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रणजी ट्रॉफी फाइनल का खिताब जीतने के बाद कोच पंडित ने दी ऐसी प्रतिक्रिया

नागपुर : विदर्भ के कोच चंद्रकांत पंडित को अपने खिलाड़ियों पर पूरा गर्व है जिन्होंने लगातार दूसरा रणजी ट्रॉफी खिताब हासिल करने के दौरान प्रतिद्वंद्वियों को दबाव में डालने से पहले खुद भी दबाव का डटकर सामना किया. देश के सर्वश्रेष्ठ घरेलू कोचों में शुमार पंडित ने अपने रणनीतिक कौशल और अनुशासन के बूते विदर्भ […]

नागपुर : विदर्भ के कोच चंद्रकांत पंडित को अपने खिलाड़ियों पर पूरा गर्व है जिन्होंने लगातार दूसरा रणजी ट्रॉफी खिताब हासिल करने के दौरान प्रतिद्वंद्वियों को दबाव में डालने से पहले खुद भी दबाव का डटकर सामना किया.

देश के सर्वश्रेष्ठ घरेलू कोचों में शुमार पंडित ने अपने रणनीतिक कौशल और अनुशासन के बूते विदर्भ को लगातार दूसरा खिताब दिलाया. विदर्भ ने पिछले साल दिल्ली के खिलाफ पहली बार रणजी ट्रॉफी खिताब हासिल किया था और कई इसे ‘तुक्का’ मान रहे थे और पंडित ने भी सौराष्ट्र के खिलाफ स्वीकार किया था कि लक्ष्य यह साबित करना था कि 2017-18 का खिताब तुक्का नहीं था.

पंडित ने फाइनल के बाद कहा, हां, दबाव था कि हम उस ख्याति के अनुरूप प्रदर्शन कर पायेंगे या नहीं और हमने उस प्रदर्शन को बरकरार रखने की प्रक्रिया अपनायी. मैं इस प्रक्रिया की व्याख्या नहीं करूंगा, लेकिन हमने क्रिकेट बेसिक्स पर काम किया.

पंडित ने कहा कि उन्हें और उनके खिलाड़ियों को साबित करना था ताकि अपने प्रदर्शन से आलोचकों को जवाब दे सकें. पंडित ने कहा, जब इस टीम ने एकजुट प्रदर्शन किया था तो लोगों ने मजाक उड़ाया था, लेकिन अगर ऑस्ट्रेलिया ऐसा करता तो वे इसे एकजुटता कहते हैं. यह एक प्रक्रिया थी और विचारों को बदलने के लिये यह अहम था.

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उन्होंने कहा कि वीसीए ने उन्हें पूरी छूट दी थी और वे सभी उनके कड़े तरीकों से वाकिफ थे. पंडित ने कहा कि उन्हें कभी-कभी शानदार प्रदर्शन कर रहे खिलाड़ियों को अंतिम एकादश से बाहर भी करना पड़ा ताकि टीम में स्वस्थ स्पर्धा बनी रहे. उन्होंने कहा, कोच और खिलाड़ियों के बीच अच्छा तालमेल है. तीन तरह के खिलाड़ी होते हैं, एक जो खेलते हुए खुश हैं, दूसरे जो टीम में रहकर ही खुश हैं और तीसरे जो क्रिकेट में सुधार से खुश थे.

पंडित ने कहा, हमें उनके सोचने के इस तरीके को बदलना था और यह आसान नहीं है. इसके लिये आपको संस्कृति को समझना होता. वर्ष 1934 के बाद से शुरू हुए रणजी टूर्नामेंट के बाद से विदर्भ से पहले केवल पांच टीमें ऐसी हैं जो लगातार ट्रॉफी जीतने की उपलब्धि हासिल कर पायी हैं. कप्तान फैज फजल ने कहा, हमने पिछले दो साल में कड़े अनुशासन का पालन किया है. ईमानदारी से कहूं तो यह धीमी प्रक्रिया है. हर किसी को एक ही दिशा में सोचना था. एकजुटता पर काफी अहमियत दी गयी. पहले दिन से ही मेरे दिमाग में बस एक ही बात थी कि हमें ट्राफी जीतनी है.

सौराष्ट्र के कप्तान जयदेव उनादकट ने कहा कि मैच गंवाना काफी दुखदायी रहा, लेकिन वह हताश नहीं हुए हैं. यह तीसरी बार है जब सौराष्ट्र की टीम फाइनल में पहुंची लेकिन अंतिम बाधा पार नहीं कर पायी.

उनादकट ने कहा, कोई भी हार निराशाजनक होती है. मैं ऐसा नहीं कहूंगा कि यह ज्यादा दर्दभरी थी. ऐसा इसलिये क्योंकि हमने काफी अच्छा क्रिकेट खेला. हमने चुनौती दी. हमारे दो तीन खिलाड़ी ऐसे थे जिन्होंने पदार्पण किया और फिर भी वे अनुभवी खिलाड़ी की तरह खेले. मैं उनके प्रदर्शन से खुश हूं और मुझे इस युवा खिलाड़ियों की टीम की अगुवाई करने पर गर्व है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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