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#Adultery: जानें कब और कैसे दी गयी थी धारा 497 को चुनौती

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट की प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से व्यभिचार से संबंधित दंडात्मक प्रावधान को असंवैधानिक करार देते हुए उसे मनमाना और महिलाओं की व्यक्तिकता को ठेस पहुंचाने वाला बताते हुए निरस्त किया.इस मामले में हुई सुनवाई से संबंधित घटनाक्रम कुछ इस प्रकार रहा […]


नयी दिल्ली
: सुप्रीम कोर्ट की प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से व्यभिचार से संबंधित दंडात्मक प्रावधान को असंवैधानिक करार देते हुए उसे मनमाना और महिलाओं की व्यक्तिकता को ठेस पहुंचाने वाला बताते हुए निरस्त किया.इस मामले में हुई सुनवाई से संबंधित घटनाक्रम कुछ इस प्रकार रहा ….

10 अक्टूबर, 2017 : केरल के एनआरआई जोसेफ शाइन ने न्यायालय में याचिका दायर कर आईपीसी की धारा 497 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी. याचिका में शाइन ने कहा कि पहली नजर में धारा 497 असंवैधानिक है क्योंकि वह पुरूषों और महिलाओं में भेदभाव करता है तथा संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करता है.

आठ दिसंबर, 2017 : न्यायालय ने व्यभिचार से जुड़े दंडात्मक प्रावधानों की संवैधानिक वैधता की समीक्षा करने पर हामी भरी.

पांच जनवरी, 2018 : न्यायालय ने व्यभिचार से जुड़े दंडात्मक कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजा .

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11 जुलाई, 2018 : केन्द्र ने न्यायालय से कहा कि धारा 497 को निरस्त करने से वैवाहिक संस्था नष्ट हो जाएगी .

एक अगस्त, 2018 : संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई शुरू की.

दो अगस्त, 2018 : न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक पवित्रता एक मुद्दा है लेकिन व्यभिचार के लिए दंडात्मक प्रावधान अंतत: संविधान प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन है.

आठ अगस्त, 2018 : केन्द्र ने व्यभिचार के संबंध में दंडात्मक कानून बनाए रखने का समर्थन किया, कहा कि यह सामाजिक तौर पर गलत है और इससे जीवनसाथी, बच्चे और परिवार मानसिक तथा शारीरिक रूप से प्रताड़ित होते हैं.

आठ अगस्त, 2018 : न्यायालय ने छह दिन तक चली सुनवाई के बाद व्यभिचार संबंधी दंडात्मक प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा .

27 सितंबर, 2018 : न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक बताते हुए इस दंडात्मक प्रावधान को निरस्त किया .

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