पर्वराज पर्युषण के चौथे दिन जैनियों ने की उत्तम शौच धर्म की आराधना
प्रतिनिधि, नवादा कार्यालय
आत्मशुद्धि का दस दिवसीय महापर्व पर्युषण के चौथे दिन जैन धर्मावलंबियों ने दशलक्षण धर्म के चतुर्थ स्वरूप उत्तम शौच धर्म की विशेष पूजा-अर्चना की. साथ ही अपने जीवन में तृष्णाराहित संतोष को अंगीकार करने का संकल्प लिया. रविवार को जैन धर्म के गुणावां जी दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र व अस्पताल रोड स्थित जिला प्रसिद्ध जैन मंदिर में चौथे दिन के धार्मिक अनुष्ठान का विशेष आयोजन हुआ. इस दौरान जैनियों ने सर्वप्रथम वीतराग प्रभु का अभिषेक व शांति धारा कर विश्वशांति के साथ ही प्राणिमात्र के कल्याण की मंगलकामना की. दैनिक पूजा-अर्चना के बाद श्रद्धालुओं ने दशलक्षण धर्म पूजन के साथ ही धर्म के चतुर्थ स्वरूप उत्तम शौच धर्म की श्रद्धा व भक्तिभाव के साथ विशेष आराधना की.उत्तम शौच धर्म का अर्थ पवित्रता और संतोष है
जैन धर्म के अनुसार उत्तम शौच धर्म का अर्थ पवित्रता और संतोष है. यह व्यक्ति को आंतरिक पवित्रता के पथ पर अग्रसर कर लोभ, अत्यधिक आकांक्षाओं और असंतोष से मुक्ति दिलाता है. दीपक जैन ने बताया कि यह धर्म वाह्य सफाई से परे आंतरिक विचारों, आचरण एवं भावनाओं में निर्मलता लाने पर बल देता है. उन्होंने कहा कि समस्त पाप का बाप लोभ है. लोभ-लालच व आवश्यकता से अधिक की आकांक्षा के कारण ही व्यक्ति में आसक्ति, तृष्णा एवं अतृप्ति की भावना पनपती है, जो कि व्यक्ति की मानसिकता को कुपित कर उसे गर्त में धकेलने का काम करती है. उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं व आकांक्षाओं के बीच संतुलन बनाने में समर्थ हो जाता है, वहीं संतोष पद को प्राप्त कर आत्मिक सुख को ग्रहण करता है. क्योंकि कहा भी गया है कि संतोषी सदा सुखी होता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

