आलोक पुराणिक
वरिष्ठ व्यंग्यकार
टीवी रिपोर्ट बता रही थी कि कैसे अलाउद्दीन खिलजी विकट दुर्दांत क्रूर राजा था. कोई भी उसके आगे टिक नहीं पाता था. खिलजी के फोटो टीवी पर रणवीर सिंह की शक्ल में आ रहे थे.
रणवीर सिंह विकट दुर्दांत दिख रहे थे कि अगले ब्रेक में यह अलाउद्दीन खिलजी एक टूथपेस्ट बेचते दिख रहे थे. कतई बंदरवत नाचते हुए खिलजी आह्वान कर रहे थे कि वह वाला टूथपेस्ट इस्तेमाल करना चाहिए. खिलजी की खिलजीगिरी 30 सेकेंड में निपट गयी. बाजार बड़े-बड़े खिलजियों को 30 सेकंड के एड ब्रेक में निपटा देता है. फिर खिलजी अगले एड में चिरौरी सी करते हुए नजर आये कि वह वाली बनियान पहननी चाहिए.
खिलजी का सारा दुर्दांत असर निपट गया. बड़े-बड़े खिलजी टूथपेस्ट और बनियान बेच रहे हैं. कहीं स्तर बहुत बढ़ गया है, तो इंजन आॅयल भी बेच रहे हैं.
बाजार वाले, टीवी एड वाले यह काम बहुत करते दिखते हैं. उधर बंदा जान लड़ाये हुए है यह साबित करने में कि मैं बहुत बड़ा वाला दुर्दांत हूं, इधर भाईजी बनियान बेच रहे हैं.
इस तरह के इश्तिहार बनानेवाले एक बंदे से मैंने कहा कि किसी खिलजी का इम्प्रेशन तो बनने दिया करो. एक झटके में कहां से कहां ले आते हो. एक झटके में क्यों खिलजी को चित्तौड़गढ़ से मंगोलपुरी के शनि बाजार में ले आते हो?
इस सवाल का जवाब इश्तिहार वाले ने यह कहकर दिया- उसी वक्त की तो वैल्यू है.
जिस वक्त बंदा बहुत खिलजी दिख रहा हो, उसी वक्त दिखाना जरूरी है कि वे ही हमारा टूथपेस्ट बेचते हैं.
टाइमिंग का मसला है, आगे-पीछे दिखायेंगे, तो कोई न पहचान पायेगा.
टाइमिंग का ही मसला है. एक टीवी सीरियल में दो दंपत्तियों को दिखाया जाता है. दोनों में पति लोग एक-दूसरे की पत्नियों पर लुच्चेपन के दांव चलते दिखाये जाते हैं. अभी ये चारों पति-पत्नी एक सर्दी से बचानेवाले गर्म इनर-वियर के ब्रांड में मॉडलिंग करते दिखे. एड से लग रहा था जैसे उस ब्रांड के इनर-वियर पहनने से लुच्चेपन में पक्की सफलता मिल जाती है. लुच्चेपन की प्रेरणा देनेवाले इनर वियर कामयाब हैं!
एक बहुत बड़े खिलाड़ी को भारत रत्न मिला. भारत रत्न की खबर के साथ उन्हें एक इंश्योरेंस पाॅलिसी बेचता हुआ दिखाया गया.
मैंने उस इंश्योरेंस पाॅलिसी वाले से निवेदन किया- थोड़ा आगे-पीछे दिखा दो इंश्योरेंस पाॅलिसी की बिक्री. भारत रत्न इस मुल्क का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है. पाॅलिसी वाले के कहे का आशय था- टाॅप क्लास सम्मानित को ही कुछ बेचने का चांस मिलता है. बल्कि, असल में सम्मानित ही वही है, जो कुछ कायदे से बेच पाये.
यूं असहमत होने का स्कोप बचता नहीं है. अलाउद्दीन खिलजी वाली फिल्म कामयाब हो गयी, तो बहुत कुछ बेचते हुए दिखेंगे. वरना तो बनियान और टूथपेस्ट भी हाथ से जाने की आशंका रहेगी!