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प्रसिद्ध साहित्यकार असगर वजाहत ने शाहीन बाग की महिलाओं पर की यह टिप्पणी, पोस्ट पर मचा बवाल

नयी दिल्ली : हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार असगर वजाहत के एक सोशल मीडिया पोस्ट पर बवाल मचा हुआ है और लोग उन्हें ट्रोल कर रहे हैं, कई लोग ऐसे भी हैं, जो उनकी पोस्ट पर समर्थन में खड़े हैं. दरअसल असगर वजाहत ने 11 फरवरी को एक पोस्ट लिखा, जिसमें उन्होंने शाहीन बाग की महिलाओं […]

नयी दिल्ली : हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार असगर वजाहत के एक सोशल मीडिया पोस्ट पर बवाल मचा हुआ है और लोग उन्हें ट्रोल कर रहे हैं, कई लोग ऐसे भी हैं, जो उनकी पोस्ट पर समर्थन में खड़े हैं. दरअसल असगर वजाहत ने 11 फरवरी को एक पोस्ट लिखा, जिसमें उन्होंने शाहीन बाग की महिलाओं पर टिप्पणी की.

असगर ने अपने पोस्ट में लिखा-दो-तीन दिन पहले अपने मित्र प्रोफेसर एस. के. जैन के साथ शाहीन बाग़ गया था. वहां मैंने महिलाओं को बैठे हुए देखा. बड़ी खुशी हुई कि भारत के संविधान को बचाने के लिए महिलाएं इतनी तकलीफ उठा रही हैं. लेकिन यह भी मन में आया कि अगर ये महिलाएं केवल बैठी न रहतीं बल्कि कुछ करती होतीं, जैसे बर्फीले पहाड़ों पर तैनात भारतीय सिपाहियों के लिए स्वेटर या दस्ताने बुनती होतीं तो शायद और अच्छा होता है.

असगर साहब के इस पोस्ट पर बवाल मच गया और कइयों ने उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया. Mangalesh Dabral ने अपने कमेंट में लिखा- यह आपको क्या हो गया है? बेहतर हो आप यह कला सीखे और बुनें!

Jagadishwar Chaturvedi ने असगर साहब को यह सलाह दी कि आप यह पोस्ट हटा लें. Geeta Shree ने लिखा आपका पोस्ट पसंद नहीं आया. आप नहीं जानते, क्या कहा आपने. आपने उन औरतों का अपमान किया है. मेरे प्रिय लेखक हैं आप. ऐसा हल्का बयान नहीं देना चाहिए आपको.

Manisha Kulshreshtha असहमति ठीक है, विचार रखें कि स्वेटर ही क्यों या अन्य पढ़ने लिखने के काम क्यों नहीं, या स्त्री ही क्यों पुरुष क्यों नहीं लेकिन कृपया असग़र वज़ाहत जी की बुजुर्गियत का सम्मान न भूलें।

Pushpandra Pandey ने लिखा-बिरयानी खाने में समय लगता है और फिर पैसे गिनने में भी. पुष्पेंद्र पांडेय के इस कमेंट पर Sohail Ahmed ने जवाब दिया -इसलिए कुछ लोग बुर्का पहनकर बिरयानी खाने आ जाते हैं.असगर के पोस्ट पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए Shailendra Sugandhi लिखते हैं-कोई कानून संवैधानिक है या गैर संवैधानिक यह सड़क पर बैठे लोग तय करेंगे या कोई पत्रकार तय करेगा या कोई राजनीतिक दल तय करेगा? उसके लिए तो संविधान में व्यवस्था है ना तो उस व्यवस्था पर भरोसा ना करके 2 महीने से सड़क जाम कर कर कौन सा संविधान बचाया जा रहा है.

इस टिप्पणी पर Asghar Mehdi ने बीबीसी के एक न्यूज का लिंक शेयर किया है, जिसमें पीएम मोदी और सुप्रीम कोर्ट पर खबर है. इसके बाद शैलेंद्र लिखते हैं-जिसको भारतीय कोर्ट पर भरोसा नहीं है उसको भारत में फिर क्यों रहना चाहिए जब ऐसा बोला जाता है तो विक्टिम कार्ड खेलने लगना है.Shailendra Sugandhi के इस कमेंट पर Sohail Ahmed लिखते हैं-सरकार को किसने हक़ दिया ये फ़ैसला करने का कि कौन इस मुल्क में रहेगा कौन नहीं और 2 महीने से सड़क जाम है तो दर्द होने लगा है. कश्मीर और कश्मीर के अवाम को पिछले 5 महीने से बंदी बनाया हुआ है. तब तो आपके मुंह में दही जम गया था और आज भी जमा हुआ है.

Anil Janvijay ने अपने कमेंट में लिखा है-उन सिपाहियों के लिए, जिन्होंने पिछले छह महीने से पूरे कश्मीर को जेल बना रखा है?वहीं कई लोगों ने असगर वजाहत के इस पोस्ट का समर्थन भी किया है. स्वेटर बुनने वाले पोस्ट को Rahul Chauhan ने बहुत ही क्रिएटिव मैसेज बताया है और लिखा है कि इससे देशव्यापी संदेश जायेगा.

Vishnu Rajgadia लिखते हैं- वैसे, यह अच्छा नरेटिव हो सकता है. वजाहत साहब की बात को झटके में खारिज करने के बजाय एक मिनट का वक्त सोचने पर दिया जाये. आज भारत में पूरी राजनीति के पीछे अवधारणा का खेल चल रहा है. इसमें भाजपा काफी आगे है. नोटबन्दी की कतार में आप खड़े हों तो इसे सीमा पर खड़े सैनिकों से जोड़ दिया गया. अगर शाहीनबाग की महिलाएं प्रतीकात्मक तौर पर सैनिकों के लिए स्वेटर बुनकर भेजती हों, तो नकली राष्ट्रवादियों की हवा निकल जाएगी.

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