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किसका कोहिनूर : एक अंतहीन कहानी!

दुनिया के सबसे बड़े और बेशकीमती हीरों में शुमार कोह-ए-नूर यानी कोहिनूर फिर चर्चा में है. ब्रिटेन की महारानी के राजमुकुट में शोभित इस नायाब चीज को भारत वापस लाने की मांग करती याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही है. गोलकुंडा के खदान से लंदन तक कोहिनूर की यात्रा कई शताब्दियों के ऐतिहासिक […]

दुनिया के सबसे बड़े और बेशकीमती हीरों में शुमार कोह-ए-नूर यानी कोहिनूर फिर चर्चा में है. ब्रिटेन की महारानी के राजमुकुट में शोभित इस नायाब चीज को भारत वापस लाने की मांग करती याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही है. गोलकुंडा के खदान से लंदन तक कोहिनूर की यात्रा कई शताब्दियों के ऐतिहासिक घटनाओं का व्यापक वृत्तांत भी है. आज इसकी वैध मालिकाने को लेकर हो रही बहस हमारे वर्तमान के अंतरराष्ट्रीय कानूनों, कूटनीतिक कोशिशों और औपनिवेशिक अतीत को लेकर हमारी समझ की पेचीदगियों का विवरण है. प्रस्तुत है कोहिनूर के रोमांचक कथा के महत्वपूर्ण पहलुओं पर आधारित इन-डेप्थ की यह कड़ी…

‘दुनिया के सबसे बेशकीमती हीरे कोहिनूर को न तो हमसे छीना गया है और न ही अंगरेजों ने चुराया, इसलिए हमें दावा छोड़ देना चाहिए’- सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में दिये गये इस बयान के बाद सैकड़ों वर्ष पुराना कोहिनूर पुनः चर्चा में है.

वर्ष 1849 में अंगरेजों द्वारा पंजाब पर अपना आधिपत्य जमा लेने के बाद एक समझौता हुआ था, जिसमें कहा गया था कि ‘बेशकीमती हीरा कोहिनूर, जिसे महाराजा रणजीत सिंह ने शाह शुजा-उल-मलिक से हासिल किया था, उसे लाहौर के महाराजा द्वारा इंग्लैंड की महारानी को समर्पित किया जायेगा.’ इसके बाद लॉर्ड डलहौजी की देखरेख में वर्ष 1851 में रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी दलीप सिंह द्वारा हाइड पार्क, लंदन में आयोजित एक भव्य समारोह में महारानी विक्टोरिया को यह उपहार के रूप में दे दिया गया.

कोहिनूर की दिलचस्प कहानी

इस हीरे का मौजूदा नाम ईरान के शासक नादिर शाह ने दिया था. फारसी ‘कोह-ए-नूर’ का अर्थ ‘प्रकाश का पर्वत’ है. लगभग मुर्गी के अंडे का आकारवाले इस हीरे की कीमत आकलन कर पाना संभव नहीं है.

इसको हासिल करने के लिए सदियों तक कई महाराजों, शाहों और राजकुमारों के बीच युद्ध हुए. इसकी कीमत का अंदाजा लगाते हुए अफगान महारानी वफा बेगम ने कहा था कि ‘यदि कोई दमदार व्यक्ति चारों दिशाओं पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण के साथ-साथ ऊपर की दिशा में एक-एक पत्थर उछाले और इन सबके बीच की जगह को यदि सोने से भर दिया जाये, तब भी उसकी कीमत कोहिनूर के बराबर न हो पायेगी.’

पुराने संस्कृत ग्रंथों में अनमोल हीरे का जिक्र ‘समांतिक मणि’ नाम से किया गया है, जिसका अर्थ हीरों में सर्वश्रेष्ठ हीरा है. पौराणिक कथाओं में माना गया है कि यह कभी भगवान श्रीकृष्ण के अधिकार में था.

कोहिनूर का एेतिहासिक सफर

काकातीय वंश के शासन के अंतर्गत आनेवाले गोलकुंडा (तेलंगाना) को कोहिनूर का स्रोत माना जाता है. इसे रायलसीमा की हीरे की खानों से प्राप्त किया गया था. कहा जाता है कि 1310 में दिल्ली सल्तनत के अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण भारत में आक्रमण के समय कोहिनूर हासिल किया था. उसके बाद 400 से अधिक वर्षों तक यह हीरा दिल्ली के शासकों के पास रहा. वर्ष 1526 में इब्राहिम लोधी के युद्ध में हारने के बाद यह मुगल शासक बाबर के पास चला गया. बाबर के बाद कोहिनूर ने शाहजहां के मयूर सिंहासन (तख्ते-ताऊस) को सुशोभित किया.

