भारी बैग ढोने के कारण अक्सर बच्चों को पीठ दर्द का अनुभव होता है
डॉक्टर की चेतावनी, हैवी वेट का स्पाइन पर बुरा असर
बच्चे के बैग का वजन उसके वजन और कद के हिसाब से होना चाहिए.
प्रतिनिधि, मेसकौर
आजकल स्कूली बच्चों को बड़े और भारी स्कूल बैग ढोते देखना आम बात है. कई बैग तो इतने बड़े होते हैं कि सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि क्या इतना भारी बैग या स्कूल बैग न सिर्फ पीठ दर्द का कारण बन रहा है, बल्कि स्कोलियोसिस या रीढ़ की हड्डी की अन्य विकृतियों सहित अन्य प्रकार की क्षति भी पैदा कर रहा है. चिकित्सा प्रभारी मेसकौर डॉ सुबीर कुमार ने बताया कि एक औसत स्कूली बच्चा एक दिन में लगभग आठ अलग-अलग विषयों को पढ़ता है. इसका मतलब है कि बच्चे कम से कम आठ अलग-अलग स्कूली किताबें ढोते हैं, और इसमें अन्य नोटबुक, वर्कशीट और अन्य जरूरी चीजें शामिल होती हैं. समय के साथ भारी बैग ढोने के कारण अक्सर बच्चों को पीठ दर्द का अनुभव होता है, लड़कियों को आमतौर पर लड़कों की तुलना में ज़्यादा दर्द होता है. विशेष रूप से बैग ढोने वाले बच्चों का सिर अक्सर आगे की ओर झुक जाता है, जिससे पीठ पर पड़े भारी वजन को संतुलित करने और संतुलित करने के लिए शरीर कूल्हों पर आगे की ओर झुक जाता है, जिससे अप्राकृतिक परेशानी होता है.
आजकल, बच्चों को अक्सर नजरअंदाज़ किया जाता है या उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है, खासकर जब बात उन छोटी-मोटी समस्याओं की आती है, जैसे कि यह समस्या, लेकिन असल में ये महत्वपूर्ण मामले हैं जिन पर ध्यान देने की जरूरत है. कुछ माता-पिता इस बात से पूरी तरह अनजान होते हैं कि उनके बच्चे हर दिन अपने बैग में कितना वजन ढो रहे हैं, और जब उनके बच्चे पीठ दर्द की शिकायत करने लगते हैं, तो उन्हें इसका कारण पता भी नहीं चलता है, क्योंकि उन्होंने उस समय इस पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया. बच्चे के बैग का वजन उसके वजन और कद के हिसाब से होना चाहिए.एक्टिविटी बुक बढ़ा रही बोझ
निजी स्कूलों में खासतौर पर रोजाना अलग-अलग विषयों की मुख्य किताबों के साथ-साथ एक्टिविटी बुक भी मंगवायी जाती हैं. ये काफी भारी भी होती हैं, अलग-अलग प्रोजेक्ट को लेकर भी स्टेशनरी का भार बढ़ रहा है. ऐसे में स्कूलों में शिक्षकों को ध्यान देना होगा कि पाठ्यक्रम के अलावा दूसरी गैर-जरूरी किताबें न मंगवायें. जिन पुस्तकों की घरों में पढ़ाई के दौरान जरूरत नहीं पड़ती, उनको स्कूलों में ही रखने की व्यवस्था करनी चाहिए. वहीं अभिभावकों को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए कि स्कूल बैग के अंदर बिना जरूरत की पुस्तकें न हों.क्या कहते हैं जिम्मेवार
निजी स्कूल हो या सरकारी स्कूल, सभी के लिए यह नियम तय है. इसे लेकर स्कूलों की जांच भी की जायेगी. खासतौर पर प्राइमरी स्तर के स्कूलों का निरीक्षण होगा, स्कूलों को तय नियमों के अनुसार चलना होगा.संजय जायसवाल, प्रखंड शिक्षा अधिकारी, मेसकौर
10-12 साल के कई बच्चे ऐसे आते हैं, जो इतनी कम उम्र में बैक पेन की समस्या से जूझते हैं. यह उम्र बच्चों के शरीर में काफी बदलाव लाती है. बच्चों के बैक पेन का कारण भारी बैग भी हैं. सर्वाइकल पैन की समस्या बहुत ज्यादा आने लगी है.डॉ रोहित चौधरी , ऑर्थोपैडिक, मेसकौर, अस्पताल
जूनियर कक्षाओं के छात्रों के बैग के भार का ध्यान रखा जाता है. वही किताबें मंगवाई जाती है जो जरूरी हैं, अतिरिक्त भार को कम किया गया है. लेकिन कई स्कूलों में देखने को मिलता है कि बच्चों से एक्टिविटी बुक्स के नाम पर कई अतिरिक्त किताबें बढ़ाई जा रही हैं.अजय कुमार, निदेशक, एम जी बी स्कूल, मेसकौर
बैग में इतनी एक्सट्रा किताबें होती हैं कि बच्चों के बैग का भार बहुत ज्यादा हो गया है. रोजाना कई किताबें मंगवायी जाती हैं, जो ले जानी अनिवार्य हैं. इसको लेकर सरकार की ओर से ध्यान देने की जरूरत है.कुंदन कुमार, अभिभावकB
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

