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अयोध्या भूमि विवाद मामले पर सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ का पुनर्गठन

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक रूप से संवदेनशील अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर सुनवाई के लिए शुक्रवार को पांच सदस्यीय एक नयी संविधान पीठ का गठन किया. पीठ का पुनर्गठन इसलिए किया गया क्योंकि मूल पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति यूयू ललित ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग […]

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक रूप से संवदेनशील अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर सुनवाई के लिए शुक्रवार को पांच सदस्यीय एक नयी संविधान पीठ का गठन किया. पीठ का पुनर्गठन इसलिए किया गया क्योंकि मूल पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति यूयू ललित ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था.

नयी पीठ में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एसए नजीर को शामिल किया गया है. न्यायमूर्ति एनवी रमण भी नयी पीठ का हिस्सा नहीं हैं. वह 10 जनवरी को जिस पीठ ने मामले पर सुनवाई की थी, उसमें शामिल थे. नयी पीठ में एकमात्र मुस्लिम सदस्य न्यायमूर्ति एसए नजीर सदस्य हैं. न्यायमूर्ति भूषण भी पीठ में शामिल नये सदस्य हैं. उच्चतम न्यायालय रजिस्ट्री ने विभिन्न पक्षों को भेजे गये नोटिस में कहा कि अयोध्या विवाद मामला गुरुवार 29 जनवरी 2019 को प्रधान न्यायाधीश की अदालत में संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जायेगा.

इससे पहले सुनवाई के दौरान एक मुस्लिम पक्षकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा था कि न्यायमूर्ति ललित बतौर अधिवक्ता 1997 में एक संबंधित मामले में यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की ओर से पेश हुए थे. उन्होंने कहा था कि कल्याण सिंह (यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में) अयोध्या में विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाये रखने का आश्वासन पूरा करने में विफल हो गये थे. अयोध्या में विवादित ढांचा 6 दिसंबर 1992 को गिराया गया था.

करीब 20 मिनट तक मामले की सुनवाई के बाद पीठ ने अपने आदेश में इस तथ्य का जिक्र किया कि धवन ने कहा कि न्यायमूर्ति ललित द्वारा इस मामले की सुनवाई करने पर कोई आपत्ति नहीं है और इस बारे में अंतिम निर्णय तो न्यायमूर्ति को ही करना है. पीठ ने कहा, इस तथ्य को उठाये जाने पर न्यायमूर्ति ललित ने सुनवाई में आगे हिस्सा लेने के प्रति अनिच्छा व्यक्त की इसलिए हमारे पास सुनवाई की तारीख और इसके समय आदि के बारे में निर्णय करने के लिए इसे स्थगित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

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