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Book Launch: बिहार और झारखंड के बंटवारे का सच सामने लाने की कोशिश

'नीले आकाश का सच' पुस्तक सिर्फ घटनाओं का दस्तावेज नहीं, बल्कि एक ऐसे पत्रकार की यात्रा पर आधारित है, जिसमें बताया गया है कि सत्ता के गलियारों में किस तरीके से और कैसे फैसले झारखंड को अलग राज्य बनाने को लिए गए.

Book Launch: बिहार और झारखंड की राजनीति में सत्ता पर आने पर भ्रष्टाचार और प्रशासनिक तंत्र की फायदे के लिए उपयोग करने की जटिल सच्चाइयों को उजागर करने का काम ‘नीले आकाश का सच’ पुस्तक में किया गया है. यह किताब सिर्फ घटनाओं का दस्तावेज नहीं, बल्कि एक ऐसे पत्रकार की यात्रा पर आधारित है, जिसमें बताया गया है कि सत्ता के गलियारों में किस तरीके से और कैसे फैसले लिए जाते हैं. पुस्तक में बताया गया है कि कैसे घोटालों की गूंज लोकतंत्र के स्तंभों को हिलाने का काम करती है और बाद में कैसे जनता की उम्मीदें राजनीतिक समीकरणों में गुम हो जाती हैं. 


किताब की शुरुआत ‘बिहार विभाजन और झारखंड गठन’  से शुरू होती है. इसमें झारखंड आंदोलन की पृष्ठभूमि, संघर्ष और आखिरकार राज्य निर्माण की राजनीतिक खींचतान का विस्तृत विवरण दिया गया है. इसमें बताया गया है कि झारखंड के कद्दावर आदिवासी नेता करिया मुंडा राजनीतिक समीकरणों के कारण मुख्यमंत्री की कुर्सी तक काबिज होने से अंतिम समय में वंचित रह गए और बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बन गए. 


किताब में ‘पशुपालन घोटाला और लालू प्रसाद’ के राजनीति के भ्रष्टाचार की कहानी को बताया गया है. किताब को वरिष्ठ पत्रकार अमरेंद्र कुमार ने लिखा है और इसका विमोचन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय ने किया. इस मौके पर उन्होंने कहा कि जैसे आकाश में बादलों के बीच भी मौसम का सही अनुमान लगाया जा सकता है. उसी तरह इस किताब में भ्रष्टाचार को तमाम बाधाओं के बीच उजागर करने की कोशिश की गयी है. सच को लंबे समय तक दबाया नहीं जा सकता है. 


बिहार और झारखंड की उम्मीदों को बिखरने का है विवरण

किताब में ‘लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के रोचक किस्से’ बिहार की सत्ता के दिलचस्प और कभी-कभी हास्यपूर्ण पहलुओं को सामने लाने की कोशिश की गयी है. इसमें सत्ता के भीतर के कई ऐसे किस्से हैं जो राजनीति के मानवीय और नाटकीय दोनों रूपों को दिखाया गया है. साथ ही ‘सचिवालय का सच और रिपोर्टिंग की यात्रा’ में लेखक की ओर से पत्रकारिय विवरण को दर्शाने की कोशिश की गयी है. इसमें सरकारी फाइलों, प्रशासनिक गड़बड़ियों और जमीनी रिपोर्टिंग के अनुभवों का पूरा विवरण है. 


‘बिहार के घोटालों से नहीं सीख लिया झारखंड ने’ शीर्षक में बताया गया है कि कैसे झारखंड में बिहार की गलतियों को दोहराया गया. नए राज्य में भ्रष्टाचार, गुप्त फंड के दुरुपयोग और सत्ता की राजनीति ने जनता की उम्मीदों धूमिल करने का काम किया. किताब के अंत में ‘द गार्डियंस : बाबूलाल से हेमंत तक’ में झारखंड की राजनीतिक यात्रा को सहेजने की कोशिश की गयी है. इसमें राज्य के मुख्यमंत्रियों की भूमिका, उनके फैसले, और विकास बनाम राजनीति की जंग का सटीक विश्लेषण पेश किया गया है. 

‘नीले आकाश का सच’ पुस्तक में बिहार और झारखंड की राजनीति की मिट्टी से निकली वह कहानी है जिसमें सत्ता की सच्चाई, घोटालों की गंध, और उम्मीदों के नीले आकाश की तलाश एक साथ चलती है. इसमें बताया गया है कि कैसे दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू प्रसाद देश का प्रधानमंत्री बनना चाहते थे और इसके लिए अपनी रणनीति तैयार कर शतरंज की बिसात भी बिछा रखा था. लेकिन प्रधानमंत्री नहीं बन सके. इस पुस्तक से यह पता लगेगा कि अपनी लाश पर झारखंड राज्य बनने देने की बात करने वाले लालू प्रसाद क्यों और कैसे अलग झारखंड राज्य बनाने के लिए राजी हुए. अलग झारखंड राज्य बनने को लेकर धुरी बने शिबू सोरेन को राजनीतिक दलों ने कैसे सत्ता से रखा दूर, उनके साथ क्या हुआ छल और खेल हुआ यह भी बताने की कोशिश की गयी है. 

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