नयी दिल्ली:यूपीए की सांप्रदायिक हिंसा विधेयक को मोदी सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है. एनडीए के कामकाज संभालने के बाद इस विवादित विधेयक को गृह मंत्रालय द्वारा आगे बढाये जाने की संभावना नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते इस विधेयक को ‘विनाश का नुस्खा’ बताते हुए कहा था कि ये विधेयक भारत के सांप्रदायिक सद्भाव के लिए खतरा होगा.
गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि नयी सरकार के कार्यभार संभालने के बाद से अब तक सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई. प्रधानमंत्री मोदी या गृह मंत्री राजनाथ सिंह के साथ किसी चर्चा में ये विधेयक नहीं आया. एक अधिकारी ने कहा कि विधेयक नयी सरकार की सोच के अनुरूप नहीं है, इसलिए हमने तय किया कि विधेयक को चर्चा के लिए नहीं रखा जाये.
ममता, जया और मोदी ने किया था विरोध
मनमोहन सरकार ने कड़े दंडात्मक प्रावधानवाले इस विधेयक को पारित कराने का प्रयास किया था, लेकिन तब गुजरात के मुख्यमंत्री और पश्चिम बंगाल की ममता एवं तमिलनाडु की जयललिता सहित विपक्ष के कई मुख्यमंत्रियों ने इसका कड़ा विरोध किया था. 15 वीं लोकसभा में यूपीए सरकार ने इस विधेयक में कुछ संशोधन करके सदन में लाने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो सकी. संशोधन के मुताबिक विधेयक को सभी समुदायों के लिए तटस्थ बनाना और दंगों की स्थिति में केंद्र सरकार की भूमिका कम करना शामिल था.
क्या था विधेयक में :
-विधेयक में विशेष तौर पर उल्लेख था कि दंगों की जिम्मेदारी बहुसंख्यक समुदाय पर होगी.
-मसौदा विधेयक को सभी समूहों या समुदायों के लिए तटस्थ बनाया गया है.
-इसके अलावा संशोधित प्रस्ताव के तहत केंद्र सरकार की भूमिका समन्वयक की होगी. जब राज्य सरकार मदद मांगती है तो ही केंद्र कार्रवाई करेगा.
-पहले के मसौदे में केंद्र को सांप्रदायिक हिंसा के मामले में राज्य सरकार से विचार विमर्श किये बिना केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को भेजने का एकतरफा अधिकार हासिल था.