अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त, मध्य प्रदेश में अब एमबीबीएस की परीक्षा हिंदी में
इंदौर : आज पूरे देश में हिंदी दिवस मनाया जा रहा है. एक ओर जहां अंग्रेजी भाषा के प्रति लोगों के बढ़ते लगाव और हिंदी भाषा की अनदेखी करने की वजह से हिंदी प्रेमी निराश हैं. वहीं, मध्य प्रदेश सरकार की इस घोषणा से कि मध्यप्रदेश में चिकित्सा पाठ्यक्रमों की परीक्षाओं में भाषा अब कोई बाधा नहीं रहेगी, सूबे में हिंदी में पर्चा देकर भी एमबीबीएस और अन्य पाठ्यक्रमों की प्रतिष्ठित डिग्री हासिल की जा सकती है, ने लोगों को एक बार फिर हिंदी को लेकर उत्साहित कर दिया है.
मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय ने इस फैयले को इस साल से लागू करने का निर्णय लिया है. फैसले के बाद हिंदी पट्टी के इस प्रमुख राज्य में एमबीबीएस के अलावा नर्सिंग, डेंटल, यूनानी, योग, नेचुरोपैथी और अन्य चिकित्सा संकायों के पाठ्यक्रमों की परीक्षाएं हिंदी में दिये जाने का सिलसिला शुरू हो गया है.
जबलपुर स्थित विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ रविशंकर शर्मा ने बताया कि परीक्षाओं के दौरान हमारे लिए यह जांचना जरूरी होता है कि किसी विद्यार्थी को संबंधित विषय का ज्ञान है या नहीं. इस सिलसिले में भाषा की कोई बाधा नहीं होनी चाहिए. यही सोचकर हमने अपने सभी पाठ्यक्रमों की परीक्षाओं में अंग्रेजी के विकल्प के रूप में हिंदी या अंग्रेजी मिश्रित हिंदी के इस्तेमाल को अनुमति देने का फैसला किया है.
कुलपति ने कहा- सिर्फ अंग्रेजी जानने से ही कोई डॉक्टर नहीं बन जाता
40,000 विद्यार्थियों को होगा फायदा
जबलपुर स्थित विश्वविद्यालय के कुलपति ने बताया कि इस साल सूबे के 10 चिकित्सा महाविद्यालयों के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब एमबीबीएस पाठ्यक्रम के विद्यार्थियों को हिंदी या अंग्रेजी मिश्रित हिंदी में परीक्षा देने की आजादी मिली. इस बार एमबीबीएस प्रथम वर्ष पाठ्यक्रम के कुल 1,228 में से 380 विद्यार्थियों यानी लगभग 31 प्रतिशत छात्रों ने हिंदी या अंग्रेजी मिश्रित हिंदी में परीक्षा दी है. कुलपति को भरोसा है कि यह परिणाम गुजरे वर्षों की तुलना में बेहतर होगा.
छात्रों के लिए राह आसान नहीं, हिंदी में है पुस्तकों का अभाव
बहरहाल, चिकित्सा पाठ्यक्रमों में हिंदी में पढ़ाई विद्यार्थियों के लिए उतनी आसान भी नहीं है. एमबीबीएस के लिए हिंदी की स्तरीय पुस्तकों का गंभीर अभाव है. चिकित्सा पाठ्यक्रमों के विद्यार्थियों के लिए हिंदी की अच्छी किताबें बेहद जरूरी हैं. वर्ष 1992 में हिंदी में शोध प्रबंध (थीसिस) लिखकर एमडी (फिजियोलॉजी) करने वाले एक विद्वान ने कहा कि कोर्स के लिये हिंदी की कुछ किताबें तो ऐसी हैं जिन्हें पढ़कर सिर पीट लेने का मन करता है.