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केंद्र आम आदमी को प्रदान करेगा भ्रष्ट बाबुओं को दंडित करने का हक

नयी दिल्ली : पहली बार केंद्र ने आम आदमी को भ्रष्ट आईएएस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग करने के वास्ते अधिकार संपन्न बनाने का फैसला किया है. यह कदम सुब्रमण्यम स्वामी बनाम पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं अन्य के मामले में उच्चतम न्यायालय का फैसला आने के बाद उठाया गया है. उच्चतम न्यायालय […]

नयी दिल्ली : पहली बार केंद्र ने आम आदमी को भ्रष्ट आईएएस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग करने के वास्ते अधिकार संपन्न बनाने का फैसला किया है. यह कदम सुब्रमण्यम स्वामी बनाम पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं अन्य के मामले में उच्चतम न्यायालय का फैसला आने के बाद उठाया गया है. उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि प्रासंगिक कानूनों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो नागरिक को उस जनसेवक पर मुकदमा के लिए शिकायत दर्ज करने से रोकता है जिसपर अपराध करने का आरोप है.
इस फैसले के बाद कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) को बिना किसी प्रस्ताव या दस्तावेजों के आईएएस अधिकारियों पर मुकदमा चलाने की मंजूरी मांगने संबंधी निजी व्यक्तियों से अनुरोध मिले हैं. डीओपीटी ने आज जारी मसविदा दिशानिर्देश में कहा कि यह उल्लेखनीय है कि ऐसे अनुरोध, जो नागरिकों से मिले हैं, शिकायत की तरह के हैं और उनके साथ उनके पक्ष में कोई दस्तावेज सबूत नहीं है, जिनकी जांच करवा सकते हैं यानी कि ऐसे अनुरोध बिना किसी प्रस्ताव या दस्तावेज के बगैर होते हैं.
उसने कहा कि जांच एजेंसियों से प्राप्त मामलों के लिए मूलभूत मापदंड और जरुरतों को ध्यान में रखते हुए यह तय किया गया है कि निजी व्यक्ति से प्राप्त अभियोजन मंजूरी संबंधी अनुरोध से निबटने के लिए प्रक्रिया को सही दिशा प्रदान की जाए.
डीओपीटी ने कहा, ‘‘किसी निजी व्यक्ति से प्राप्त राज्य सरकार में कार्यरत आईएएस अधिकारी के खिलाफ अभियोजन संबंधी मंजूरी प्रस्ताव को संबंधित राज्य सरकार के रास्ते आगे बढ़ाया जा सकता है क्योंकि ऐसी राज्य सरकार संबंधित जनसेवक, जो उसके प्रशासनिक नियंत्रण में कार्यरत है या था, के कथित कदाचार के बारे में मूलभूत सूचना प्रदान करने के लिए सटीक स्थिति में है.
विभाग ने कहा, ‘‘यदि ऐसे निजी व्यक्तियों से सीधे डीओपीटी को प्रस्ताव मिलता है तो उसे प्राथमिक जांच एवं प्रासंगिक रिकार्ड के लिए संबंधित राज्य को अग्रसारित किया जाएगा. ” यदि उस आईएएस अधिकारी के खिलाफ प्रथमदृष्टया मामला बनता है तो राज्य सरकार को एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए और संबंधित अधिकारी का पक्ष जानने पर विचार करना चाहिए.
ऐसी रिपोर्ट सभी प्रासंगिक रिकार्ड और सबूत के साथ डीओपीटी के पास वहां के अधिकृत प्राधिकार के अनुमोदन के साथ अग्रसारित की जानी चाहिए. डीओपीट ने कहा कि यदि संबंधित राज्य सरकार संबंधित रिकार्डों और अन्य सबूतों के परीक्षण के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि किसी कथित कदाचार को लेकर प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता जो भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत अधिकार हो, तो वह संबंधित व्यक्ति को सूचित करेगी जिसने इस बारे में अभियोजन मंजूरी का अनुरोध किया है. इस मसविदा दिशानिर्देश पर सभी राज्य सरकारों एवं केंद्र सरकार के मंत्रालयों से 12 अगस्त तक अपनी टिप्पणियां देने को कहा गया है.

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