नयी दिल्ली : डेटा सुरक्षा पर गठित न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में बनी उच्च स्तरीय समिति ने लोगों की निजी जानकारी की सुरक्षा बढ़ाने के लिए आधार कानून में बड़ा बदलाव करने की सिफारिश की है। समिति का कहना है कि आधार के माध्यम से पहचान पुष्ट करने का अधिकार केवल भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) द्वारा मान्यता प्राप्त सार्वजनिक इकाइयों या कानूनन अधिकार प्राप्त इकाइयों को ही होना चाहिए, ताकि लोगों की निजता की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.
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समिति की 213 पन्नों की रिपोर्ट में आधार को लेकर ये सुझाव दिये गये हैं, लेकिन यह उसके निजी डेटा सुरक्षा विधेयक के मसौदे का हिस्सा नहीं है. समिति ने शुक्रवार को ही यह सरकार को सौंपी है. समिति ने आधार जारी करने वाली संस्था के लिए अधिक आर्थिक और कामकाजी स्वायत्ता का सुझाव दिया है. समिति का सुझाव है कि यूआईडीएआई को न केवल निर्णय लेने में अधिक स्वायत्त बनाया जाना चाहिए, बल्कि उसका कामकाज सरकार की एजेंसियों से भी स्वतंत्र होना चाहिए.
साथ ही, उसे पारंपरिक नियामकीय शक्तियों से परिपूर्ण बनाया जाना चाहिए, ताकि वह कानून को लागू कर सके. इसमें कहा गया है कि यूआईडीएआई के पास जुर्माना लगाने की शक्ति हो. साथ ही, विधायी उल्लंघन करने वाले या कानून का अनुपालन नहीं करने वाले सरकारी और निजी ठेकेदारों लिए जब्ती इत्यादि के आदेश देने की शक्ति भी उसके पास होनी चाहिए.
समिति की सिफारिशें इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने आधार मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रखा हुआ है. समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस लिहाज से आधार कानून में संशोधन किया जाना चाहिए, ताकि ग्राहकों से जुड़ी जानकारी को बेहतर किया जा सके और यूआईडीएआई की स्वायत्ता भी बनाये रखी जा सके.
रिपोर्ट में हाल के ऐसे कई मामलों का उल्लेख किया गया है, जहां कंपनियां गलत तरीके से आधार को लेकर जोर डालती रहीं हैं. अवैध कार्यों के लिए आंकड़ों का इस्तेमाल करती रहीं और आंकड़ों को गलत तरीके से दूसरों को उपलब्ध कराया गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की घटनाओं से सूचना की निजता प्रभावित होगी, इसके तुरंत समाधान की आवश्यकता है.
रिपोर्ट कहती है कि फिलहाल इन घोषणाओं के पीछे कोई सांविधिक समर्थन नहीं है और आज की तिथि में यह अस्पष्ट बना हुआ है कि इन घोषणाओं को किस प्रकार प्रभावी तरीके से अमल में लाया जायेगा.