नयी दिल्ली : राजद प्रमुख लालू प्रसाद और पांचवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले नीतीश कुमार जैसे कुछ राजनीतिक सहयोगी एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं. अनुभवी राजनीतिक पत्रकार संकर्षण ठाकुर की पुस्तक ‘‘द ब्रदर्स बिहारी” में बिहार के इन दो सबसे ताकतवर नेताओं के जीवन पर प्रकाश डाला गया है. इस किताब का प्रकाशन हार्पर कोलिंस ने किया है. पहली बार सत्ता का स्वाद चखने के बाद दोनों अलग हो गये और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी के लहर में अपनी राजनीतिक जमीन को बचाने के लिए लगभग दो दशक की राजनीतिक दुश्मनी के बाद दोनों एकसाथ आये. ठाकुर ने दोनों नेताओं की राजनीतिक यात्रा और अपनी सहानुभूति भरी लेकिन निष्पक्ष आंखों से राज्य की स्थिति का विवरण दिया हैं.
हालांकि कई बार उनका अवलोकन इतना व्याकुल कर देने वाला है कि आप भविष्य को लेकर आशंकित हो जाते हैं क्योंकि दोनों के शासन के तरीके में कुछ भी समान नहीं है और वे अब एकसाथ सत्ता में हैं. पिछड़ी जाति से आने वाले दो नेताओं ने भाजपा को कडी शिकस्त दी है, ऐसे में यह किताब उन लोगों को जरुर पढ़नी चाहिए जो बिहार की राजनीति और इन दो नेताओं के बारे में जानना चाहते हैं. यह किताब लेखक की नई रचना नहीं है वरन इसमें इन दो नेताओं पर उनकी पहले की कृतियों का समावेश है. हालांकि राज्य की बिल्कुल बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति में इसका महत्व बढ़ जाता है.
लेखक ने उस सवाल को सुलझाने का भी प्रयास किया है कि किन कारणों से 17 वर्ष की दोस्ती के बाद अपना लगभग सबकुछ दांव पर लगाते हुए नीतीश ने भगवा परिवार से रिश्ता तोड़ लिया. भाजपा भले ही नीतीश पर विश्वासघात और प्रधानमंत्री पद की महत्वकांक्षा का आरोप लगाती रही हो लेकिन ठाकुर का इस विषय पर दूसरा नजरिया है. बकौल ठाकुर नीतीश के मन में यह बात घर कर गयी कि मोदी एक ऐसे व्यक्ति हैं जो देशवासियों के मन में डर पैदा करते हैं और जिनके साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता है. नीतीश इस पुस्तक में एक नायक के रुप में उभरे हैं, एक ऐसा नेता जिनके कुछ खास सिद्धांत हैं और जिसके लिए सत्ता ही सबकुछ नहीं है बल्कि शासन का एक साधन मात्र है. इस किताब में उनका चित्रण एक ऐसे व्यक्ति के रुप में किया गया है जो किसी बड़े लक्ष्य के लिए कुछ समझौते कर लेता है लेकिन उसका मूल तत्व खत्म नहीं होता.
कुशासन के कारण लालू का साथ छोडने के लगभग दो साल बाद उन्होंने वर्ष 1996 में भाजपा के साथ हाथ मिलाया लेकिन सुनिश्चित किया कि राज्य पर भगवा पार्टी के हिंदुत्व के एजेंडे की छाया नहीं पड़े. इसी के तहत वह जब तक भाजपा के साथ थे तब तक मोदी को बिहार में प्रचार करने की अनुमति नहीं दी. हालांकि ठाकुर बहुत इस बारे में ज्यादा नहीं कहते और आपके मन कुछ शंका छोड़ जाते हैं कि खलनायक कौन है. लालू 1990 में भारी अपेक्षाओं के बीच बिहार के मुख्यमंत्री बने. ठाकुर ने अपनी पुस्तक में लालू के 15 साल के शासन का विवरण दिया है. यह वह दौर था जब अपराध और राजनीति का गठजोड़ इतना ताकतवर हो गया था कि एक अपराधी एवं एक राजनीतिज्ञ के बीच का फर्क पता करना मुश्किल हो गया था. किताब में ठाकुर ने बताया कि किस प्रकार नीतीश ने प्रदेश को लालू के साये से बाहर निकाला और राज्य में कानून-व्यवस्था कायम किया.