Rajya Sabha: संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 1948 में अंगीकृत मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की 77वीं वर्षगांठ को लेकर राज्यसभा के सभापति सीपी राधाकृष्णन ने राज्यसभा को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि यह ऐतिहासिक एवं कालजयी दस्तावेज मौजूदा समय में भी विश्व के प्रत्येक व्यक्ति के लिए मानवीय गरिमा, स्वतंत्रता, समानता और न्याय की आधारशिला है.
इस वर्ष की वैश्विक विषय-वस्तु है ‘मानव अधिकार: हमारे दैनिक जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं’- तीन सरल किंतु अत्यंत गहन सत्यों को रेखांकित करती है. मानव अधिकार सकारात्मक होते हैं, मानव अधिकार अनिवार्य होते हैं और मानव अधिकार प्राप्त हैं. मानव अधिकार व्यक्ति और समुदाय दोनों को सशक्त बनाते हैं, किसी भी तरह की क्षति से बचाते हैं, मानवीय गरिमा की रक्षा करते हैं और समाज को बेहतर बनाते हैं.
प्राचीन आदर्श से सीख लेने की जरूरत
सभापति ने कहा कि सभी को वसुधैव कुटुम्बकम् यानी संपूर्ण संसार एक परिवार है के अपने प्राचीन आदर्श से प्रेरणा लेते हुए ऐसे संविधान के मार्गदर्शन में सदैव इन सार्वभौमिक मूल्यों का एक दृढ़ समर्थक रहा है जो मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति-निदेशक सिद्धांतों की गारंटी देता है. निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के रूप में यह हमारा परम कर्तव्य है कि हम यह सुनिश्चित करें कि मानव अधिकार प्रत्येक नागरिक के लिए विशेष रूप से हमारे समाज के सबसे संवेदनशील, दुर्बल और हाशिए पर स्थित वर्गों के प्रति जीवंत एवं वास्तव में उपलब्ध रहें.
मानव अधिकार दिवस 2025 के इस गरिमामय एवं पावन अवसर पर सभी को यह प्रण लेना चाहिए कि ऐसे राष्ट्र और विश्व के निर्माण के लिए अथक प्रयास करेंगे, जहां मानव अधिकार वास्तव में हमारे दैनिक जीवन की मूलभूत आवश्यकता हों. इसका प्रभाव सकारात्मक, गरिमापूर्ण जीवन के लिए अनिवार्य और बिना किसी भेदभाव के समान रूप से सर्वसुलभ हो.
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