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पाक की बौखलाहट

समूचे दक्षिण एशिया में जिहादी एजेंडे और हिंसा फैलानेवाले आतंकियों का पनाहगार पाकिस्तान विश्व मंच पर अपनी करतूतों पर परदा डालने के लिए पैंतरे बदल रहा है. इस सच से दुनिया वाकिफ हो चुकी है कि पाकिस्तान के पालतू आतंकी गिरोह उसकी सरजमीं पर खुलेआम रैलियां, चंदा वसूली और लड़ाके तैयार करते हैं. यहां से […]

समूचे दक्षिण एशिया में जिहादी एजेंडे और हिंसा फैलानेवाले आतंकियों का पनाहगार पाकिस्तान विश्व मंच पर अपनी करतूतों पर परदा डालने के लिए पैंतरे बदल रहा है. इस सच से दुनिया वाकिफ हो चुकी है कि पाकिस्तान के पालतू आतंकी गिरोह उसकी सरजमीं पर खुलेआम रैलियां, चंदा वसूली और लड़ाके तैयार करते हैं.

यहां से निकले आतंकी क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा बनते हैं. दुनिया में सर्वाधिक आतंकियों के जमघट वाले अफगानिस्तान और पाकिस्तान इलाके में अमेरिका पिछले डेढ़ दशक से स्थिरता बहाली की जंग लड़ रहा है. पाकिस्तान को गैर-नाटो सहयोगी का दर्जा देकर वर्षों से ईमानदार समर्थन की उम्मीद पाले अमेरिका अब उसकी न केवल हकीकत और हरकत से वाकिफ हो चुका है, बल्कि आर्थिक और राजनयिक तौर पर अब दबाव बनाना भी शुरू कर दिया है. संयुक्त राष्ट्र महासभा में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने जिस प्रकार आतंकी संगठनों के मददगार देशों को लताड़ा और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहिद खकान अब्बासी को दरकिनार कर अन्य नेताओं से मुलाकात की, उसके पीछे नीतिगत बदलाव का संदेश छिपा है.

गत माह उन्होंने अफगान नीति में व्यापक बदलाव करते हुए अफगानिस्तान में भारत की प्रभावी भूमिका को अहम बताया था. अंदरूनी कलह और वैश्विक मंचों से कसते शिकंजे से परेशान पाकिस्तान की बौखलाहट अब सामने आने लगी है. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री कश्मीर मसले और अफगानिस्तान में भारतीय भूमिका पर बेसुरा राग अलाप रहे हैं. पाकिस्तान की कुंठा इस हद तक बढ़ चुकी है कि भारत के ‘कोल्ड स्टार्ट ड्रॉक्ट्रिन’ से निपटने के लिए कम दूरी के नाभिकीय हथियारों का जिक्र वह उत्तर कोरिया की भाषा में करने लगा है.

द्विपक्षीय संबंधों और क्षेत्रीय शांति का हवाला देकर कश्मीर मुद्दे पर प्रलाप को पाकिस्तान अपनी परंपरा बना चुका है. जिस मुद्दे पर 40 वर्षों से औपचारिक चर्चा नहीं हुई, उसे पाकिस्तान उठाकर समय बर्बाद करने की बेजा कोशिश कर रहा है. दरअसल पाकिस्तान कश्मीर राग अलाप कर अपने पापों को छिपाने की कोशिश एक जमाने से करता रहा है.

उसकी नीति और नियति का खोट न केवल भारत के लिए चिंता का सबब है, बल्कि इससे विश्व समुदाय भी परेशान है. एक के बाद एक विश्व मंचों से पाकिस्तान पर उठते सवालों के बाद चीन के समर्थन के बूते अब तक बेपरवाह रहे पाकिस्तान को अलग-थलग पड़ने का डर सताने लगा है. ये डर अनर्गल बयानबाजी के रूप में आ रहा है. बेहतर होगा कि समय रहते पाकिस्तान एक जिम्मेदार पड़ोसी और राष्ट्र के तौर पर अपनी भूमिका निभाये ताकि क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और सहयोग बहाल करने में मदद मिले.

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