AYUSH: पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और आयुष मंत्रालय ने दो दिवसीय तकनीकी परियोजना बैठक का आयोजन किया, जिसका उद्देश्य आयुष प्रणालियों को अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य हस्तक्षेप मानकों में एकीकृत करना है.
यह समझौता अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य हस्तक्षेप वर्गीकरण (आईसीएचआई) के अंतर्गत पारंपरिक चिकित्सा के लिए एक समर्पित मॉड्यूल विकसित करने की आधारशिला है. इस पहल के अंतर्गत भारत आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी (एएसयू) प्रणालियों को वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए आवश्यक वित्तीय और तकनीकी ढांचे उपलब्ध करा रहा है.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य कोड विकसित करने पर बल
तकनीकी सत्रों की अध्यक्षता आयुष मंत्रालय की संयुक्त सचिव सुश्री कविता गर्ग ने की, जिन्होंने आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी चिकित्सा के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य हस्तक्षेप कोड को विकसित करने में भारतीय टीम की अगुवाई की. इस बैठक में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सभी छह क्षेत्रों – जिनमें एएफआरओ, एएमआरओ, ईएमआरओ, ईयूआरओ, एसईएआरओ, डब्ल्यूपीआरओ– से व्यापक भागीदारी देखने को मिली, जिससे पारंपरिक चिकित्सा पर एक व्यापक वैश्विक दृष्टिकोण सुनिश्चित हुआ.
जेनेवा स्थित डब्ल्यूएचओ मुख्यालय के प्रमुख प्रतिनिधियों, जैसे रॉबर्ट जैकब, नेनाद कोस्टांजेक, स्टीफन एस्पिनोसा और डॉ. प्रदीप दुआ ने वर्गीकरण संबंधी चर्चाओं का नेतृत्व किया. उनके साथ जामनगर स्थित डब्ल्यूएचओ वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा केंद्र (जीटीएमसी) से डॉ. गीता कृष्णन और दिल्ली स्थित डब्ल्यूएचओ एसईएआरओ कार्यालय से डॉ. पवन कुमार गोदतवार भी शामिल हुए. भूटान, ब्राजील, भारत, ईरान, मलेशिया, नेपाल, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, फिलीपींस, ब्रिटेन और अमरीका सहित सदस्य देशों ने अपने-अपने देश की स्थिति का मूल्यांकन करने और हस्तक्षेप विवरणों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए भाग लिया.
गौरतलब है कि आईसीएचआई में पारंपरिक चिकित्सा का एकीकरण इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि हस्तक्षेप कोडिंग विभिन्न देशों और चिकित्सा प्रणालियों में स्वास्थ्य प्रक्रियाओं के लिए एक साझा भाषा प्रदान करती है. यह परियोजना विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए निर्धारित समय सीमा के भीतर संचालित की जायेगी. इससे न केवल नैदानिक अनुसंधान और नीतिगत सहायता मिलेगी, बल्कि इससे वैश्विक स्तर पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य सूचना प्रणालियों में पारंपरिक चिकित्सा के विस्तार का मार्ग भी प्रशस्त होगा.

