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‘पेलेट गन” पर नहीं लगेगी पूरी पाबंदी, ‘स्टन लैक” जैसे विकल्प पर हो रही चर्चा

श्रीनगर : कश्‍मीर के हालात अभी भी पूरी तरह काबू में नहीं है, कुछ ढीलके बाद भी पिछले 51 दिनों से घाटी में आशांति के मद्देनजर कर्फ्यू का माहौल है. अशांति से निपटने के लिए सुरक्षाकर्मी अभी भी पेलेट गन का इस्तेमाल कर सकते हैं. बीच में खबरें आई थी कि सुरक्षाकर्मी घाटी में पेलेट […]

श्रीनगर : कश्‍मीर के हालात अभी भी पूरी तरह काबू में नहीं है, कुछ ढीलके बाद भी पिछले 51 दिनों से घाटी में आशांति के मद्देनजर कर्फ्यू का माहौल है. अशांति से निपटने के लिए सुरक्षाकर्मी अभी भी पेलेट गन का इस्तेमाल कर सकते हैं. बीच में खबरें आई थी कि सुरक्षाकर्मी घाटी में पेलेट गन का इस्तेमाल नहीं करेंगे. कश्मीर घाटी में पेलेट गनों का विकल्प सुझाने के लिए गठित एक समिति ने मिर्च भरे ग्रेनेडों और ‘स्टन लैक’ गोलों के इस्तेमाल का सुझाव दिया ताकि भीड़ पर काबू पाया जा सके. बहरहाल, पेलेट गनों पर पूरी तरह पाबंदी नहीं लगाई जाएगी और ‘दुर्लभतम मामलों’ में इनका इस्तेमाल किया जाएगा. एक अधिकारी ने कहा कि पेलेट गन से फायरिंग करने का विकल्प कायम रहेगा, लेकिन इसका इस्तेमाल सिर्फ दुर्लभतम मामलों में किया जाएगा.

सुरक्षा बलों से गहन विचार-विमर्श करने और कश्मीर घाटी में जमीनी हालात का परीक्षण करने के बाद वरिष्ठ सरकारी अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं. कश्मीर घाटी में भीड पर काबू पाने के लिए पेलेट गनों के इस्तेमाल पर सरकार को काफी आलोचना का सामना करना पड रहा है, क्योंकि इस हथियार से बडे पैमाने पर घाटी में लोग घायल हुए हैं. गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव टी वी एस एन प्रसाद की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय विशेषज्ञ समिति ने सोमवार को अपनी रिपोर्ट सौंपी.

कश्मीर घाटी में पिछले दिनों हुए विरोध प्रदर्शनों में कई युवाओं की आंखों की रोशनी चले जाने की शिकायतें मिलने के बाद इस समिति का गठन किया गया था. एक आधिकारिक प्रवक्ता ने बताया कि गैर-जानलेवा हथियारों के तौर पर पेलेट गनों के संभावित विकल्प तलाशने के लिए गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट केंद्रीय गृह सचिव राजीव महर्षि को सौंप दी है. बहरहाल, प्रवक्ता ने यह नहीं बताया कि विशेषज्ञ समिति किन निष्कर्षों पर पहुंची है.

सूत्रों ने कहा कि नोनिवामाइड के नाम से भी जाना जाने वाला पेलारगोनिक एसिड वैनिलिल एमाइड (पावा) और ‘स्टन लैक’ गोले जैसे गैर-जानलेवा हथियारों और लॉंग रेंज अकाउस्टिक डिवाइस (लार्ड) को पेलेट गनों के संभावित विकल्प के तौर पर सुझाया गया है. बहरहाल, लार्ड का इस्तेमाल ग्रामीण इलाकों में किया जा सकता है क्योंकि यह श्रीनगर की पुरानी इमारतों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.

गौरतलब है कि आठ जुलाई को हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी की एक मुठभेड में हुई मौत के बाद कश्मीर घाटी में पिछले 51 दिनों से जारी अशांति में दर्जनों लोग मारे गए हैं जबकि कई अन्य घायल हुए हैं.

Prabhat Khabar Digital Desk
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