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महत्वपूर्ण होंगे पूर्वोत्तर के चुनाव
राहुल महाजन वरिष्ठ पत्रकार नगालैंड, मेघालय और त्रिपुरा में चुनाव तारीखों की घोषणा के साथ ही चुनाव आयोग ने एक बेहद महत्वपूर्ण राजनीतिक संघर्ष का बिगुल फूंक दिया है. पूर्वोत्तर राज्यों में अब तक के ये बहुत रोचक विधानसभा चुनाव होंगे. असम, अरुणाचल और मणिपुर में सरकार बनाने के बाद एनडीए के लिए पूर्वोत्तर राज्यों […]
राहुल महाजन
वरिष्ठ पत्रकार
नगालैंड, मेघालय और त्रिपुरा में चुनाव तारीखों की घोषणा के साथ ही चुनाव आयोग ने एक बेहद महत्वपूर्ण राजनीतिक संघर्ष का बिगुल फूंक दिया है. पूर्वोत्तर राज्यों में अब तक के ये बहुत रोचक विधानसभा चुनाव होंगे. असम, अरुणाचल और मणिपुर में सरकार बनाने के बाद एनडीए के लिए पूर्वोत्तर राज्यों में अपना प्रभाव बढ़ाने का यह अच्छा मौका है. बीजेपी पहले से ही सिक्किम और नगालैंड में सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है.
त्रिपुरा में 18 फरवरी को और नगालैंड व मेघालय में 27 फरवरी को मतदान होंगे. इस समय त्रिपुरा विधानसभा की कुल 60 सीटों में से कुल 59 सीटों पर विधायक मौजूद हैं. जिनमें से सत्तारूढ़ वामपंथी दलों में सीपीएम के 50 और सीपीआई का एक विधायक शामिल है. बीजेपी के पास 6 और कांग्रेस के पास 3 विधायक हैं. वहीं मेघालय की कुल 60 सीटों में से 46 सीटों पर ही विधायक मौजूद हैं, जिनमें से कांग्रेस के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ गुट में कांग्रेस के 23, एनसीपी के 2 और अन्य 8 विधायक शामिल हैं. वहीं यूडीपी के 7, एचएसपीडीपी के 4 और नपीपी के 2 बिधायक विपक्ष का हिस्सा हैं. नगालैंड में विधानसभा की कुल 60 सीटों में से सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक अलाइंस ऑफ नगालैंड में एनपीएफ के 48, बीजेपी के 4 और अन्य 8 विधायक शामिल हैं.
पिछले कुछ सालों में पूर्वोत्तर राज्यों में कांग्रेस का प्रभाव बेहद कमजोर हुआ है. एक-एक कर कांग्रेस के हाथ से पूर्वोत्तर राज्य निकलते जा रहे हैं. दिसंबर 2016 में जिस तरह से अरुणाचल के मुख्यमंत्री प्रेमा खंडू के साथ पीपुल्स पार्टी के 33 विधायक बीजेपी में शामिल हो गये और जिस तरह से 60 सीटों वाली मणिपुर विधानसभा में 31 सीटे जीतने के बावजूद कांग्रेस सरकार नहीं बना पायी और बीजेपी 21 सीटें जीतने के बाद भी एनपीपी और एनपीएफ को साथ लाकर सरकार बनाने में कामयाब हो गयी, यह संकेत करता है कि कांग्रेस को पूर्वोत्तर राज्यों में अपनी राजनीतिक योजना पर विचार करना जरूरी है.
पूर्वोत्तर के राज्यों में आरएसएस का प्रभाव भी कुछ बढ़ा है, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला है. असम, अरुणाचल और मणिपुर जैसे राज्यों में बीजेपी की सरकार है, वहीं नगालैंड और सिक्किम में पूर्वोत्तर नार्थ इस्ट डेमोक्रेटिक अलाइंस में शामिल पार्टियां सत्ता में हैं.
