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लॉकडाउन 40 दिन के बाद अब छात्र खरीद सकेंगे मनपसंद किताबें, राजकमल प्रकाशन ने की अनोखी शुरुआत

पुरानी दिल्ली का दरियागंज इलाका. इलाका क्या, चलता-फिरता या फिर आधुनिक भाषा में ज्ञान का भंडार. ज्ञान का भंडार क्यूं? क्यूंकि, यही वो दरियागंज का इलाका है, जहां हर इतवार को पटरियों पर खुल्लम-खुल्ला नयी-पुरानी किताबों के साथ ज्ञान का भंडार बिकता है.

नयी दिल्ली : पुरानी दिल्ली का दरियागंज इलाका. इलाका क्या, चलता-फिरता या फिर आधुनिक भाषा में ज्ञान का भंडार. ज्ञान का भंडार क्यूं? क्यूंकि, यही वो दरियागंज का इलाका है, जहां हर इतवार को पटरियों पर खुल्लम-खुल्ला नयी-पुरानी किताबों के साथ ज्ञान का भंडार बिकता है. इसके साथ ही, इस इलाके में राजकमल प्रकाशन जैसे कई प्रकाशक भी हैं, जो ज्ञान के भंडार को अपने आप में समेटे हैं. दिल्ली के दरियागंज का मतलब ही ज्ञान का सागर है.

भारत के विभिन्न सूबों और कस्बों से दिल्ली जाकर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने जाने वाले या फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU), जवाहर लाल विश्वविद्यालय (JNU), जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने की तमन्ना लेकर देश की राजधानी जाने वाले अमीर-गरीब छात्रों के लिए यह गंगा-जमुनी तहजीब का जीता-जागता मिसाल है. यहां हर वर्ग, जाति, धर्म, संप्रदाय के छात्र-छात्राएं अपनी जरूरत के हिसाब से हर इतवार को किताब देखते हैं और सस्ती कीमतों पर खरीदतें हैं.

कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिए देश में लागू लॉकडाउन का प्रभाव यहां के ज्ञान भंडार पर भी पड़ा और दरियागंज की पटरियां सूनी पड़ी थीं. अब लॉकडाउन के 40 दिन बाद एक बार फिर यह ज्ञान की पटरी गुलजार हो गयी है और अब यहां से विद्यार्थी अपने मनपसंद की किताबें उसी बेताबी और शिद्दत के साथ खरीद सकते हैं. आपको यह भी बताते चलें कि इसमें राजकमल प्रकाशन समूह जैसे देश के नामी-गिरामी प्रकाशकों का अहम रोल है, जिनके प्रयासों से यह कार्य 40 दिन बाद ही सही, मगर शुरू हो गया.

दरियागंज का भीड़भाड़ वाले इस इलाके में 4 मई की सुबह तकरीबन 40 दिनों के लॉकडाउन के बाद सोमवार को किताबों की बिक्री पर लगा ताला खुल गया. राजकमल प्रकाशन समूह ने पाठकों और विद्यार्थियों के लिए किताब उपलब्ध कराने के लिए सुविधा शुरू कर दी है. पाठक दरियागंज के दफ़्तर से किताबें ख़रीद सकते हैं. साथ ही राजकमल प्रकाशन की वेबसाइट से ऑनलाइन ऑर्डर करके भी घर बैठे किताबें प्राप्त कर सकते हैं.

राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी का कहना है कि यह संकट का समय है. बाहर खतरा है, लेकिन खतरा उठाते हुए भी हम पूरी सावधानी के साथ पाठकों के लिए किताबें उपलब्ध कराने की अपनी जिम्मेदारी को पूरी करेंगे. सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखते हुए एवं सैनिटाजर की सुविधा के साथ हमने पाठकों के लिए किताब खरीदने की सुविधा उपलब्ध कराने का फैसला किया है. राजकमल प्रकाशन के दरियागंज के दफ्तर से पाठक रोज सबुह 11 बजे से 4 बजे तक किताबें खरीद सकते हैं. साथ ही, ग्रीन जोनन और ऑरेंज जोन में जहां स्थितियां दिल्ली के मुकाबले थोड़ी बेहतर हैं, वहां भी हम किताबें घर तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि लॉकडाउन में लोग अपने को अकेला महसूस न करें इसलिए हम वाट्सएप्प के जरिए फ्री में लोगों को पढ़ने की सामग्री उपलब्ध करवा रहे हैं. पिछले 40 दिनों से हम लगातार फेसबुक लाइव के जरिए लेखकों और साहित्य-प्रेमियों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं. लाइव में अपने प्रिय लेखक से जुड़ना पुरानी यादों को ताज़ा कर देता है. साथ ही, इस विश्वास को मजबूत करता है कि इस मुश्किल घड़ी में हम एक हैं. अगर हम एक हैं, तो मुश्किलें छोटी हो जाती हैं.

राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा रोज वाट्सएप्प के जरिए खास तैयार की गयी पुस्तिका साझा की जाती है. पाठ-पुनर्पाठ में रोजाना अलग-अलग तरह की पाठ्य सामाग्री को चुनकर तैयार किया जाता है, ताकि पाठकों को सभी तरह के विधाओं का स्वाद मिल सके. अब तक 10,000 लोग इस ग्रुप से जुड़कर पुस्तिका प्राप्त कर रहे हैं. फेसबुक और ट्विटर के जरिए पाठकों ने इस पहल की भरपूर प्रशंसा की है.

KumarVishwat Sen
KumarVishwat Sen
कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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