नयी दिल्ली : भारत के प्रधान न्यायाधीश आर एम लोढा ने आज जोर देकर कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर कोई समझौता नहीं हो सकता है और उसके पास किसी भी तरह के हस्तक्षेप को विफल करने की क्षमता निहित है. उच्च न्यायिक नियुक्तियों के लिए न्यायाधीशों के निर्णायक मंडल की प्रणाली समाप्त करने की दिशा में उठाये गए कदमों की पृष्ठभूमि में न्यायमूर्ति लोढा ने हालांकि संसद की ओर से पारित कानून का प्रत्यक्ष जिक्र नहीं किया लेकिन यह जरुर कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को छीनने का कोई प्रयास सफल नहीं होगा.
‘रुल ऑफ लॉ कनवेंशन 2014’ विषयक सेमिनार को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जनता का विश्वास बनाये रखने के लिए न्यायिक स्वतंत्रता जरुरी है और यह एक संस्था है जो कार्यपालिका या किसी और की ओर से किये गए गलत कार्यो के मामले में उनकी मदद करती है. प्रधान न्यायाधीश ने वकील समुदाय का आहवाहन करते हुये कहा कि ऐसे लोगों को दूर रखा जाये जो ‘न्यायपालिका की छवि धूमिल करने के हथकंडे अपनाते हैं. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में किसी भी तरह का भ्रष्टाचार ‘अपवित्रता का संरक्षण करना’ है जो लोकतंत्र के विकास के रास्ते में सबसे खराब बीमारी है.’
प्रधान न्यायाधीश के पद से 27 सितंबर को सेवानिवृत्त हो रहे न्यायमूर्ति लोढा ने कहा, ‘मैं इस विषय (विधेयक) पर नहीं बोलूंगा लेकिन न्यायपालिका की स्वतंत्रता के मसले को छूना चाहता हूं जो मुझे बहुत ही प्रिय है. यह ऐसी चीज है जिससे समझौता नहीं हो सकता है.’ उन्होंने कहा, ‘उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में दो दशक से अधिक समय तक यानी 21 साल तक, न्यायाधीश रहने के बाद, मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि न्यायपालिका में आंतरिक शक्ति है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता लेने का कोई भी प्रयास सफल नहीं होगा.’ न्यायमूर्ति लोढा ने कहा, ‘मेरा अनुभव है कि मोटे तौर पर जनता समझती है कि न्यायपालिका ऐसी संस्था है जिसकी संस्थागत स्वतंत्रता को प्रभावित नहीं किया जा सकता.’
उन्होंने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि वे सभी न्यायपालिका की स्वतंत्रता को हर कीमत पर बनाये रखेंगे जिन्हें न्यायपालिका से प्यार है. जनता के मन में यह भरोसा है कि यदि कार्यपालिका या किसी अन्य ने कुछ भी गलत किया तो न्यायपालिका उनकी मदद के लिये है. न्यायमूर्ति लोढा ने ब्रिटेन के न्यायिक नियुक्ति आयोग का जिक्र करते हुये कहा कि हाल ही में लंदन की उनकी यात्रा के दौरान उन्हें बताया गया कि पांच साल पहले आयोग के गठन के बाद नियुक्तियों की गुणवत्ता में कोई बदलाव नहीं आया है लेकिन ‘ये पारदर्शिता अवश्य लाया है.’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि आर्थिक विकास के दौर में भ्रष्टाचार भी बढ रहा है और यह ‘बहुत-बहुत’ जरुरी है कि न्यायपालिका भ्रष्टाचार मुक्त रहे.
उन्होंने कहा, ‘यदि न्यायपालिका में थोडा बहुत भ्रष्टाचार है तो एक बात होगी कि यह अपवित्रता को संरक्षण देगी. विकसित हो रहे लोकतंत्र में यह बीमारी का सबसे खराब रुप है और यहां मौजूद आप सभी से मैं अनुरोध करता हूं कि ऐसा कुछ मत कीजिये जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से न्यायपालिका में भ्रष्टाचार लाये क्योंकि भ्रष्टाचार ऐसी चीज नहीं है जो एक हाथ से हो जाये. ऐसे लोग हैं जो हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं.’ न्यायमूर्ति लोढा ने कहा, ‘न्यायपालिका से हर तरह का भ्रष्टाचार खत्म करना होगा और न्यायपालिका की पवित्रता बनाये रखना एक चुनौती है.’ न्यायमूर्ति लोढा ने देश की आजादी में वकालत के पेशे की भूमिका की सराहना करते हुये कहा, ‘अब, कानून का शासन बनाये रखने में वकीलों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गयी है. कानून के शासन को कोई भेद नहीं सकता भले ही वह कितना भी ताकतवर हो.’