बेंगलुरु : राजनीति में दोदोस्त कब दुश्मन बन जायें और दो दुश्मन कब दोस्त बन जायें कहना मुश्किलहै. कर्नाटक विधानसभा चुनावकेनतीजे के बाद बना राजनीतिकसमीकरण इसकासबसेबड़ा उदाहरण है.जिसकुमारास्वामी के बढ़ते वर्चस्व सेखीझकरसिद्धारमैयाने जनता दल सेकुलर छोड़ा था, आज उसीशख्स को वे बिना शर्त मुख्यमंत्री बनाने को तैयार हैं.कुमारास्वामी को मुख्यमंत्री बनाने की बेचैनीजितनी कांग्रेस कुनबे में दिख रही है, उतनीतो जनता दल सेकुलर में भी नजर नहीं आती.इसकी वजह भाजपा को सत्ता तक पहुंचने सेहरहाल में रोकने काप्रयास है.
सिद्धारमैया मूल रूप से समाजवादी परिवार के नेता हैं. उनका राजनीतिक पालन-पोषण वहीं हुआ है और देवेगौड़ा उनके राजनीतिक संरक्षक रहे हैं. सिद्धारमैयाजब जनता दल सेकुलर में भी थे तोवेकुमारास्वामी से बड़े नेता थे और उनके पिता एचडी देवेगौड़ा के सबसे करीबी सहयोगी थे.कर्नाटककेमुख्यमंत्री के रूप में देवेगौड़ा सरकार में सिद्धा ताकतवर वित्त मंत्री होते थे और जब वे 1996 में प्रधानमंत्रीबन दिल्ली चलेगये तो जेएचपटेलकी सरकार में वे औपचारिक रूप सेनंबरदो की हैसियतहासिलकरते हुए उप मुख्यमंत्री बने.
लेकिन,समाजवादीधड़े का सबसे बड़ा संकट उसकाव्यक्तिवपरिवारकेंद्रितहो जानाहै. जनतादल सेकुलर भी इससे पीड़ित हुआ. देवेगौड़ानेअपने पुत्र कुमारास्वामी को पार्टी में अधिक महत्व देनाशुरू किया, ताकिउनके बाद उसकेनेतावही हों. यह बात वरिष्ठ सिद्धारमैया को रास नहीं आयी. कुमारास्वामी ने अपना राजनीतिक कद ऊंचा करने के लिए अहिंदा मूवमेंट में अपनी भागीदारी बढ़ाई. अहिंदा यानी अल्पसंख्यक, पिछड़ा व दलित का अंग्रेजी में छोटा स्वरूप. यह वर्ग तक कांग्रेस का आधार वोट बैंक हुआ करता था.
कुमारास्वामी को इस रूप में मजबूती मिलने का मतलब था कि पिछड़ा वर्ग कुरुबा से ताल्लकु रखने वाले सिद्धारमैयाकीजरूरतकमरहजाना और उन्हें पार्टी से बाहर तक का रास्ता दिखाया जा सकता था. सिद्धा राजनीति के चतुर खिलाड़ी रहे हैं और अधिक प्रभावी निर्णय के लिए जाने जाते हैं.
2006 तक देवेगौड़ा से उनके मतभेद गहरा गये. इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी अखिल भारतीय प्रगतिशील जनता दल की स्थापना की और बाद में उसका विलय कांग्रेस में हो गया. 2006 में चामुंडेश्वरी से कांग्रेस के टिकट पर लड़े और मात्र 257 मतों से जनता दल सेकुलर के उम्मीदवार को हरा पाये, जिसे बीजेपी का समर्थन भी हासिल था.
सिद्धारमैया जल्द कांग्रेस के नेतृत्व वर्ग में शामिल हो गये. वे धर्म सिंह के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार में उप मुख्यमंत्री बने. 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की प्रचार समिति के प्रमुख बने, इस चुनाव में भले कांग्रेस हार गयी, लेकिन उसने उन्हें विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया और फिर 2013 में सिद्धारमैया चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री बने. इस चुनाव में कांग्रेस को भाजपा के अंदर की टूट का पूरा लाभ मिला.
अब पांच साल बाद बहुमत हासिल करने से दूर रहे सिद्धारमैया अपने पुराने राजनीतिक बैरी एचडी कुमारास्वामी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाये हुए हैं, जिसका संकेत उन्होंने चुनाव के अगले ही दिन यह कह कर दे दिया था कि दलित मुख्यमंत्री पर उन्हें एतराज नहीं है.