नादिर शाह ने 18वीं सदी में इसे मुगलों से छीन लिया. वर्ष 1747 में नादिर शाह की हत्या के बाद यह अफगानी शासक अहमद शाह दुर्रानी की संपत्ति बन गया. दुर्रानी के उत्तराधिकारियों के बीच कलह में अहमद शाह की हत्या हो गयी. उसका एक पुत्र शाह शुजा दुर्रानी गिरफ्तार कर लिया गया. शाह शुजा की पत्नी वुफा बेगम बचकर लाहौर पहुंच गयी. इसके बाद पंजाब के सिख महाराजा रणजीत सिंह की सेना ने कश्मीर पर हमला कर शाह शुजा को छुड़ा लिया. शाह शुजा को छुड़ाने की शर्त पर कोहिनूर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह को मिल गया.

वर्ष 1839 तक यह महाराजा रणजीत सिंह के पास रहा, वह इसे ताबीज के रूप में अपनी बाहों में पहनते थे. उनकी मृत्यु के बाद राज्य और इस कीमती हीरे की जिम्मेवारी उनके पांच वर्षीय बेटे दलीप सिंह के ऊपर आ गयी है. अंगरेजों ने पंजाब को कब्जे में ले लिया और बालक दलीप सिंह को कोहिनूर और साम्राज्य सौंपने के लिए विवश कर दिया. इस प्रकार, 1851 में यह इंगलैंड के महारानी के पास आ गया. इसके बाद दलीप सिंह ने अपना पूरा जीवन ब्रिटिश राजपरिवार की निगरानी में इंग्लैंड में ही व्यतीत किया.

– ब्रह्मानंद मिश्र –

कोहिनूर हीरे का मूल वजन 723 कैरेट का था. वर्तमान में यह 105.6 कैरेट ही रह गया है, जिसका वजन 21.5 ग्राम है. वर्ष 1850 में इसे बकिंघम पैलेस में लाने के बाद 38 दिनों में हीरों का नया आकार देने के लिए मशहूर डच फर्म कोस्टर ने इसे नया रूप दिया. फिलहाल, इसका वजन 108.93 कैरेट रह गया. महारानी के ताज का हिस्सा बने कोहिनूर का वजन मात्र 105.6 कैरेट है.

कब और कहां?

1739 : नादिर शाह ने कोहिनूर समेत शाहजहां का मयूर सिंहासन, दरिया-ए-नूर समेत अन्य हीरों को लूट लिया.

1747 : नादिर शाह की हत्या के बाद अफगानिस्तान के शासक अहमद शाह दुर्रानी ने इसे हासिल कर लिया.

1771-1812 : पारिवारिक कलह में अहमद शाह की हत्या के बाद उसके एक पुत्र शाह शुजा को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन उसकी पत्नी वफा बेगम कोहिनूर लेकर पंजाब के शासक रणजीत सिंह के यहां शरण लेने पहुंच गयी.

1813 : रणजीत सिंह की सेना ने कश्मीर के शासक अता मोहम्मद खान को पराजित कर शुजा को छुड़ा लिया. शुजा को छुड़ाने के बदले में रणजीत सिंह ने कोहिनूर की शर्त रखी.

1849 : ईस्ट इंडिया कंपनी ने एंग्लो-सिख युद्ध जीतने के बाद लाहौर में एक समझौता किया, जिसके मुताबिक रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी दुलीप सिंह को कोहिनूर महारानी विक्टोरिया को सौंपना पड़ा.

1851 : कोहिनूर को प्रदर्शनी के लिए हाइड पार्क लंदन में रखा गया.

1852 : टुकड़ों में बांट कर महारानी विक्टोरिया के जड़ाऊ पिन में लगा दिया गया.

1901 : किंग एडवर्ड सप्तम के राजतिलक के समय उनकी पत्नी क्वीन एलेक्जेंड्रिया के क्राउन में लगाया गया.

1911 : किंग जार्ज पंचम के पत्नी मैरी के नये क्राउन में लगाया गया.

