का अंकमान चिंताजनक ऊंचाई पर है.
हिंसक घटनाओं के कारण देश को भारी आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत को 2017 में हिंसा के कारण 80 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. यह हमारे सकल घरेलू उत्पादन का (क्रयशक्ति के तुलनात्मक आकलन के आधार पर) नौ प्रतिशत है.
दुनिया के देशों में आंतरिक संघर्ष के एक विश्लेषण में कहा गया है कि पूरे दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया में भारत में राजनीतिक हिंसा की दर सबसे अधिक है. दक्षिण एशिया तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया में 2016 से अब तक हुईं ऐसी हिंसक घटनाओं में 50 प्रतिशत अकेले भारत में हुई हैं. इनमें से 90 प्रतिशत घटनाएं दंगे तथा प्रदर्शनों से संबंधित हैं.
मीडिया रिपोर्टों के आधार पर एक अन्य अध्ययन में ध्यान दिलाया गया है कि बीते आठ वर्षों (2010 से 2017 तक) में गोरक्षा के नाम पर हुई हिंसा में 52 प्रतिशत घटनाएं धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर हमले से जुड़ी हैं. हमले की ऐसी 97 प्रतिशत घटनाएं वर्ष 2014 के बाद घटित हुई हैं.
किसी देश के विकास का एक पैमाना आर्थिक प्रगति है, तो दूसरा सामाजिक सौहार्द और शांति की स्थितियां. सामाजिक सौहार्द के बिगड़ने पर देश का एकजुट होकर आर्थिक प्रगति और समृद्धि की राह पर बढ़ना कठिन हो सकता है. शांति और अहिंसा के प्रधानमंत्री के संदेश से सीख लेते हुए एक संपूर्ण राष्ट्र के रूप में हमें यह याद रखना होगा कि भारत विविधता में एकता का विचार है और यह विचार उदारता, सहिष्णुता तथा पारस्परिक स्वीकार का आकांक्षी है.