बीजेपी ने कांग्रेस और वाम दलों के खिलाफ पूर्वोत्तर में नार्थ इस्ट डेमोक्रेटिक अलाइंस के गठन का एक प्रभावी गुट खड़ा किया है, जिसके जरिये बेहद महत्व वाली, लेकिन छोटी पार्टियां एनडीए का हिस्सा बने बिना भी बाजेपी के साथ चल सकती हैं. नार्थ इस्ट डेमोक्रेटिक अलाइंस में शामिल पार्टियां इस समय नगालैंड और सिक्किम में सत्ता में हैं. इसलिए अब बीजेपी की नजर मेघालय पर रहेगी. मेघालय में कांग्रेस सत्ता में है, लेकिन मुख्यमंत्री मुकुल संगमा पार्टी की अंदरूनी लड़ाई से जूझ रहे हैं. इस समय 60 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस अपने 29 विधायकों के साथ मेघालय युनाइटेड अलाइंस बना निर्दलीय विधायकों की बैसाखी पर खड़ी है. इन चुनावों में कांग्रेस का अंदरूनी संघर्ष निर्णायक सिद्ध हो सकता है.
नगालैंड में नागा पीपुल्स फ्रंट पिछले 15 साल से सत्ता में है और नागा पीपुल्स फ्रंट के मुख्यमंत्री टीआर जिलीआंग बीजेपी के साथ गठबंधन में सरकार चला रहे हैं, लेकिन वहां भी तेजी से बदलाव हो रहे हैं.
नागा पीपुल्स फ्रंट में अंदरूनी कलह उभर रही है. पूर्व मुख्यमंत्री निफ्यू रिओ के साथ जिलीआंग के पिछले दो सालों में खराब रिश्ते छुपे नहीं हैं. फरवरी 2017 में रिओ ने जिलीआंग को मुख्यमंत्री पद से हटाने और शुरहोजिली को मुख्यमंत्री बनाने में मुख्य भूमिका निभायी और 5 महीने बाद ही शुरहोजिली को हटाकर जिलीआंग के फिर मुख्यमंत्री बनने में मदद की. रिओ का हाल ही में नागा पीपुल्स फ्रंट छोड़ नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी में शामिल होना नागा पीपुल्स फ्रंट को मुश्किल में डाल सकता है. अंदरूनी कलह के चलते ही मुख्यमंत्री जिलीआंग को छह मंत्रियों को भी मंत्रीमंडल से हटाना पड़ा था. हटाये गये मंत्रियों में एक मंत्री बाद में बीजेपी में शामिल हो गया था. ऐसे में नागा पीपुल्स फ्रंट व बीजेपी के गठबंधन में भी दरारें दिख रही हैं.
त्रिपुरा में चुनाव वामदलों के लिए बेहद महत्व वाले हैं. पिछले कुछ सालों में वामदल केरल और त्रिपुरा में सिमट कर रह गये हैं.अगर त्रिपुरा में सत्ता बदली तो वामदलों का देश की राजनीति में अस्तित्व बेहद मुश्किल में आ जायेगा. वामदलों को जहां लगातार विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है, वहीं त्रिपुरा में कांग्रेस अपना आधार उखड़ने के चलते मुश्किल में दिख रही है. वाम दलों का संघर्ष इस बार पुराने राजनीतिक विरोधी कांग्रेस के अलावा पूर्वोत्तर राज्यों में तेजी से पैठ बना रही बीजेपी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस से रहेगा. अगर वाम दल जीतते हैं, तो यह मुख्यमंत्री के तौर पर मानिक सरकार के लिए लगातार पांचवीं पारी रहेगी.
राजनीतिक पहलू से कांग्रेस और बीजेपी जैसे राष्ट्रीय दलों के लिए पूर्वोत्तर राज्यों के चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यहां 8 राज्यों में कुल 25 लोकसभा सीटें भी हैं, जिनमें से इस समय बीजेपी और कांग्रेस के पास 8-8 सीटें हैं. चुनाव आयोग ईवीएम और वीवीपीएटी के जरिये तीनों राज्यों में चुनाव कराने जा रही है. मेघालय में पहली बार वीवीपीएटी का इस्तेमाल किया जायेगा.
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