1937 : किंग जार्ज षष्ठम की पत्नी क्वीन एलिजाबेथ के क्राउन में लगा दिया गया.

1853 से अब तक : क्राउन आभूषण के साथ लंदन टावर में रखा गया है.

रत्नगर्भा गोलकुंडा के इतिहास प्रसिद्ध हीरे

निकिता डोभाल

ते लंगाना की राजधानी हैदराबाद से महज 11 किमी की दूरी पर स्थित गोलकुंडा कभी कुतुबशाही के मध्यकालीन सल्तनत (1518-1687) की राजधानी था, जिसे बाद में मुगलों ने परास्त कर दिया. अब यह हैदराबाद जिले की एक तहसील भर है. मगर आज का सामान्य-सा लगता विवरण गोलकुंडा के स्वर्णिम, बल्कि यों कहें कि हीरक अतीत के सामने कहीं नहीं टिकता.

यहां विश्व की सबसे पुरानी हीरे की खानें होने के कारण लगभग दो हजार वर्षों तक तो यही माना जाता रहा कि हीरे केवल भारत में ही मिलते हैं. यूरोप के सभी राजवंशों के लिए 18वीं सदी तक हीरों की आपूर्ति गोलकुंडा से ही होती थी. कहा जाता है कि यहां की खानों से कुल एक करोड़ 20 लाख कैरेट हीरे निकले. गोलकुंडा की खानों से निकले हीरों में सर्वाधिक मशहूर कोह-ए-नूर (कोहिनूर) है.

इसे यहां 13वीं सदी में तब निकाला गया, जब कुतुबशाही वंश अस्तित्व में भी नहीं आया था. किंतु कोहिनूर के अलावा भी गोलकुंडा की खानों से कई अन्य अत्यंत प्रसिद्ध हीरे निकले, जिनकी चर्चा नहीं होती. ड्रेसडेन के अलावा ओर्लोव नाम का एक ऐसा ही बड़ा हीरा रूस की साम्राज्ञी कैथेरिन के राजदंड की शोभा बढ़ाता था.

नूर-उल-आइन नामक एक अन्य हीरा गुलाबी रंग का विश्व का सबसे बड़ा हीरा है, जो कभी नेपोलियन की तलवार की मूठ में लगा था. यहां के एक अन्य हीरे का नाम दरिया-ए-नूर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह ईरान के राजमुकुट में लगा है. ब्यू सैंसी, आर्कड्यूक जोसफ तथा प्रिंसी भी यहीं से निकले तीन अन्य मशहूर हीरे हैं, जिन्हें क्रिस्टीज जैसी नीलामी कंपनियों द्वारा हाल में बेचा गया है. यहां के बहुत हीरे विभिन्न मंदिरों और पूर्व निजाम के संग्रह में पड़े हैं.

गोलकुंडा से निकला और कोहिनूर की तरह ही विख्यात एक दूसरे हीरे का नाम होप है, जो 45.52 कैरेट का अत्यंत गहरे नीले रंग का हीरा है. इसके बारे में धारणा है कि जो भी इसका मालिक बना उसे विनाश तथा असामयिक मृत्यु का सामना करना पड़ा. इस सूची में फ्रांस की राज्यक्रांति के वक्त सम्राट रहे लुई सोलहवें का नाम भी है. अब यह वाशिंगटन के नेशनल म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री में सुरक्षित है.

गोलकुंडा के हीरों की प्रसिद्धि का राज उनके विशिष्ट गुणों में छिपा है. ये हीरे तकनीकी रूप से 2ए श्रेणी में रखे जाते हैं, जिनकी खासियत यह है कि उनमें नाइट्रोजन बिलकुल ही नहीं होता. इस वजह से वे देखने में निर्दोष रूप से साफ होने के साथ ही अत्यंत चमकीले भी होते हैं. इनकी एक अन्य विशिष्ट प्रकृति यह थी कि वे कई रंगों में पाये जाते थे. आज नामीबिया की खानें भी कुछ इसी गुणवत्ता के हीरों के लिए जानी जाती हैं,

पर गोलकुंडा के हीरों की बात ही कुछ और

हुआ करती थी.

