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प्लास्टिक कचरे के खिलाफ जंग : पानी परोसने के लिए प्रचलन में फिर लौट रहे तांबे के लोटे

इंदौर : केंद्र सरकार के स्वच्छता सर्वेक्षण में लगातार तीन साल देश के सबसे साफ शहर का खिताब जीतने वाले इंदौर में प्लास्टिक के कचरे के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के लिए तांबे के लोटों में पानी परोसे जाने का चलन जोर पकड़ रहा है. इस सिलसिले में खुद इंदौर नगर निगम (आईएमसी) ने भी पहल […]

इंदौर : केंद्र सरकार के स्वच्छता सर्वेक्षण में लगातार तीन साल देश के सबसे साफ शहर का खिताब जीतने वाले इंदौर में प्लास्टिक के कचरे के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के लिए तांबे के लोटों में पानी परोसे जाने का चलन जोर पकड़ रहा है. इस सिलसिले में खुद इंदौर नगर निगम (आईएमसी) ने भी पहल की है. आईएमसी के आयुक्त आशीष सिंह ने बुधवार को बताया कि शहर में हमारे आठ दफ्तरों में पेयजल परोसने के लिए प्लास्टिक की बोतलें प्रतिबंधित कर दी गयी हैं. इनकी जगह तांबे के लोटे या स्टील और कांच के गिलास में पानी परोसा जा रहा है.

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उन्होंने बताया कि प्लास्टिक के कचरे के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के एक अन्य प्रयास के तहत शहर के मेघदूत गार्डन के सामने स्थित चाट-चौपाटी को डिस्पोजेबल प्लास्टिक फ्री मार्केट बनाया गया है. इंदौर के भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम) की एक प्रवक्ता ने बताया कि संस्थान के परिसर में प्लास्टिक की बोतलों और खाने-पीने के पात्रों के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली ‘डिस्पोजेबल प्लास्टिक’ सामग्री पर पाबंदी लगा दी गयी है.

प्रवक्ता ने कहा कि हमारे यहां प्लास्टिक के कांटे-चम्मच तक प्रतिबंधित हो गये हैं. इनके स्थान पर लकड़ी के बने कांटे-चम्मच का इस्तेमाल किया जा रहा है. शहर में अन्य सरकारी परिसरों के अलावा, शादी-पार्टी के कई निजी समारोहों में भी प्लास्टिक की बोतलों या इसके डिस्पोजेबल गिलास के स्थान पर पेयजल परोसने के लिए तांबे के लोटों का इस्तेमाल देखा जा सकता है. इन कार्यक्रमों में मेहमान देशी अंदाज में लोटे से पानी पीते नजर आते हैं.

केंद्र के स्वच्छ भारत अभियान के लिए आईएमसी के सलाहकार असद वारसी ने बताया कि करीब 30 लाख की आबादी वाले शहर में फिलहाल हर रोज करीब 600 टन ठोस कूड़ा निकलता है. इसमें 150 टन प्लास्टिक अपशिष्ट शामिल है. उन्होंने बताया कि सूखे कचरे और इसमें मिले प्लास्टिक अपशिष्ट की छंटाई तथा पुनर्चक्रमण के लिए 300 टन क्षमता का रोबोटिक संयंत्र लगाया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि शहर में पांच टन क्षमता का ऐसा संयंत्र पहले ही चल रहा है, जिसमें प्लास्टिक कचरे से डीजल बनाया जा रहा है. प्लास्टिक कचरे के निपटारे के कुछ और संयंत्रों की नयी परियोजनाओं पर भी काम जारी है.

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