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कश्मीर में दीवारों के भीतर तक देख सकेगी भारतीय सेना, तैनात किये सक्षम रडार

अनंतनाग : दीवारों के भीतर या छतों में बनी जगहों में छुपे आतंकवादियों का पता लगाने के लक्ष्य से कश्मीर घाटी में उग्रवाद-विरोधी अभियानों के दौरान भारतीय सेना अब ‘दीवारों के भीतर’ का हाल बताने में सक्षम रडार का प्रयोग करेगी.आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सेना ने ऐसी कुछ रडार प्रणाली आयात भी कर ली […]

अनंतनाग : दीवारों के भीतर या छतों में बनी जगहों में छुपे आतंकवादियों का पता लगाने के लक्ष्य से कश्मीर घाटी में उग्रवाद-विरोधी अभियानों के दौरान भारतीय सेना अब ‘दीवारों के भीतर’ का हाल बताने में सक्षम रडार का प्रयोग करेगी.आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सेना ने ऐसी कुछ रडार प्रणाली आयात भी कर ली है. उन्होंने बताया कि यह तकनीक उग्रवाद-विरोधी अभियानों के दौरान ज्यादा सटीक और प्रभावी साबित होगी. यह सेना को सघन क्षेत्रों में मकानों के भीतर छिपे आतंकवादियों का ठिकाना बतायेगी और इससे असैन्य नागरिकों को हताहत होने से भी बचाया जा सकेगा.

उग्रवाद-निरोधी अभियानों से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि एक बार से ज्यादा मौकों पर ऐसा हुआ है कि सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस के विशेष अभियान समूह को पुष्ट खुफिया जानकारी के बावजूद आतंकवादियों से निपटे बगैर वापस लौटना पड़ा है. बाद में स्थानीय मुखबिरों ने बताया कि जिस मकान पर छापा मारा गया, आतंकवादी उसी मकान में विशेष रूप से बनाये गये भूमिगत ठिकाने या छत पर बनायी गयी फाॅल्स सीलिंग में छुपे हुए थे.

पिछले वर्ष आठ जुलाई को भी ऐसा ही हुआ था, जब सुरक्षा बलों ने आतंकवादी संगठन हिज्बुल-मुजाहीद्दीन के पोस्टर-ब्वाॅय बुरहानी वानी को मार गिराया था. पहली बार सुरक्षा बलों ने उसे पकड़ना चाहा, लेकिन पुष्ट खुफिया जानकारी के बावजूद दक्षिण कश्मीर के कोकेरनाग स्थित गांव के मकान में वह आतंकवादी को खोज नहीं सके.

सूचनाओं के अनुसार, अभियान का नेतृत्व कर रहे अधिकारी और पूरा दल दो बार मकान के भीतर घुसा, लेकिन वे छत में बनी विशेष जगह में छुपे आतंकवादी को खोज नहीं सके. तीसरी बार तलाशी के दौरान आतंकवादियों ने जवानों पर गोलीबारी कर खुद ही अपना राज फाश कर दिया. उसके बाद ही सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में वानी सहित तीन लोग मारे गये और बाद में घाटी में महीनों तक अशांति के हालात रहे. मानवीय और तकनीकी खुफिया सूचनाओं के बावजूद जब सुरक्षा बल किसी मकान में आतंकवादी को खोज नहीं पाते हैं, तो उन्हें उग्र प्रतिरोधी भीड़ का सामना करना पड़ता है.

सूत्रों ने कहा, इन हालात को देखने के बाद ‘दीवारों के भीतर देखने में सक्षम’ रडार की जरूरत महसूस हुई, जो उग्रवाद-विरोधी अभियानों में सुरक्षा बलों के लिए मददगार साबित होंगे, विशेष रूप से ज्यादा भीड़-भाड़ वाले इलाकों में.यह रडार दीवारों या कंक्रीट से बने किसी अन्य ढांचे के पीछे छिपे व्यक्ति के शरीर से निकलने वाली शॉर्ट-इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों के आधार पर काम करता है. एक अधिकारी ने बताया, यह मनुष्य के शरीर से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों में छोटे बदलावों को भी भांप लेता है, जैसे सांस लेने से होनेवाला बदलाव भी इस पर दिखता है.

उन्होंने कहा, रडार पर उभरने वाले संकेत सेना को छिपे हुए आतंकवादियों की जगह और उनकी गतिविधियों का तुरंत पता बता देंगे. हालांकि, सेना ने अभी कुछ ही रडार आयात किये हैं, लेकिन अधिकारियों को विश्वास है कि उपयोगिता का परीक्षण होने के बाद इनकी संख्या भी बढ़ेगी. दिलचस्प बात यह है कि रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान (डीआरडीओ) की शाखा इलेक्ट्रॉनिक रडार डेवेलपमेंट इस्टैबलिशमेंट (एलआरडीई) भी इस रडार को स्वदेशी तकनीक से विकसित करने का प्रयास कर रही है. हालांकि, वह अब भी परीक्षण स्तर में ही है.

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