जिस तरह से तमाम राजनीतिक दलों से लेकर मीडिया मंचों पर किसानों की दुर्दशा का व्याख्यान होता है, उसमें समाधान की शायद ही कोई चर्चा होती है. इससे यही लगता है कि यह समस्या वर्तमान समय में सबसे अधिक बिकाऊ विषय बनकर रह गयी है. इस तरह की परिस्थिति में समाज के सभी प्रभावशाली वर्ग जो किसानों की समस्या को लेकर गंभीर हैं, उनका दायित्व बनता है कि वह इस समस्या के निराकरण की ओर व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयास करें.
अब इन बातों से ऊपर उठना होगा कि हम लोग उपलब्ध संसाधन और समय का इस्तेमाल केवल किसानों की समस्याओं का व्याख्या करने में ही खत्म कर दें. देश की लगभग 125 करोड़ आबादी इस बात से पूरी तरह सहमत है कि देश के सामने सबसे बड़ी समस्या किसानों की दुर्दशा है.
सुमित कुमार, गोविंद फंदह, रीगा (सीतामढ़ी)