अनुवाद : विजय नंदन

(मिंट से साभार)

कोहिनूर हालिया विवाद

ब्रिटेन से कोहिनूर हीरा वापस भारत लाने की मांग गाहे-बगाहे होती रहती है, लेकिन इस मुद्दे में कई सारे पेच है. भारत के अलावा पाकिस्तान और अफगानिस्तान में भी कुछ लोगों का दावा है कि इस बेमिसाल हीरे पर उनके देश का अधिकार है. आइये, नजर डालते हैं इस मसले से जुड़े हाल के कुछ विवादों पर-

जून, 2010 : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के तत्कालीन महानिदेशक गौतम सेनगुप्ता ने कहा था कि विदेशों में रखीं ऐतिहासिक भारतीय धरोहरों की सूची बहुत लंबी है तथा इन्हें वापस लाने के लिए कूटनीतिक और कानूनी प्रयासों की जरूरत है. उसी दौरान एएसआइ अमूल्य धरोहरों को उनके मूल देशों को लौटाने के अंतरराष्ट्रीय अभियान से

जुड़ा था.

अगस्त, 2010 : यूपीए सरकार ने 18 अगस्त, 2010 को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि इस बेशकीमती हीरे को भारत लाने की उसकी कोई योजना नहीं है. सरकार की तरफ से बोलते हुए संस्कृति मंत्रालय के तत्कालीन प्रभारी और योजना राज्यमंत्री वी नारायणसामी ने यह भी कहा था कि ईरान में रखे तख्ते-ताऊस को भी वापस लाने पर विचार नहीं किया जा रहा है. सरकार का कहना था कि ये दोनों चीजें 1970 के यूनेस्को कन्वेंशन के तहत नहीं आतीं. इस कनवेंशन में सांस्कृतिक संपत्ति की वापसी का प्रावधान है.

फरवरी, 2013 : भारत की यात्रा पर आये ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरुन ने 20 फरवरी को स्पष्ट शब्दों में कोहिनूर लौटाने से मना कर दिया था.

जून, 2015 : भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसद कीथ वाज ने मांग की थी कि ब्रिटेन कोहिनूर हीरा भारत को लौटा दे. जुलाई महीने में भारतीय सांसद शशि थरूर ने ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड में एक भाषण में हीरे की वापसी की मांग की थी.

नवंबर, 2015 : ऐसी चर्चा चली थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी ब्रिटेन यात्रा के दौरान कोहिनूर हीरा समेत अन्य कीमती वस्तुओं की वापसी की मांग करेंगे, पर इस संबंध में न तो कोई आधिकारिक बातचीत हुई और न ही कोई बयान दिया गया.

फरवरी, 2016: पाकिस्तान के लाहौर के उच्च न्यायालय ने आठ फरवरी को कोहिनूर पर पाकिस्तान का अधिकार होने और उसे ब्रिटेन से वापस लाने की मांग से संबंधित याचिका को मंजूर कर लिया. इससे पहले याचिका में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय और पाकिस्तान-स्थित ब्रिटिश उच्चायोग को प्रतिवादी बनाये जाने पर अदालत के रजिस्ट्रार ने आपत्ति जतायी थी, किंतु न्यायाधीश ने इस आपत्ति को खारिज कर दिया.

अप्रैल, 2016 : सूचना के अधिकार के तहत पूछे गये सवाल के जवाब में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने कहा था कि चूंकि कोहिनूर हीरा आजादी से पहले भारत से ले जाया गया था, इसलिए एएसआइ इस संबंध में कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं है. इसमें यह जानकारी भी दी गयी थी कि ब्रिटिश कब्जे में मौजूद भारतीय वस्तुओं की सूची सरकार या एएसआइ के पास नहीं है. इसी महीने सर्वोच्च न्यायालय ने एक स्वयंसेवी संस्था द्वारा इस मुद्दे पर दाखिल जनहित याचिका पर सरकार से जवाब तलब किया था.

अप्रैल, 2016 : भारत सरकार ने 18 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि ब्रिटिश शासन द्वारा कोहिनूर की चोरी नहीं की गयी थी और न ही इसे जबरन लिया गया था. इसे पंजाब के तत्कालीन शासक ने उपहार में दिया था.

कोहिनूर वापसी की मांग करनेवाली जनहित याचिका को खारिज करने के सवाल पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसे आदेश से कीमती चीजों की वापसी के सरकार की भावी कोशिशों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है, क्योंकि ऐसी वस्तुएं रखनेवाली सरकारें इस न्यायालय के आदेश का इस्तेमाल किसी मांग को ठुकराने के लिए कर सकती हैं.

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