नयी दिल्ली : केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में रविवार को नौ नये मंत्रियों को शामिल करने और चार राज्यमंत्रियों को प्रोन्नत कर कैबिनेट मंत्री बनाये जाने के कदम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुशासन पर विशेष ध्यान केंद्रित करने के तौर पर तो देखा ही जा रहा है, साथ ही इस विस्तार में भाजपा के राजनीतिक आयामों का भी विशेष ध्यान रखा गया है. कैबिनेट मंत्री के रूप में आज शपथ लेने वाले धर्मेंद्र प्रधान ओडिशा में पार्टी का चेहरा बनकर उभरे हैं. पेट्रोलियम मंत्री के रूप में उनके नेतृत्व में गरीब परिवारों को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन देने की पेट्रोलियम मंत्रालय की उज्जवला योजना को भाजपा ने अपनी राजनीतिक सफलताओं में गिनाया है.
ओडिशा यूं भी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की सूची में प्राथमिकता वाले राज्यों में हैं. 2019 में एक साथ होने वाले लोकसभा चुनाव और ओडिशा विधानसभा चुनाव से पहले प्रधान को कैबिनेट मंत्री के रूप में पदोन्नत किये जाने से इस तटीय राज्य में पार्टी मजबूत हो सकती है. इसी तरह मुख्तार अब्बास नकवी को कैबिनेट मंत्री बनाये जाने और पूर्व आईएएस अधिकारी अल्फोंस कन्नथनम को मंत्रिमंडल में शामिल करने से भाजपा को अल्पसंख्यक समुदाय के बीच पैठ बढ़ने की संभावना लगती है. केरल से ईसाई समुदाय से ताल्लुक रखने वाले कन्नथनम 1979 बैच के आइएएस अफसर हैं. 1989 में उनके डीएम रहते कोट्टायम सौ फीसदी साक्षरता वाला देश का पहला शहर बना था. भाजपा केरल में भी अपना आधार बढ़ाने के लिए भरसक प्रयास कर रही है.
भाजपा केरल में काफी संख्या में रहने वाली ईसाई आबादी को लुभाने के लिए अनेक प्रयास करती रही है लेकिन उसे अभी तक बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिली है. नकवी मोदी सरकार में इकलौते मुस्लिम कैबिनेट मंत्री होंगे. नौ नये मंत्रियों में शिव प्रताप शुक्ला, अश्विनी कुमार चौबे और अनंत कुमार हेगड़े जहां ब्राह्मण समुदाय से आते हैं तो आर के सिंह और गजेंद्र सिंह शेखावत राजपूत हैं. सत्यपाल सिंह जाट समुदाय से आते हैं, वहीं वीरेंद्र कुमार दलित समुदाय से हैं. माना जाता है कि राज्यसभा सदस्य शुक्ला के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अच्छे समीकरण नहीं हैं लेकिन उन्हें मंत्री बनाने के फैसले को ब्राह्मणों को भी खुश रखने के पार्टी के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है.
बिहार से नाता रखने वाले चौबे आरएसएस में अच्छी साख रखते हैं. उन्हें अपने राज्य में सुशील कुमार मोदी जैसे बड़े नेताओं से अच्छा तालमेल नहीं होने के लिए जाना जाता है. बिहार में भाजपा जहां ओबीसी समुदाय में पैठ बढ़ा रही है वहीं चौबे को सरकार में शामिल करने का कदम संतुलन के तौर पर देखा जा रहा है. साल 2015 में बिहार विधानसभा चुनावों में भाजपा की बड़ी हार के बाद उम्मीदवारों के चयन को लेकर नाराजगी जताने वाले आर के सिंह पर भी पार्टी ने भरोसा जताया है. राजपूत वर्ग से आने के साथ ही प्रशासनिक ट्रैक रिकार्ड और ईमानदार छवि वाले सिंह पर मोदी ने विश्वास जताया है जहां इसी राज्य से दूसरे राजपूत नेता राजीव प्रताप रुड़ी को मंत्री पद से हटाया गया है.
उत्तर प्रदेश के जाट नेता संजीव बाल्यान को मंत्रिमंडल से हटाये जाने के बाद इसी समुदाय के सत्यपाल सिंह को मंत्री बनाया गया है जो मुंबई के पुलिस आयुक्त रह चुके हैं और प्रशासनिक कामकाज का अनुभव रखते हैं. दलित नेता वीरेंद्र कुमार मध्य प्रदेश के टीकमगढ से सांसद हैं जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. वह संघ में अच्छा प्रभाव रखते हैं और छह बार से लोकसभा सदस्य हैं. अनंत कुमार हेगड़े कर्नाटक के उत्तर कन्नड से लोकसभा सांसद हैं. 28 साल की उम्र में पहली बार सांसद बनने के बाद लोकसभा में उनकी यह पांचवीं पारी है. गजेंद्र सिंह शेखावत जोधपुर, राजस्थान से लोकसभा सदस्य हैं. राजस्थान में भी अगले साल चुनाव होंगे.